AIN NEWS 1 दुबई, एक ऐसा शहर जहां लोग काम की तलाश में आते हैं, खासकर भारत के यूपी और बिहार के मजदूरों की संख्या अधिक है। हाल ही में एक वायरल वीडियो ने इन मजदूरों की जीवनशैली की कड़ी सच्चाई को सामने रखा है। वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे ये मजदूर एक बड़े हॉल में एक-दूसरे के ऊपर लदे हुए बेड पर रहते हैं, जिससे यह दृश्य जानवरों के तबेले जैसा प्रतीत होता है।
इस वीडियो को इंस्टाग्राम पर @the_construction_expert_ नाम के वेरिफाइड अकाउंट से साझा किया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक विशाल हॉल में बेड को इस तरह से रखा गया है कि एक बेड के ऊपर दूसरा बेड है। अधिकांश बेड भरे हुए हैं, जबकि कुछ खाली भी हैं। इस प्रकार की व्यवस्था से यह समझ आता है कि ये लोग कैसे कठिनाई में रह रहे हैं।
वीडियो में हॉल की छत को टिन के शेड से बनाया गया है, जो गर्मियों में अत्यधिक गर्मी का अनुभव कराता है। ऐसे में मजदूरों की स्थिति बेहद कठिन है। ये लोग दिन भर मेहनत करके रात को यहां लौटते हैं, लेकिन उनके रहने की जगह जानवरों की तरह है। यह दृश्य देखकर लगता है जैसे ये कोई कैम्प हो, जिसमें हजारों लोग एक साथ रह रहे हैं।
यहां पर सिर्फ भारतीय मजदूर ही नहीं हैं, बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन से भी लोग काम करने आते हैं। इनकी जीवनशैली को लेकर कई यूजर्स ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी है। एक यूजर ने टिप्पणी की है कि यह पोल्ट्री फार्म का अपडेट वर्जन है। वहीं, दूसरे यूजर ने सलाह दी कि भारत में रहना बेहतर है, ताकि परिवार के साथ सुरक्षित रह सकें।
कुछ कमेंट्स में यह भी कहा गया है कि लोग गर्व से बताते हैं कि उनका बेटा या पति दुबई में कमाता है, लेकिन असली सच्चाई अब सामने आ रही है। एक यूजर ने इस स्थिति को जेल से कम नहीं बताया। जबकि एक अन्य ने कहा कि गर्मियों में मजदूरों को सिर्फ 3 घंटे का ब्रेक दिया जाता है।
हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर एसी और रेस्टरूम की व्यवस्था है। लेकिन रेस्टरूम साइट पर नहीं होते, इसलिए मजदूरों को विशेष इंतजाम किए जाते हैं। अदिल चौधरी ने बताया कि दुबई में एक कमरे में 6 से ज्यादा लोग नहीं रह सकते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि जिन जगहों पर ये लोग रह रहे हैं, वो जानवरों के तबेले से कम नहीं हैं।
इस वीडियो ने फिर से उस सच्चाई को उजागर किया है, जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज करते हैं। दुबई जैसे शहर में काम करने के पीछे छिपी कठिनाइयां अब स्पष्ट हो गई हैं, और यह समय है कि हम इन मजदूरों की स्थितियों के बारे में गंभीरता से सोचें।