AIN NEWS 1 | नेपाल की राजनीति एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। 1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी, जिसे जनरेशन-ज़ेड कहा जाता है, अब देश की सड़कों पर उतरकर भ्रष्टाचार और सरकारी फैसलों के खिलाफ खुलकर आवाज़ बुलंद कर रही है। सोमवार (8 सितंबर 2025) को राजधानी काठमांडू में यह गुस्सा उस वक्त फूट पड़ा, जब हज़ारों युवाओं ने न्यू बानेश्वर स्थित संघीय संसद की ओर कूच किया।
संसद परिसर में हिंसक झड़प
सुबह मैतीघर मंडला से शुरू हुई शांतिपूर्ण रैली धीरे-धीरे हिंसक होती चली गई। प्रदर्शनकारियों ने जैसे ही संसद की ओर बढ़ना शुरू किया, पुलिस बैरिकेड्स तोड़ने की कोशिश की। कई युवा संसद भवन के गेट पर चढ़ गए और अंदर घुसने का प्रयास करने लगे। स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछार की। इस बीच एक जनरेशन-ज़ेड प्रदर्शनकारी को गोली लगी और बाद में उसकी अस्पताल में मौत हो गई। इसके अलावा 80 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं।
काठमांडू में कर्फ्यू का ऐलान
हालात बेकाबू होने पर काठमांडू जिला प्रशासन ने कर्फ्यू लगाने का फैसला किया। यह कर्फ्यू दोपहर 12:30 बजे से रात 10:00 बजे तक लागू रहा।
कर्फ्यू का दायरा इस प्रकार तय किया गया:
पश्चिम में: न्यू बानेश्वर चौक से बिजुलीबजार पुल (एवरेस्ट होटल के पास तक)
पूर्व में: मिन भवन, शांति नगर से टिंकुने चौक तक
उत्तर में: आईप्लेक्स मॉल से रत्न राज्य माध्यमिक विद्यालय तक
दक्षिण में: शंखमुल पुल तक
जिला प्रशासन ने स्थिति को बेहद संवेदनशील और तनावपूर्ण करार दिया।
आंदोलन की असली वजह
जनरेशन-ज़ेड युवाओं के इस आंदोलन के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं:
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद – युवाओं का आरोप है कि सरकारी तंत्र पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है और राजनीतिक नेताओं में पारदर्शिता की कमी है।
सोशल मीडिया प्रतिबंध – सरकार ने सोशल मीडिया पर नियंत्रण लगाने की योजना बनाई है। युवा इसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं।
इन दोनों मुद्दों ने युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।
केवल काठमांडू ही नहीं, पूरे नेपाल में प्रदर्शन
यह आंदोलन केवल राजधानी तक सीमित नहीं रहा। देश के अन्य बड़े शहरों में भी युवाओं ने तख्तियां उठाकर सरकार के खिलाफ नारे लगाए।
मुख्य शहर जहां आंदोलन फैला:
पोखरा
बुटवल
विराटनगर
इन जगहों पर भी युवाओं ने भ्रष्टाचार खत्म करने और सोशल मीडिया प्रतिबंध हटाने की मांग की।
पुलिस बनाम प्रदर्शनकारी
बनेश्वर इलाके में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच सबसे ज़्यादा टकराव देखने को मिला। सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए आंसू गैस और पानी की बौछार का सहारा लिया। लेकिन उससे पहले, कई युवा पुलिस गार्ड हाउस पर चढ़ गए थे। संसद भवन में प्रवेश की कोशिशों के चलते स्थिति और बिगड़ गई।
आंदोलन का स्वरूप
आयोजकों का कहना है कि यह केवल एक दिन का विरोध नहीं है। आने वाले समय में भी यह आंदोलन जारी रहेगा। उनका मानना है कि यह आंदोलन सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है, बल्कि लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई भी है।
लोकतंत्र पर संकट?
नेपाल में पहले भी कई बार लोकतंत्र पर सवाल उठे हैं, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं। वजह है – यह आंदोलन युवाओं की पीढ़ी से जुड़ा हुआ है, जो सोशल मीडिया और तकनीक के ज़रिए संगठित हो रही है।
जनरेशन-ज़ेड को हमेशा बदलाव और पारदर्शिता की उम्मीदों से जोड़ा जाता है। ऐसे में उनका सड़कों पर उतरना यह दिखाता है कि नेपाल की युवा पीढ़ी अब केवल तमाशबीन नहीं रहना चाहती।
आने वाले दिन और भी कठिन
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार ने युवाओं की आवाज़ को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। संसद परिसर पर धावा बोलने जैसी घटनाएं नेपाल के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती हैं।
नेपाल के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि – क्या सरकार इस युवा आंदोलन को दबाएगी या संवाद का रास्ता अपनाएगी?
अगर युवाओं को अनसुना किया गया, तो यह आंदोलन नेपाल की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।