Sambhal Jama Masjid vs Harihar Mandir Case: Allahabad High Court Reserves Verdict on ASI Survey Dispute
संभल जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, ASI सर्वे को लेकर उठा सवाल
AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर को लेकर चल रहे विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 मई को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। यह मामला वर्षों पुराना धार्मिक विवाद है, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि मौजूदा जामा मस्जिद एक पुराने मंदिर को तोड़कर बनाई गई है।
क्या है मामला?
संभल के मोहल्ला कोट पूर्वी इलाके में स्थित जामा मस्जिद को लेकर अधिवक्ता हरिशंकर जैन और अन्य सात लोगों ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में एक वाद दायर किया था। उन्होंने दावा किया कि यह मस्जिद असल में एक मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है, जिसे ‘श्री हरिहर मंदिर’ कहा जाता है।
इस वाद में हिंदू पक्ष ने मस्जिद के परिसर में प्रवेश करने और पूजा करने का अधिकार मांगा है। अदालत में यह भी कहा गया कि यह स्थल पहले एक मंदिर था और उसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं।
एएसआई सर्वे का आदेश
संभल की स्थानीय अदालत ने इस विवादित स्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था। इसके लिए एक अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति की गई, जिसने 19 और 24 नवंबर 2024 को मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया। अदालत ने 29 नवंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
इस आदेश के खिलाफ मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि बिना किसी विस्तृत सुनवाई के और बहुत जल्दबाजी में सर्वेक्षण का आदेश दे दिया गया, जो न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध है।
हाईकोर्ट में सुनवाई
मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ के समक्ष हुई। अदालत ने मस्जिद कमेटी, मंदिर पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के वकीलों की दलीलें सुनीं। सभी पक्षों की बात सुनने के बाद न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।
पिछली सुनवाई और हलफनामे
इससे पहले, 5 मई को ASI ने अपना जवाबी हलफनामा अदालत में दाखिल किया था, जिसमें मस्जिद के ऐतिहासिक तथ्यों पर अपनी बात रखी गई थी। इसके बाद अदालत ने मस्जिद कमेटी को ‘रिज्वाइंडर’ दाखिल करने का अवसर दिया और 13 मई को सुनवाई की अगली तारीख तय की गई थी।
मस्जिद कमेटी की आपत्तियाँ
मस्जिद कमेटी की ओर से कहा गया कि जिस दिन मामला दर्ज हुआ, उसी दिन अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति करके तुरंत सर्वे का आदेश दे दिया गया, जो न्याय की मूल भावना के विपरीत है। उनके अनुसार, इस तरह की प्रक्रिया न्यायिक संतुलन को प्रभावित करती है और धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकती है।
हिंदू पक्ष का तर्क
वहीं हिंदू पक्ष का दावा है कि हरिहर मंदिर को मुग़ल काल में ध्वस्त कर दिया गया था और वहां मस्जिद बना दी गई। उनका कहना है कि यह धार्मिक स्थल हिंदू आस्था का प्रतीक था और वहां के अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं।
यह मामला न केवल एक धार्मिक विवाद है, बल्कि इतिहास और आस्था से जुड़ा मुद्दा भी है। ASI के सर्वेक्षण और अदालत की सुनवाई से जुड़े दस्तावेज़ अब निर्णय का आधार बनेंगे। हाईकोर्ट का यह निर्णय पूरे देश में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है क्योंकि इस तरह के कई मामले विभिन्न राज्यों में लंबित हैं।
अब सबकी नजरें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो आने वाले समय में इस विवाद पर अंतिम दिशा तय करेगा।
The Allahabad High Court has reserved its verdict in the controversial Sambhal Jama Masjid vs Harihar Mandir case, which has stirred debate over the historical origins of a religious site in Uttar Pradesh. The ASI survey, claims of temple demolition, and arguments presented by advocates like Harishankar Jain have kept the case in focus. The dispute hinges on whether a temple existed at the site before the mosque, with the Allahabad High Court playing a key role in deciding this sensitive matter.