AIN NEWS 1 | उत्तर प्रदेश में स्कूलों के मर्जर के विरोध में समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा चलाई जा रही “PDA पाठशाला” अब विवादों में घिर गई है। इस अभियान के तहत, प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को लेकर क्लास लगाई जा रही थी, लेकिन अब आरोप है कि इन कक्षाओं के जरिए बच्चों से सपा के समर्थन में नारे लगवाए गए और उन्हें राजनीतिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश की गई।
“ए से अखिलेश और डी से डिंपल” पढ़ाने की ये मुहिम अब सपा नेताओं के लिए मुश्किल बन गई है। कई जिलों में इसके वीडियो वायरल हुए हैं, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
क्या है पूरा मामला?
यूपी सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों को मर्ज करने की नीति के विरोध में सपा ने “PDA पाठशाला” नाम से एक अभियान शुरू किया है। इसके तहत सपा कार्यकर्ता उन स्कूलों के बाहर क्लास लगाते हैं, जिनका मर्जर किया जा रहा है।
भदोही जिले के औराई ब्लॉक में स्थित सिकंदरा प्राथमिक विद्यालय में 29 जुलाई को सपा नेत्री अंजनी सरोज अपने समर्थकों के साथ पहुंचीं। आरोप है कि उन्होंने स्कूल के ताले खुलवाकर बिना अनुमति बच्चों के साथ क्लास चलाई।
प्रधानाध्यापक सभाजीत यादव ने चौरी थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा कि सपा नेत्री ने बच्चों से “समाजवादी पार्टी आएगी, पाठशाला खुलवाएगी” जैसे नारे लगवाए और उन्हें कॉपी, पेंसिल, रबर व कटर बांटे गए। स्कूल परिसर में सपा के पोस्टर भी लगाए गए।
कानूनी कार्रवाई और जांच का आदेश
प्रधानाध्यापक द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर चौरी थाना प्रभारी रमेश कुमार ने बताया कि सपा नेत्री अंजनी सरोज और अन्य समर्थकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए भदोही के जिलाधिकारी शैलेश कुमार ने जांच के आदेश दिए हैं। CDO, BSA और SDM ने स्वयं स्कूल का दौरा कर पूरे प्रकरण की जांच शुरू कर दी है।
इस बीच खुलासा हुआ है कि स्कूल का ताला खोलने में औराई के खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। उन पर यह आरोप लगा है कि उन्होंने चाबी सपा कार्यकर्ताओं को सौंप दी, जिससे वे स्कूल परिसर में घुसकर PDA पाठशाला चला सके। इस मामले में विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की गई है।
वीडियो साक्ष्य बने सबूत
प्रधानाध्यापक ने घटनास्थल का वीडियो भी पुलिस को सौंपा है, जिसमें बच्चों को नारे लगाते और सपा नेताओं को सामग्री बांटते देखा जा सकता है। ये वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो चुके हैं और आम जनता से लेकर राजनीतिक दलों तक इस पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
बच्चों का राजनीतिक उपयोग – एक चिंता का विषय
बच्चों को राजनीतिक संदेश देने, नारे लगवाने और किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में प्रचार करवाना संविधान और शिक्षा की भावना के खिलाफ माना जाता है। यह घटना इस बात को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है कि क्या शिक्षा संस्थानों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर नहीं रखा जाना चाहिए?
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों का इस तरह इस्तेमाल न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह उनकी शिक्षा और निष्पक्ष सोच को प्रभावित कर सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों और कई संगठनों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कुछ लोगों ने इसे सपा का साहसिक विरोध बताया है, वहीं अन्य इसे शिक्षा का राजनीतिकरण और बच्चों के साथ अनुचित व्यवहार करार दे रहे हैं।
सत्ताधारी दल ने इस घटना की निंदा करते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि स्कूलों को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।
PDA पाठशाला को लेकर शुरू हुआ सपा का विरोध अभियान अब कानून और नैतिकता के घेरे में आ गया है। स्कूलों का मर्जर एक प्रशासनिक फैसला हो सकता है, लेकिन इसका विरोध इस तरह बच्चों को राजनीतिक हथियार बनाकर करना अब सपा को भारी पड़ सकता है।
प्रशासन और पुलिस इस मामले में सतर्क है और आगे की जांच के बाद और भी कार्रवाई संभव है। अब देखना होगा कि यह मामला अदालत में कितना मजबूत साबित होता है और क्या इससे भविष्य में राजनीतिक दल शिक्षा संस्थानों से दूरी बनाए रखने की सीख लेंगे।
The recent PDA Pathshala controversy in Uttar Pradesh has ignited a political storm after Samajwadi Party leaders allegedly conducted political sessions with children, promoting slogans like “A for Akhilesh, D for Dimple”. An FIR has been registered against party leader Anjani Saroj and others for entering a school without permission, distributing supplies, and encouraging political chants. This incident raises concerns about political interference in schools, child exploitation in politics, and education being used as a political tool in India.