AIN NEWS 1 | नेपाल इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। पिछले कुछ दिनों से चल रहे विरोध-प्रदर्शन अचानक हिंसक हो उठे। हालात इतने बिगड़ गए कि प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस की मौजूदगी बेअसर रही और आखिरकार हालात संभालने के लिए नेपाल आर्मी को हस्तक्षेप करना पड़ा।
काठमांडू, पोखरा, बिराटनगर और कई अन्य शहरों में आगजनी, तोड़फोड़ और झड़पों ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया है।
संसद भवन पर हमला – लोकतंत्र का प्रतीक आग की लपटों में
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सुबह से ही हजारों लोग संसद भवन के बाहर जुट गए थे। धीरे-धीरे भीड़ उग्र हो गई और गेट तोड़ते हुए भीतर घुस गई। सुरक्षा बलों ने रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने संसद परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की और आग लगा दी।
लोकतंत्र का प्रतीक माने जाने वाला यह भवन आग की लपटों में घिरते देख आम नागरिक स्तब्ध और भयभीत रह गए।
आखिर क्यों भड़के प्रदर्शन?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आंदोलन के पीछे लंबे समय से चली आ रही आर्थिक और राजनीतिक असंतोष की लहर है।
बढ़ती महंगाई – रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम लगातार आसमान छू रहे हैं।
बेरोजगारी – पढ़े-लिखे युवा भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं।
भ्रष्टाचार और सत्ता संघर्ष – सरकारों के लगातार बदलने और नेताओं के बीच खींचतान ने जनता का विश्वास तोड़ दिया है।
राजनीतिक अस्थिरता – बार-बार सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था कमजोर हो गई है।
युवाओं का गुस्सा सबसे ज्यादा है। सोशल मीडिया पर भी सरकार विरोधी नाराजगी और तेजी से फैल रही है।
सेना का हस्तक्षेप
जब हालात प्रशासन और पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गए, तो नेपाल आर्मी को मैदान में उतरना पड़ा।
सेना ने राजधानी और बड़े शहरों में गश्त तेज कर दी।
संसद, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री निवास जैसे संवेदनशील ठिकानों की सुरक्षा बढ़ा दी गई।
कई इलाकों में नाकाबंदी कर दी गई है।
सेना की ओर से कड़ा अल्टीमेटम जारी किया गया:
“अगर हिंसा बंद नहीं हुई तो बल प्रयोग किया जाएगा। देश को अराजकता में डूबने नहीं दिया जाएगा।”
जनता की मुश्किलें और डर
राजेश श्रेष्ठ (दुकानदार, काठमांडू):
“हमारी दुकानें जल रही हैं, रोज़गार खत्म हो रहा है। सरकार ने हमें असुरक्षा में छोड़ दिया है। अब सेना आई है तो थोड़ी उम्मीद है, लेकिन डर भी है कि कहीं गोलियां न चल जाएं।”कविता थापा (छात्रा, बिराटनगर):
“हम पढ़ाई पूरी करके भी बेरोजगार बैठे हैं। महंगाई ने जीना मुश्किल कर दिया है। अगर हम आवाज़ नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा?”मीना गुरंग (गृहिणी, पोखरा):
“बच्चों को स्कूल भेजने में डर लगता है। घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। माहौल तनावपूर्ण है।”
आंदोलनकारियों की आवाज़
प्रदर्शन में शामिल युवक रमेश अधिकारी ने कहा:
“यह लड़ाई सिर्फ महंगाई की नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम के खिलाफ है। बार-बार सरकार बदलती है, लेकिन हमारी जिंदगी वही रहती है। सेना का डर दिखाकर हमें चुप नहीं कराया जा सकता।”
नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
माधव नेपाल (पूर्व प्रधानमंत्री):
“सेना का हस्तक्षेप लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। यह जनता की आवाज़ दबाने का तरीका है।”सरकारी प्रवक्ता:
“सेना की तैनाती मजबूरी में की गई। सरकार सिर्फ शांति और स्थिरता चाहती है।”सुजाता कोइराला (विपक्षी नेता):
“जनता का गुस्सा जायज़ है। सरकार को संवाद करना चाहिए था, लेकिन उसने डर का माहौल बना दिया।”
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. दीपक अधिकारी:
“सेना हालात संभाल सकती है, लेकिन स्थायी समाधान केवल ईमानदार सुधारों से आएगा।”आर्थिक विशेषज्ञ डॉ. ललित प्रसाद:
“बेरोजगारी और महंगाई सबसे बड़ा कारण हैं। अगर अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी तो यह संकट और गहरा जाएगा।”
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
नेपाल की स्थिति पर पूरी दुनिया की नजर है।
भारत, चीन और अमेरिका ने अपने नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है।
संयुक्त राष्ट्र ने सभी पक्षों से शांति बनाए रखने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करने की अपील की है।
आम जनता की दिक्कतें
बाजार बंद होने से छोटे दुकानदारों की रोज़ी-रोटी प्रभावित।
परिवहन ठप होने से यात्रियों और ड्राइवरों की मुश्किलें बढ़ीं।
आम लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं।
आगे का रास्ता
फिलहाल सेना की मौजूदगी से हालात थोड़े काबू में आते दिख रहे हैं। लेकिन लंबे समय तक सेना का शासन नेपाल की लोकतांत्रिक छवि पर सवाल खड़ा कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि स्थायी समाधान संवाद, आर्थिक सुधार और भ्रष्टाचार पर लगाम से ही संभव है। सरकार को रोजगार बढ़ाने और जनता का विश्वास जीतने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।