AIN NEWS 1 नई दिल्ली:महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) की हालिया हार के बाद शिवसेना-UBT के प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए गठबंधन छोड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा है। पार्टी के भीतर और बाहर कई नेताओं का मानना है कि अब शिवसेना को MVA छोड़कर एक स्वतंत्र राह अपनानी चाहिए। हालांकि, उद्धव ठाकरे और उनके करीबी साथी आदित्य ठाकरे और संजय राउत अब भी MVA में रहने की पक्षधर हैं।
MVA छोड़ने का दबाव क्यों बढ़ा?
हालाँकि उद्धव ठाकरे का व्यक्तिगत झुकाव महाविकास अघाड़ी के साथ बने रहने की ओर है, लेकिन पार्टी के भीतर कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी वजह से कार्यकर्ताओं और नेताओं का दबाव बढ़ता जा रहा है। पार्टी की विचारधारा, हार का कारण, और महाराष्ट्र में खोया हुआ जनविश्वास उद्धव ठाकरे को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या अब समय नहीं आ गया है जब शिवसेना को MVA से बाहर आकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी चाहिए।
1. पार्टी कैडर का दबाव:
शिवसेना का मूल वोट बैंक हिंदुत्व और मराठा पॉलिटिक्स पर आधारित रहा है। परंतु MVA के तहत कांग्रेस और एनसीपी जैसी सेक्युलर पार्टियों के साथ गठबंधन करने के बाद शिवसेना का पारंपरिक वोट बैंक खिसकने लगा। पार्टी कार्यकर्ता, खासकर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में, यह महसूस करने लगे हैं कि शिवसेना अब अपनी विचारधारा से समझौता कर रही है। इन कार्यकर्ताओं का मानना है कि शिवसेना को सत्ता का पीछा करने की बजाय अपनी विचारधारा पर अडिग रहना चाहिए।
2. शिवसेना का चुनावी प्रदर्शन:
MVA के तहत हुए विधानसभा चुनावों में शिवसेना का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। खासकर मराठवाड़ा क्षेत्र, जो शिवसेना के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक था, यहां पार्टी केवल 3 सीटों तक ही सीमित रह गई। वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने महायुति गठबंधन के तहत इस क्षेत्र में 12 सीटें जीतीं। इससे शिवसेना के कार्यकर्ताओं में हताशा और असंतोष बढ़ा है।
3. हिंदुत्व और मराठा राजनीति से समझौता:
वर्तमान स्थिति में शिवसेना का विचारधारात्मक संघर्ष साफ तौर पर दिख रहा है। पार्टी के पारंपरिक हिंदुत्व और मराठा वोटबैंक से जुड़ी नीति को कमजोर करने के कारण उद्धव ठाकरे पर पार्टी के भीतर ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। MVA में रहते हुए शिवसेना अपनी हिंदुत्व की पहचान को बरकरार रखने में असफल रही है। इससे पार्टी के मूल वोटर्स का विश्वास टूट गया है।
4. MVA का प्रभाव:
महाविकास अघाड़ी के साथ शिवसेना का गठबंधन, विशेष रूप से कांग्रेस और एनसीपी के साथ, विचारधारात्मक असंगतता का शिकार हो गया है। शिवसेना के हिंदुत्ववादी मतदाता अब उद्धव ठाकरे से नाराज हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सेक्युलर पार्टियों के साथ गठबंधन करना शिवसेना के सिद्धांतों के खिलाफ है। दूसरी ओर, मुस्लिम वोटर्स भी पार्टी से भरोसा खो चुके हैं। यह असहमति पार्टी के लिए चुनावी परिणामों में नकारात्मक असर डाल रही है।
5. BMC चुनाव और उद्धव का भविष्य:
बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए एक आखिरी उम्मीद बची हुई है। BMC पर पिछले 25 सालों से शिवसेना का कब्जा है, और यह अब भी पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बस्तियन है। यदि उद्धव ठाकरे को यह समझाना है कि उनकी पार्टी हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़ी है, तो उन्हें MVA से अलग होकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
6. कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन की असंगति:
वर्तमान गठबंधन में कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियां शामिल हैं, जिनकी विचारधारा शिवसेना से मेल नहीं खाती। इस असंगति के कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का चुनावी प्रदर्शन प्रभावित हुआ है। शिवसेना के पारंपरिक समर्थक, खासकर हिंदुत्ववादी वर्ग, अब यह मानते हैं कि उद्धव ठाकरे को अपनी विचारधारा के साथ खड़ा रहना चाहिए और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी धारा के रूप में खड़ा होना चाहिए।
उद्धव ठाकरे का निर्णय:
वर्तमान परिस्थितियों में उद्धव ठाकरे को MVA में रहकर अपने विचारों को बनाए रखने या महाविकास अघाड़ी से अलग होकर स्वतंत्र रूप से भाजपा के खिलाफ राजनीति करने के बीच एक कठिन निर्णय लेना होगा। हालांकि, उनके बेटे आदित्य ठाकरे और पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय राउत फिलहाल MVA में बने रहने का पक्ष लेते हैं, लेकिन शिवसेना कार्यकर्ताओं और नेताओं का दबाव बढ़ता जा रहा है।
आखिरकार, उद्धव ठाकरे को यह समझना होगा कि पार्टी के विचार और उनके समर्थकों की भावना को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। क्या वे MVA से बाहर आएंगे और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाएंगे, या फिर गठबंधन में बने रहकर भाजपा के खिलाफ विपक्षी मोर्चा तैयार करेंगे, यह समय ही बताएगा।