AIN NEWS 1 | कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज एक मामले में कानूनी लड़ाई अब इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंच गई है। मामला राहुल गांधी के उस बयान से जुड़ा है, जो उन्होंने सितंबर 2024 में अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान दिया था। इस बयान पर वाराणसी की एमपी/एमएलए अदालत ने एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया था। राहुल गांधी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है, जिस पर हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है।
मामला क्या है?
सितंबर 2024 में अमेरिका की यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने सिख समुदाय को लेकर टिप्पणी की थी। उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या भारत में सिख लोग पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं और गुरुद्वारे जा सकते हैं? इस बयान को कई लोगों ने भड़काऊ और विभाजनकारी बताया।
वाराणसी निवासी नागेश्वर मिश्रा ने इस बयान के खिलाफ सारनाथ थाने में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की। इसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
अदालतों में अब तक की कार्यवाही
28 नवंबर 2024: न्यायिक मजिस्ट्रेट (द्वितीय) ने नागेश्वर मिश्रा की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह मामला अमेरिका में दिए गए भाषण से जुड़ा है और अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
इसके बाद नागेश्वर मिश्रा ने सत्र न्यायालय (एमपी/एमएलए विशेष अदालत, वाराणसी) में निगरानी याचिका दाखिल की। अदालत ने यह याचिका स्वीकार कर ली और एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
राहुल गांधी ने इस आदेश को गलत और अवैध बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।
हाईकोर्ट में सुनवाई
सोमवार को न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई की और अगली तारीख तय की। बुधवार को भी इस मामले की अपराह्न में सुनवाई जारी रही।
शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी ने वकालतनामा दाखिल कर समय मांगा, ताकि वे अपनी दलीलें रख सकें।
राहुल गांधी का तर्क है कि –
वाराणसी अदालत का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अमेरिका में दिए गए बयान पर भारत की स्थानीय अदालत एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकती।
आदेश न केवल कानूनी दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है, बल्कि यह गलत भी है।
राहुल की ओर से आग्रह किया गया है कि जब तक हाईकोर्ट इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं लेता, तब तक वाराणसी अदालत के आदेश पर रोक लगाई जाए।
राहुल गांधी का बयान क्यों विवादित हुआ?
राहुल गांधी ने अमेरिका में कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल ठीक नहीं है। इस पर उन्होंने सवाल उठाए थे कि क्या सिख स्वतंत्र रूप से अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन कर सकते हैं?
उनके इस बयान को लेकर आलोचकों का कहना था कि इससे भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर धूमिल हुई है और समाज में विभाजनकारी संदेश गया। वहीं, समर्थकों का कहना है कि राहुल ने केवल सिख समुदाय की समस्याओं को उजागर किया और यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है।
राजनीतिक महत्व
यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है।
कांग्रेस राहुल गांधी को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करती है, जो अल्पसंख्यकों और आम जनता की आवाज उठाते हैं।
वहीं, विरोधी दल इसे भारत की छवि खराब करने वाला बयान बताते हैं और इसे राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस केस में सबसे बड़ा सवाल अदालत के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) का है। अगर बयान अमेरिका में दिया गया है, तो भारतीय अदालत किस हद तक कार्रवाई कर सकती है, यह तय करना जरूरी होगा।
साथ ही, यह भी देखना होगा कि क्या राहुल गांधी का बयान वास्तव में दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है या फिर यह सिर्फ राजनीतिक वक्तव्य है।
आगे क्या?
हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है और आने वाले दिनों में इस पर महत्वपूर्ण आदेश आ सकता है। अगर कोर्ट वाराणसी अदालत के आदेश पर रोक लगा देता है, तो राहुल गांधी को बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन यदि आदेश बरकरार रहता है, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है, जिससे उन्हें कानूनी और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर चुनौती झेलनी पड़ेगी।