AIN NEWS 1 | उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनावों को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बार सबसे बड़ा सरप्राइज राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने दिया है। जयंत चौधरी की अगुवाई वाली पार्टी ने ऐलान किया है कि वह इन चुनावों में किसी गठबंधन के बिना, अकेले ही मैदान में उतरेगी।
मेरठ में आयोजित चुनाव समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया, जहां प्रदेश संयोजक डॉ. कुलदीप उज्जवल ने कहा कि पंचायत चुनाव संगठन की ताकत को परखने का सबसे अच्छा मौका है और पार्टी इसे पूरी गंभीरता से लड़ेगी।
पंचायत चुनाव को लेकर आरएलडी का रुख
बैठक में डॉ. उज्जवल ने कहा कि पंचायत चुनाव गांव और जमीनी राजनीति का असली चेहरा है। उन्होंने कहा,
“पंचायत चुनाव गांव का चुनाव है। यहां वोट भी गांव के लोग ही डालते हैं। हमारी पार्टी पहले दिन से ही गांव और किसानों से जुड़ी है। यही हमारी असली ताकत है और इसी के दम पर हम पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे।”
उन्होंने साफ कर दिया कि भले ही राष्ट्रीय लोकदल एनडीए का हिस्सा है, लेकिन पंचायत चुनाव क्षेत्रीय स्तर का चुनाव है, जिसे पार्टी अपने संगठन और कार्यकर्ताओं की ताकत से लड़ेगी।
क्यों अहम है पंचायत चुनाव?
राजनीति के जानकार मानते हैं कि पंचायत चुनाव न केवल स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत करता है, बल्कि यह आने वाले विधानसभा चुनावों की नींव भी तैयार करता है।
डॉ. उज्जवल ने भी इस बात पर जोर देते हुए कहा कि पंचायत चुनाव के जरिए संगठन की जड़ें और मजबूत होंगी और कार्यकर्ताओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
मेरठ और सहारनपुर मंडल में बैठक
इस अहम बैठक में मेरठ और सहारनपुर मंडल के सभी पदाधिकारी, क्षेत्रीय अध्यक्ष और पंचायत समिति के सदस्य शामिल हुए। बैठक में यह तय किया गया कि हर जिले में 5 सदस्यीय समिति बनाई जाएगी। यह समिति प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारी संभालेगी।
पार्टी का मानना है कि इस प्रक्रिया से स्थानीय स्तर पर ज्यादा सक्रिय और मजबूत उम्मीदवार सामने आएंगे, जो ग्रामीण राजनीति को और गहराई से समझते हों।
बीजेपी के लिए बढ़ी टेंशन?
हालांकि राष्ट्रीय लोकदल अभी भी एनडीए का हिस्सा है और विधानसभा व लोकसभा चुनावों में गठबंधन के तहत बीजेपी के साथ खड़ा है, लेकिन पंचायत चुनाव में अलग होकर लड़ने का फैसला बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकता है।
क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का किसानों और ग्रामीण इलाकों में मजबूत आधार है। अगर पार्टी पंचायत स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करती है तो यह सीधे तौर पर विधानसभा चुनाव में उसकी सौदेबाजी की ताकत को बढ़ा देगा।
पंचायत स्तर पर संगठन की मजबूती
पार्टी नेताओं का मानना है कि पंचायत चुनाव संगठन की असली परीक्षा होती है। क्योंकि यहां से ही कार्यकर्ताओं का सीधा जुड़ाव जनता से होता है।
अगर पंचायत स्तर पर जीत हासिल होती है तो यह कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास को भी बढ़ाएगा और उन्हें भविष्य की राजनीति में सक्रिय बनाएगा।
डॉ. उज्जवल ने कहा:
“पंचायत चुनाव की जीत ही विधानसभा चुनाव की मजबूत नींव रखेगी। यही कारण है कि हम इसे संगठन के दम पर लड़ने जा रहे हैं।”
राजनीतिक समीकरणों पर असर
आरएलडी का यह कदम कई मायनों में राजनीतिक समीकरण बदल सकता है।
एक ओर जहां पार्टी अपने स्वतंत्र राजनीतिक वजूद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
वहीं दूसरी ओर बीजेपी को यह डर सता सकता है कि पंचायत चुनाव में अकेले उतरने से वोटों का बंटवारा हो सकता है।
खासकर पश्चिमी यूपी में, जहां पहले से ही किसान आंदोलन और स्थानीय मुद्दों ने राजनीति को नया मोड़ दिया है।
स्पष्ट है कि पंचायत चुनाव केवल स्थानीय राजनीति तक सीमित नहीं हैं। इन चुनावों का असर विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक दिखाई देता है।
जयंत चौधरी की पार्टी का यह निर्णय न केवल गांव-गांव में संगठन की पकड़ मजबूत करेगा, बल्कि यह आने वाले बड़े चुनावों में भी उसकी भूमिका को और अहम बना देगा।
अब देखने वाली बात होगी कि पंचायत चुनावों में आरएलडी का यह दांव कितना सफल होता है और क्या यह बीजेपी के लिए भविष्य में परेशानी खड़ी करेगा।