AIN NEWS 1: छोटू राम (जन्म: राम रिछपाल; 24 नवंबर 1881 – 9 जनवरी 1945) ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के एक महत्वपूर्ण राजनेता और सामाजिक विचारक थे। जाट समुदाय से संबंधित, वे भारतीय उपमहाद्वीप के उत्पीड़ित समुदायों के अधिकारों के लिए लड़े। 1937 में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें नाइट की उपाधि दी गई थी। वे नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे और कांग्रेस व मुस्लिम लीग के प्रभाव से पंजाब को स्वतंत्र रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
छोटू राम का जन्म 24 नवंबर 1881 को पंजाब के रोहतक जिले के गढ़ी सांपला गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम चौधरी सुखीराम सिंह ओहल्यान और मां का नाम सरला देवी था। छोटे होने के कारण उन्हें ‘छोटू राम’ उपनाम मिला। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा 1891 में शुरू की और 1905 में सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से संस्कृत में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
राजनीतिक और सामाजिक योगदान
छोटू राम ने पंजाब बंधक भूमि बहाली अधिनियम (1934) और पंजाब ऋणी संरक्षण अधिनियम (1936) जैसे महत्वपूर्ण कृषि कानूनों की ओर इशारा किया। इन कानूनों ने पंजाब के भूस्वामियों को साहूकारों के बंधनों से मुक्त किया और उनकी भूमि की स्वामित्व की स्थिति को बहाल किया।
वे जाट सभा के प्रमुख संयोजक भी थे, जो पंजाब के भूस्वामियों और काश्तकारों की आवाज़ थे। उनके कार्यों के कारण हजारों एकड़ भूमि पर किसानों का कब्जा बहाल हुआ।
सामाजिक कार्य और शिक्षा
छोटू राम ने 1916 में जाट गजट नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र की शुरुआत की, जो आज भी प्रकाशित हो रहा है। वे 26 मार्च 1913 को रोहतक में जाट-एंग्लो संस्कृत स्कूल के संस्थापक थे।
मृत्यु और विरासत
9 जनवरी 1945 को लाहौर में छोटू राम का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार रोहतक में किया गया, जहाँ हजारों लोग श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे। उनकी याद में कई संस्थान और स्मारक बनाए गए हैं, जैसे:
– हरियाणा के मुरथल में दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय।
– सर छोटू राम कॉलेज ऑफ एजुकेशन, कुरुक्षेत्र।
– मेरठ में सर छोटू राम इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी।
– 1995 में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट।
सारांश
सर छोटू राम ने भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नीतियों और सामाजिक सुधारों ने किसानों और भूस्वामियों के अधिकारों की रक्षा की और उनके लिए स्थिरता और सम्मान की ओर कदम बढ़ाए। उनकी विरासत आज भी उनके कार्यों और दृष्टिकोणों के माध्यम से जीवित है।