AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के डेढ़ लाख शिक्षामित्रों को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि न तो उनका मानदेय बढ़ाया जाएगा और न ही उन्हें स्थायी किया जाएगा। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह ने कहा कि फिलहाल इन मांगों पर विचार नहीं हो रहा है।
मानदेय नहीं बढ़ा, 20 हजार ने छोड़ी नौकरी
प्रदेश में शिक्षामित्रों की संख्या 2017 में 1.75 लाख थी, जो अब घटकर 1.48 लाख रह गई है। मानदेय में वृद्धि न होने और अन्य कारणों से करीब 20 हजार शिक्षामित्र नौकरी छोड़ चुके हैं। वर्तमान में शिक्षामित्रों को सिर्फ 10,000 रुपये मासिक मानदेय मिलता है, जो न्यूनतम मजदूरी से भी कम है।
शिक्षामित्रों की भूमिका और सरकार का रुख
परिषदीय स्कूलों में शिक्षामित्रों की संख्या के चलते शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर है। वर्तमान में यह अनुपात 1:22 है, जबकि मानक 1:30 होना चाहिए। इसके बावजूद सरकार ने सहायक अध्यापक भर्ती की जरूरत से इनकार किया है।
2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने शिक्षामित्रों की समस्याओं का समाधान करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
मानदेय पर कमेटी बनी, पर रिपोर्ट ठंडे बस्ते में
2018 में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी, जिसे तीन महीने में शिक्षामित्रों के मानदेय बढ़ाने और अन्य समस्याओं के समाधान पर रिपोर्ट देनी थी। हालांकि, इस रिपोर्ट पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
सहायक अध्यापक बनने के बाद फिर शिक्षामित्र बनाए गए
सपा सरकार के दौरान 2013-14 में 1.78 लाख शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया गया था। लेकिन, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस समायोजन को रद्द कर दिया। इसके बाद ये शिक्षामित्र वापस 3,500 रुपये के मानदेय पर आ गए।
सरकार ने आंदोलन के बाद मानदेय बढ़ाकर 10,000 रुपये किया और सहायक अध्यापक भर्ती में वरीयता दी। हालांकि, अब तक केवल 13,000 शिक्षामित्र ही सहायक अध्यापक बन सके हैं।
शिक्षामित्रों की मांग और समस्याएं
शिक्षामित्रों की मांग है कि उनका मानदेय 30,000 रुपये किया जाए और उन्हें स्थायी करने के लिए नई नियमावली बनाई जाए। उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव के अनुसार, सात साल से मानदेय में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इस दौरान 2,700 से ज्यादा शिक्षामित्रों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 30 से अधिक ने आत्महत्या की है।
महंगाई और न्यूनतम मजदूरी का मुद्दा
केंद्र सरकार के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर कुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 1,035 रुपये प्रतिदिन है। वहीं, शिक्षामित्रों का मासिक मानदेय मात्र 10,000 रुपये है, जो इस मानक से भी कम है। भाजपा शिक्षक एमएलसी उमेश द्विवेदी ने कहा कि महंगाई के इस दौर में इतने कम वेतन में परिवार चलाना संभव नहीं है।
क्या कहते हैं नेता और विशेषज्ञ?
अनिल यादव (प्रदेश अध्यक्ष, दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ): शिक्षामित्रों का मानदेय 30,000 रुपये किया जाना चाहिए और उन्हें स्थायी करने के लिए नई नियमावली बनाई जानी चाहिए।
उमेश द्विवेदी (शिक्षक एमएलसी, भाजपा): शिक्षामित्रों का मानदेय हर साल बढ़ना चाहिए। कम से कम 30,000 रुपये मासिक मानदेय और महंगाई भत्ता मिलना जरूरी है।
शिक्षामित्रों की समस्याएं कई वर्षों से लंबित हैं। न केवल उनका मानदेय न्यूनतम मजदूरी से कम है, बल्कि स्थायित्व की मांग भी अनसुनी की जा रही है। शिक्षामित्र सरकार से अपेक्षा कर रहे हैं कि उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।