AIN NEWS 1 : पाकिस्तान में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लंबे समय से चल रही सांप्रदायिक हिंसा एक बार फिर तेज हो गई है। हालिया झड़पों में अब तक 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जबकि सैकड़ों घायल हैं। यह संघर्ष देश के आतंकवाद और आर्थिक बदहाली से पहले से ही जूझ रहे हालात को और खराब कर रहा है।
क्यों हो रही है शिया-सुन्नी हिंसा?
शिया और सुन्नी इस्लाम धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं। दोनों के बीच ऐतिहासिक मतभेद और विश्वासों में भिन्नता को लेकर टकराव लंबे समय से चला आ रहा है। पाकिस्तान में इन मतभेदों का इस्तेमाल अक्सर राजनीतिक और कट्टरपंथी ताकतों द्वारा अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है।
इस बार की हिंसा की शुरुआत कुछ विवादास्पद धार्मिक मुद्दों पर हुई, लेकिन जल्द ही यह झगड़े बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक संघर्ष में बदल गए। कट्टरपंथी संगठनों और आतंकवादी गुटों ने स्थिति को और खराब कर दिया।
कितने प्रभावित हुए हैं लोग?
अब तक 150 से अधिक लोग इस हिंसा में मारे गए हैं। घायलों की संख्या सैकड़ों में है। इस हिंसा का असर न केवल जान-माल पर पड़ा है, बल्कि देश में सांप्रदायिक सौहार्द को भी गहरी चोट पहुंची है। कई परिवार अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करने को मजबूर हुए हैं।
सरकार और प्रशासन का रुख
पाकिस्तान की सरकार और स्थानीय प्रशासन हिंसा को रोकने में अब तक नाकाम साबित हुए हैं। हालांकि, हालात को नियंत्रण में लाने के लिए दोनों संप्रदायों के नेताओं की बैठक आयोजित की गई। इसमें शांति बनाए रखने की अपील की गई है, लेकिन जमीन पर इसके असर को लेकर संदेह बना हुआ है।
विचारधारा की राजनीति और बाहरी हस्तक्षेप
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में शिया-सुन्नी संघर्ष को बाहरी ताकतें भी भड़काती हैं। कई बार इस संघर्ष को क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति से जोड़ा जाता है। ईरान और सऊदी अरब के बीच शक्ति संतुलन की खींचतान का असर पाकिस्तान पर भी दिखता है।
आगे का रास्ता
पाकिस्तान को इस संकट से उबरने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों स्तरों पर प्रयास करने होंगे। जहां तत्काल हिंसा रोकने और कानून-व्यवस्था बहाल करने की जरूरत है, वहीं दीर्घकालिक समाधान के लिए सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने और कट्टरपंथी संगठनों पर नकेल कसने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
शिया-सुन्नी संघर्ष पाकिस्तान के लिए एक गंभीर समस्या है, जिसने न केवल समाज को विभाजित किया है, बल्कि देश की सुरक्षा और स्थिरता को भी खतरे में डाल दिया है। यह जरूरी है कि इस हिंसा का स्थायी समाधान खोजा जाए, ताकि पाकिस्तान अपने विकास और शांति की ओर कदम बढ़ा सके।