AIN NEWS 1 | कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा ने एक बार फिर अपने बयान से बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इस बार उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों—पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल—की तारीफ करते हुए कहा कि जब वे वहां गए थे तो उन्हें “घर जैसा” महसूस हुआ।
उनके इस बयान ने भारतीय राजनीति में गर्मी ला दी है। भाजपा ने इसे कांग्रेस पर हमला करने का एक और मौका मान लिया है। यह पहली बार नहीं है जब पित्रोदा का बयान विवादों में आया हो। वे पहले भी 1984 के सिख दंगों और बालाकोट एयरस्ट्राइक पर दिए गए बयानों के कारण घिर चुके हैं।
Watch: Indian Overseas Congress chief Sam Pitroda says, “Our foreign policy, according to me, must first focus on our neighbourhood. Can we really substantially improve relationships with our neighbours?… I’ve been to Pakistan, and I must tell you, I felt at home. I’ve been to… pic.twitter.com/DINq138mvW
— IANS (@ians_india) September 19, 2025
सैम पित्रोदा का ताजा बयान
आईएएनएस से बातचीत में पित्रोदा ने कहा,
“मेरे मुताबिक हमारी विदेश नीति को पड़ोस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। क्या हम वास्तव में अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में सुधार कर सकते हैं? जब मैं पाकिस्तान गया था, मुझे वहां घर जैसा महसूस हुआ। मैं बांग्लादेश और नेपाल भी गया हूं और वहां भी मुझे बिल्कुल वैसा ही लगा। मुझे कभी नहीं लगा कि मैं किसी विदेशी जमीन पर हूं।”
पित्रोदा का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण हैं। सीमापार आतंकवाद, कश्मीर मुद्दा और अन्य मसलों पर दोनों देशों के बीच लंबे समय से टकराव जारी है। ऐसे में किसी वरिष्ठ कांग्रेस नेता का पाकिस्तान की तारीफ करना भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का खुला मौका देता है।
भाजपा का रुख
भाजपा ने तुरंत कांग्रेस को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी प्रवक्ता लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि कांग्रेस और उसके नेता कई बार पाकिस्तान समर्थक बयान देकर देश की जनता की भावनाओं को आहत करते हैं।
भाजपा का मानना है कि पित्रोदा का यह बयान भारत की सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज करता है और पाकिस्तान की ओर झुकाव दिखाता है।
पहले भी विवादों में फंसे हैं सैम पित्रोदा
यह पहली बार नहीं है जब पित्रोदा के शब्दों ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाई हों।
1984 सिख दंगा बयान:
जब उनसे 1984 के सिख दंगों पर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था—“हुआ तो हुआ।” यह बयान आज भी कांग्रेस के लिए एक बड़ा सिरदर्द बना हुआ है।बालाकोट एयरस्ट्राइक पर सवाल:
2019 में भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयरस्ट्राइक को लेकर भी पित्रोदा ने सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था—“क्या हमने वाकई 300 आतंकियों को मारा? क्या हमने वास्तव में हमला किया?”
उस समय भी भाजपा ने कांग्रेस पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने का आरोप लगाया था।
कांग्रेस के लिए मुश्किलें
कांग्रेस पार्टी, जो पहले से ही कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही है, अब एक और विवाद में घिरती दिख रही है।
भाजपा हर बार ऐसे बयानों का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए करती है कि कांग्रेस नेताओं का रुख राष्ट्रीय हितों से मेल नहीं खाता।
हालांकि, कांग्रेस अक्सर यह दलील देती रही है कि पित्रोदा जैसे नेता पार्टी की आधिकारिक नीति नहीं, बल्कि अपनी व्यक्तिगत राय रखते हैं।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले पित्रोदा की ऐसी टिप्पणियां पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। खासकर तब, जब भाजपा लगातार “राष्ट्रवाद” और “देशभक्ति” को चुनावी मुद्दा बनाकर जनता को प्रभावित करने की कोशिश करती है।
विदेश नीति पर बहस
पित्रोदा के इस बयान ने विदेश नीति और पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर भी चर्चा छेड़ दी है। एक ओर जहां कई लोग मानते हैं कि पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार से क्षेत्रीय शांति और विकास संभव है, वहीं दूसरी ओर यह तर्क भी दिया जा रहा है कि पाकिस्तान जैसे देश पर भरोसा करना भारत के लिए खतरनाक हो सकता है।
भारत कई बार आतंकवाद और सीमा पार हमलों का शिकार हो चुका है। ऐसे में आम जनता का एक बड़ा वर्ग मानता है कि पाकिस्तान के प्रति किसी भी तरह की नर्मी दिखाना सही नहीं है।
सैम पित्रोदा का “पड़ोसी देश घर जैसे लगते हैं” वाला बयान कांग्रेस के लिए नई मुसीबत लेकर आया है। भाजपा ने पहले ही इस पर आक्रामक रुख अपना लिया है और आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर चुनावी रैलियों तक गूंज सकता है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस को ऐसे बयानों से सावधान रहना चाहिए क्योंकि ये भाजपा के लिए “फ्री में मिला चुनावी हथियार” साबित होते हैं। वहीं, यह भी सच है कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते ज़रूरी हैं—लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान के साथ “घर जैसा” रिश्ता कभी संभव हो पाएगा?