Sunday, January 12, 2025

इलाहाबाद: “बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा देश: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव का बयान”?

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AIN NEWS 1: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव ने रविवार को विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिए अपने बयान से हर तरफ चर्चा बटोरी। उन्होंने कहा कि भारत में कानून बहुसंख्यकों की इच्छा और कल्याण के अनुसार काम करता है। उनके इस बयान ने कई सवालों को जन्म दिया और व्यापक प्रतिक्रिया प्राप्त की।

देश की कार्यप्रणाली पर बयान

जस्टिस यादव ने अपने संबोधन में कहा, “यह हिंदुस्तान है और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा। यह कानून है। कानून का उद्देश्य बहुसंख्यकों के कल्याण और उनकी खुशी सुनिश्चित करना है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह बयान एक जज के रूप में नहीं बल्कि एक नागरिक के रूप में दिया गया है।

धार्मिक परंपराओं पर विचार

अपने संबोधन में उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म की परंपराओं की तुलना करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में सती प्रथा, जौहर और अस्पृश्यता जैसी प्रथाओं को खत्म कर दिया गया, लेकिन मुस्लिम समुदाय में अभी भी हलाला, तीन तलाक और एक से अधिक पत्नियां रखने की प्रथा जारी है।

जस्टिस यादव ने कहा, “हमारे शास्त्रों और वेदों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा गया है। ऐसे में, महिलाओं का अपमान करने वाली प्रथाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता। चार पत्नियां रखना, हलाला करना और तीन तलाक का अधिकार मांगना महिला के अधिकारों का उल्लंघन है।”

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर टिप्पणी

जस्टिस यादव ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की चर्चा करते हुए कहा कि यह किसी विशेष समुदाय की वकालत नहीं करता, बल्कि देश की भलाई के लिए है। उन्होंने कहा कि यह विषय सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाया है।

राजा राम मोहन राय का उदाहरण

उन्होंने राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों की सराहना की, जिन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय में भी हलाला, तीन तलाक और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ पहल करने का साहस होना चाहिए।

सामाजिक सुधार की आवश्यकता

जस्टिस यादव ने कहा कि समाज में सुधार के लिए हर समुदाय को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक सभी समुदाय अपनी कुप्रथाओं को खत्म करने की दिशा में काम नहीं करते, समाज का समग्र विकास संभव नहीं है।

यह बयान बहस का मुद्दा बन गया है, और इसे लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जस्टिस यादव ने अपने विचार स्पष्टता से रखे, लेकिन उनके बयान ने कई संवेदनशील सवाल खड़े किए हैं।

 

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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