AIN NEWS 1: जैसा की आप लोग जानते है के अक्सर परिवारों के अंदर ही संपत्ति को लेकर कुछ विवाद हो जाते हैं. कभी भाई-बहन के बीच तो कभी भाइयों में पैतृक संपत्ति को लेकर आपस में ही ठन जाती है. जब तक परिवार के मुखिया यानी माता-पिता जीवित रहते हैं तब तक तो प्रॉपर्टी को लेकर विवाद की स्थिति नहीं बनती है, लेकिन उनके देहांत के बाद अक्सर पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद होने लगते हैं. हालांकि, इस तरह के हालात ना पैदा हों, इसलिए माता-पिता जीवित रहते हुए ही बच्चों के बीच संपत्ति का बंटवारा कर देते हैं और ऐसा कर भी देना चाहिए.क्योंकि अगर परिवार का मुखिया जीवित रहते हुए संपत्ति का बंटवारा नहीं कर पाए, तो उनके देहांत के बाद प्रॉपर्टी का बंटवारा कैसे हो और उसे लेकर क्या क्या नियम हैं. क्या केवल उसके बेटे और बेटियां ही उसके उस संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे या कुछ और भी ऐसे रिश्ते हैं, जिनका प्रॉपर्टी पर हक बनेगा. इस बारे में काफी ज्यादा कन्फ्यूजन है. आज इस कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए आपको हम विस्तार से बताते हैं.
जान ले हिंदू-मुस्लिम में संपत्ति बंटवारे पर अलग-अलग नियम
बता दें हमारे देश में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुस्लिम धर्म में अलग-अलग नियम हैं. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों का ही पिता की संपत्ति पर बराबर का अधिकार माना जाता है. इस अधिनियम में यह बताया गया है कि जब किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत बनाए ही हो जाती है, तो उस व्यक्ति की सम्पत्ति को उसके उत्तराधिकारियों, परिजनों या सम्बन्धियों में कानूनी रूप से किस तरह से बांटी जाएगी.
जाने क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 के तहत अगर संपत्ति के मालिक यानी पिता या परिवार के मुखिया की मृत्यु बिना वसीयत बनाए ही हो जाती है तो उस संपत्ति को क्लास-1 के उत्तराधिकारियों (बेटा, बेटी, विधवा, मां, पूर्ववर्ती बेटे का बेटा आदि) को दिया जाता है. क्लास 1 में उल्लेखित उत्तराधिकारियों के नहीं होने की स्थिति में प्रॉपर्टी क्लास 2 ( बेटे की बेटी का बेटा, बेटे की बेटी की बेटी, भाई, बहन) के वारिस को ही दिए जाने का प्रावधान है. बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में बौद्ध, जैन और सिख समुदाय भी शामिल होते हैं.बता दें कि पैतृक संपत्ति को लेकर पिता फैसले लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है इसलिए प्रॉपर्टी पर बेटे और बेटी दोनों को ही बराबर अधिकार मिले हैं. पहले तो बेटी को प्रॉपर्टी में बराबर के अधिकार प्राप्त नहीं थे, लेकिन 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में हुए महत्वपूर्ण संशोधन के बाद से बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिए गए हैं.
किसी भी संपत्ति का बंटवारा किए जाने से पहले उस पर दावा करने वालों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रॉपर्टी पर कोई बकाया कर्ज या अन्य प्रकार का कोई लेन-देन संबंधी बकाया तो नहीं है. वहीं, किसी प्रकार के पैतृक संपत्ति विवाद या अन्य मामलों के लिए कानूनी सलाहकारों की मदद भी लेनी चाहिए, ताकि कानून के दायरे में रहकर शांतिपूर्ण तरीके से पारिवारिक विवादों का पूर्ण समाधान हो सके.