AIN NEWS 1 | गाजियाबाद जिले के मुरादनगर क्षेत्र में सामने आया दुष्कर्म कांड पूरे जिले ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। मामला सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें हिंदू युवा वाहिनी जैसे बड़े संगठन का नाम भी जुड़ने से सियासी और सामाजिक हलचल और तेज हो गई है।
आरोप है कि हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े एक पदाधिकारी ने एलएलबी की छात्रा को झांसे में लेकर उसके साथ दुष्कर्म किया। छात्रा ने जब पुलिस से मदद लेने की कोशिश की तो शुरुआती लापरवाही और संगठन के नाम के कारण मामला और भी पेचीदा हो गया।
कैसे रची गई पूरी साजिश?
पीड़िता, जो कि कानून की पढ़ाई कर रही है, ने शिकायत में बताया कि आरोपी ने खुद को हिंदू युवा वाहिनी का नगर अध्यक्ष बताते हुए उसके करीबियां बढ़ाईं। उसने छात्रा से कहा कि वह उसे एक नामी वकील से मिलवाएगा, जिससे उसके करियर को फायदा होगा।
यही भरोसा दिलाकर उसने छात्रा को एक फ्लैट पर बुलाया। पीड़िता के अनुसार, वहां आरोपी ने उसे कोल्ड ड्रिंक दी, जिसमें नशीला पदार्थ मिलाया गया था। ड्रिंक पीने के बाद छात्रा बेहोश हो गई और उसी दौरान उसके साथ दुष्कर्म किया गया।
पुलिस की शुरुआती लापरवाही और संगठन का दबाव
हिम्मत जुटाकर छात्रा उसी रात मुरादनगर थाने पहुंची और शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की। लेकिन पीड़िता का आरोप है कि पुलिस ने पहले मामले को दर्ज करने में टालमटोल की।
जब यह बात आसपास के अन्य हिंदू संगठनों को पता चली, तो बजरंग दल और गोरक्षक दल के कार्यकर्ता थाने पहुंच गए। वहां उन्होंने जोरदार हंगामा किया और पुलिस पर दबाव बनाया। इसके बाद ही एफआईआर दर्ज की गई और कार्रवाई शुरू हुई।
आरोपी फरार, पुलिस की दबिश जारी
FIR दर्ज होने के बाद पुलिस ने आरोपी सुशील प्रजापति के घर और आसपास के ठिकानों पर कई बार छापेमारी की, लेकिन वह पहले ही फरार हो चुका था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर पुलिस ने शिकायत मिलते ही तेजी से कार्रवाई की होती, तो आरोपी हाथ आता। फिलहाल पुलिस की कई टीमें उसकी लोकेशन ट्रेस कर रही हैं और दावा कर रही हैं कि जल्द ही गिरफ्तारी होगी।
हिंदू युवा वाहिनी की सफाई
मामले ने तूल पकड़ने के बाद हिंदू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष आयुष त्यागी काकड़ा ने मीडिया के सामने बयान जारी किया। उन्होंने कहा:
“हमारा संगठन कभी भी ऐसे लोगों का समर्थन नहीं करता जो महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ करें। आरोपी ने अगर अपराध किया है तो यह उसकी व्यक्तिगत करतूत है, संगठन का इससे कोई लेना-देना नहीं। हम चाहते हैं कि पुलिस निष्पक्ष जांच करे और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिले।”
यह बयान साफ करता है कि संगठन ने आरोपी से दूरी बना ली है और इस मामले में सख्त रुख अपनाया है।
समाज और राजनीति में हलचल
जैसे ही यह मामला सामने आया, सोशल मीडिया पर लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। युवाओं और छात्र संगठनों ने खासकर नाराजगी जताई कि एक जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति इस तरह का घिनौना अपराध कैसे कर सकता है।
वहीं, विपक्षी दलों ने इस घटना को लेकर सरकार और पुलिस प्रशासन को घेरा। सवाल उठे कि आखिर क्यों पीड़िताओं को समय पर न्याय नहीं मिलता और पुलिस शुरुआती कार्रवाई में अक्सर लापरवाही क्यों दिखाती है।
पीड़िता की हालत और इंसाफ की उम्मीद
पीड़िता ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि वह डरी नहीं है और तब तक पीछे नहीं हटेगी, जब तक आरोपी को सजा नहीं मिल जाती। पुलिस ने उसका मेडिकल परीक्षण कराया है और केस की जांच आगे बढ़ा रही है।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इस मामले ने फिर साबित किया है कि पुलिस को ऐसे संवेदनशील मामलों में और संवेदनशील व तेज होना चाहिए। FIR दर्ज करने में देरी न केवल पीड़िता को मानसिक आघात देती है, बल्कि आरोपी को फरार होने का मौका भी दे देती है।
व्यापक सवाल
यह घटना सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं है। यह कई गंभीर सवाल खड़े करती है:
क्या समाज में संगठन और पद का नाम लेकर लोग युवाओं का भरोसा तोड़ सकते हैं?
क्या प्रशासन पीड़ितों को तुरंत न्याय दिलाने में विफल है?
क्या राजनीतिक-सामाजिक दबाव पुलिस के कामकाज को प्रभावित करता है?
इन सवालों का जवाब तभी मिलेगा जब आरोपी को सजा मिले और पुलिस ऐसे मामलों में नजीर पेश करे।
मुरादनगर दुष्कर्म कांड न केवल कानून-व्यवस्था की परीक्षा है बल्कि समाज के सामने भी एक चुनौती है। आरोपी को सजा दिलाना जहां पुलिस और न्यायपालिका की जिम्मेदारी है, वहीं समाज को भी इस तरह के अपराधों के खिलाफ खुलकर सामने आना होगा।