AIN NEWS 1: मध्य प्रदेश के धार जिले के पिथमपुर में स्थित एक विषैला कचरा ढोने की योजना को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया। ये कचरा भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लाया जा रहा था, जो 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के बाद से विवादों में घिरी हुई है। इस मुद्दे को लेकर स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस को स्थिति को काबू करने के लिए लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से कचरा शिफ्ट करने की योजना
भोपाल के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में कई साल पहले जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग प्रभावित हुए। इस दुर्घटना के बाद से फैक्ट्री के आसपास का क्षेत्र प्रदूषित हो गया था। अब मध्य प्रदेश सरकार ने इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए फैक्ट्री से विषैला कचरा पिथमपुर के एक विशेष स्थल पर स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी।
स्थानीय लोगों का विरोध
स्थानीय लोग इस योजना का विरोध कर रहे थे, उनका कहना है कि कचरा पिथमपुर में स्थानांतरित करने से वहां की पर्यावरण स्थिति और भी खराब हो सकती है। उनके अनुसार, यह इलाके में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ावा दे सकता है और उनकी जीवनशैली को प्रभावित कर सकता है। प्रदूषण के खिलाफ उठे इस विरोध में स्थानीय नेताओं, पर्यावरण संगठनों और प्रभावित नागरिकों ने भाग लिया।
पुलिस का हस्तक्षेप
प्रदर्शनकारियों ने कचरा स्थानांतरित करने के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करने के लिए सड़क पर जाम लगा दिया और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के प्रयास किए, लेकिन जब प्रदर्शनकारी नहीं माने, तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इसके बाद कई लोग घायल हो गए और कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया गया।
सरकार की प्रतिक्रिया
मध्य प्रदेश सरकार ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कचरा स्थानांतरित करने का निर्णय पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। सरकार का दावा है कि यह योजना प्रदूषण के खतरों को कम करने में मदद करेगी, लेकिन विरोध करने वालों का कहना है कि पहले से ही प्रभावित क्षेत्रों में इस कदम से खतरे बढ़ सकते हैं।
कचरा स्थानांतरित करने को लेकर धार जिले में हुई इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि पर्यावरणीय मुद्दों पर स्थानीय समुदायों का गहरा असर होता है। इस संघर्ष ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या सरकारी योजनाओं को लागू करने से पहले स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से परामर्श लिया जाता है।