Sunday, November 24, 2024

डॉक्टरों की लापरवाही का दर्दनाक नतीजा: झुंझुनूं में चमत्कार जैसी घटना, लेकिन हकीकत में सिस्टम की खामियां

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AIN NEWS 1 | राजस्थान के झुंझुनूं जिले में 25 वर्षीय रोहिताश की दर्दनाक मौत ने अस्पतालों में लापरवाही और व्यवस्थागत खामियों को उजागर कर दिया। इस घटना में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया, लेकिन अंतिम संस्कार की तैयारी के बीच उसकी सांसें चलती हुई पाई गईं। फिर भी, समय पर उचित उपचार नहीं मिलने से उसकी जान चली गई।

घटना का विवरण और तीन प्रमुख लापरवाहियां

ये तस्वीर तब की है जब चिता के पास ही कंबल हटाकर देखा गया तो रोहिताश की आंखें इशारा कर रही थीं।

1. गलत तरीके से मृत घोषित करना

बीमार हालत में अस्पताल पहुंचे रोहिताश की नब्ज और ईसीजी चेक की गई।

  • लापरवाही: डॉक्टर ने केवल नब्ज देखकर उसे मृत मान लिया। ईसीजी रिपोर्ट को अनदेखा कर दिया गया।
  • विशेषज्ञों के मुताबिक, नब्ज कमजोर हो सकती है, लेकिन ईसीजी पर मामूली हरकतें भी दिखाई देती हैं।

2. पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया में अनियमितताएं

बीडीके अस्पताल की मॉर्च्युरी का डीप फ्रीजर जहां जिंदा रोहिताश को मृत मानकर 2 घंटे तक रखा गया था।

रोहिताश को मॉर्च्युरी में माइनस तापमान वाले फ्रीजर में रखा गया, जबकि वह जिंदा था।

  • लापरवाही: मॉर्च्युरी में दोबारा नब्ज या हरकत की जांच नहीं की गई।
  • पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया को सही से फॉलो नहीं किया गया। केवल फॉर्मैलिटी पूरी कर रिपोर्ट बना दी गई।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के सभी पेज देखिए, कहीं भी किसी बॉडी पार्ट को जांचा नहीं गया।

3. सूचना छिपाने और कार्रवाई में देरी

रोहिताश के जिंदा पाए जाने की खबर को दबाने की कोशिश की गई।

  • लापरवाही: जब रोहिताश को आईसीयू में शिफ्ट किया गया, तो अस्पताल प्रशासन ने इस गंभीर चूक की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी।
  • सोशल मीडिया पर खबर वायरल होने के बाद मामला उजागर हुआ।

घटना की टाइमलाइन

  1. सुबह 11:00 बजे: रोहिताश को मिर्गी का दौरा पड़ा।
  2. दोपहर 1:50 बजे: अस्पताल में डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।
  3. दोपहर 2:30 बजे: उसे मॉर्च्युरी के डीप फ्रीजर में रखा गया।
  4. शाम 5:30 बजे: अंतिम संस्कार की तैयारी के दौरान उसकी सांसें चलती हुई पाई गईं।
  5. रात 1:00 बजे: उसे जयपुर रेफर किया गया।
  6. सुबह 5:30 बजे: एसएमएस अस्पताल, जयपुर में उसकी मौत हो गई।

प्रशासन की कार्रवाई

घटना के बाद, जिला कलेक्टर ने तीन डॉक्टरों को सस्पेंड कर दिया।

  • इमरजेंसी वार्ड के डॉ. योगेश जाखड़
  • पोस्टमॉर्टम डॉक्टर नवनीत मील
  • हॉस्पिटल के पीएमओ डॉ. संदीप पचार

प्रश्न जो इस घटना से उठते हैं

  1. क्या डॉक्टरों को आपात स्थिति में मरीज की जांच के लिए बेहतर ट्रेनिंग नहीं मिलनी चाहिए?
  2. पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया में इतनी अनियमितताएं कैसे हो सकती हैं?
  3. अस्पताल प्रशासन ने मामले को दबाने की कोशिश क्यों की?

यह घटना न केवल चिकित्सा प्रणाली की खामियों को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि मानवीय लापरवाही कितनी महंगी साबित हो सकती है। इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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