AIN NEWS 1 | केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया जो लोकतंत्र को मजबूती देने वाले विचारों में से एक है। उनका मानना है कि लोकतंत्र में सिर्फ सरकार की सक्रियता ही नहीं, बल्कि नागरिकों की सजगता और कानूनी जागरूकता भी उतनी ही जरूरी है।
13 जुलाई को नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर सरकार की नीतियों से जनता को नुकसान हो रहा है या निर्णय जनहित में नहीं हैं, तो लोगों को अदालत का सहारा लेना चाहिए। यह कदम सरकार को अधिक जिम्मेदार और पारदर्शी बनाने में मदद करता है।
क्यों जरूरी है सरकार के खिलाफ केस?
गडकरी ने कहा कि कई बार सरकारें जरूरी फैसले सिर्फ राजनीतिक दबाव या वोट बैंक की वजह से नहीं ले पातीं। ऐसे में जनहित याचिकाएं (PILs) और कोर्ट के दखल से वही फैसले लिए जा सकते हैं।
“कई बार न्यायपालिका वो काम कर देती है जो राजनीतिक कारणों से सरकारें नहीं कर पातीं,” – नितिन गडकरी
उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे कुछ मामलों में न्यायपालिका ने ऐसे आदेश दिए जिससे सरकार को दिशा बदलनी पड़ी और अंततः जनता को लाभ मिला।
सजग नागरिक ही बनाते हैं लोकतंत्र को जीवंत
गडकरी ने साफ कहा कि लोकतंत्र सिर्फ चुनाव लड़ने और जीतने तक सीमित नहीं है। यह तभी सशक्त होता है जब नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और गलत नीतियों का विरोध भी करें – और वो भी संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीकों से।
उन्होंने कहा कि ऐसे नागरिक, जो ज़रूरत पड़ने पर सरकार को कोर्ट में चुनौती देते हैं, सिस्टम में अनुशासन और जवाबदेही लाते हैं।
विरोध सिर्फ नकारात्मक नहीं होता
गडकरी ने कहा कि हर विरोध गलत नहीं होता। अगर कोई फैसला जनविरोधी है या संविधान के खिलाफ है, तो तथ्यात्मक और जिम्मेदार विरोध लोकतंत्र के लिए सेहतमंद है।
उन्होंने बताया कि कई बार विरोध के कारण ही नीतियों में सुधार होता है और सरकारी एजेंसियों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है।
जिनकी आवाज़ से व्यवस्था हिलती है
कार्यक्रम के दौरान कुछ ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने कानूनी रास्ते से व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाए। गडकरी ने उन्हें “कुशल संघटक” कहा—ऐसे लोग जो न केवल समस्या उठाते हैं, बल्कि समाधान के लिए सही मंच का इस्तेमाल करते हैं।
“सिर्फ आलोचना करने से कुछ नहीं होता। जो लोग सिस्टम में सुधार के लिए कोर्ट का सहारा लेते हैं, वो असली बदलाव लाते हैं।”
न्यायपालिका की भूमिका
गडकरी ने कहा कि न्यायपालिका लोकतंत्र की तीसरी और जरूरी कड़ी है। यह न सिर्फ सरकार को रोकती है, बल्कि सही दिशा में धकेलने का भी काम करती है।
“कई बार कोर्ट की फटकार ही सिस्टम को जगाती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को जब पता होता है कि कोई फैसला अदालत में चुनौती दी जा सकती है, तो वह फैसले लेते वक्त ज्यादा सावधानी बरतती है।
जवाबदेही = मजबूत शासन
गडकरी के इस बयान का सार ये था कि जब जनता सवाल पूछती है और कोर्ट का रुख करती है, तो सरकार को जवाब देना पड़ता है। इससे सरकारी तंत्र में सुधार आता है और सत्ता में बैठे लोग भी जनता की भावनाओं को समझते हैं।
यह प्रक्रिया लोकतंत्र को सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि मजबूत भी बनाती है।
जागरूकता से ही लोकतंत्र मजबूत होता है
नितिन गडकरी का यह संदेश स्पष्ट है—लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट देना नहीं, बल्कि जब ज़रूरत हो तो आवाज उठाना भी है। और अगर सरकार से न्याय नहीं मिले तो न्यायपालिका का सहारा लेना पूरी तरह संविधान सम्मत है।
इस तरह की सोच से न केवल शासन पारदर्शी बनता है, बल्कि जनता को भी यह एहसास होता है कि उनकी आवाज़ मायने रखती है।
In a thought-provoking speech, Union Minister Nitin Gadkari emphasized the essential role of citizens in maintaining democratic discipline by filing court cases against the government when needed. Gadkari highlighted how legal action, public interest litigation, and judicial scrutiny can ensure accountability, enforce transparency, and help governments stay aligned with public welfare. His statement reinforces the idea that democracy thrives when people actively question authority and use constitutional means to seek justice.