AIN NEWS 1 Success Story : कहते है करने वाले के पास कभी भी मजबूरियां नहीं होती वो केवल रास्ते बनाता चलता है। ऐसे ही मुंबई की एक चॉल से निकली सफलता की ऐसी कहानी, जिसने पूरे देश के करोड़ों लोगों की जिन्दगी आसान बना दी. वो हसमुख ठाकोरदास पारेख ने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई बेहद ही गरीबी के माहौल में पूरी की और जिंदगीभर प्राइवेट नौकरियां करके वह रिटायर भी हो गए. लेकिन, उनका हौसला कम नहीं हुआ और उन्होने 66 साल की उम्र में भी एक ऐसी कंपनी की नींव रखी, जो आज हमारे देश का सबसे बड़ा बैंक बन चुका है. आज हम यहां पर बात कर रहे हैं HDFC बैंक की, जिसका अपना मार्केट कैप हाल में ही 9 लाख करोड़ रुपये से ज्‍यादा तक पहुंच गया है. बता दें उन्‍होंने पहली बार ही 1978 में कुछ लोगो को होम लोन बांटा था और यह पूरा सिलसिला अब तक कई करोड़ों लोगों तक पहुुंच चुका है.वैसे तो बैंकिंग सेवाओं की समझ हसमुख ठाकोरदास पारेख को उनके पिता से उन्हे विरासत में ही मिली थी. जान ले हसमुख पारेख मुंबई से ही ग्रेजुएशन के बाद अपनी हायर एजुकेशन के लिए लंदन चले गए. ओर जब वो ब्रिटेन से वापस भारत लौटने के बाद उन्होंने अपने सफल करियर की शुरुआत की और भारत के इस समय के सबसे बड़े बैंक HDFC बैंक की नींव रखी.

बता दें उन्होने पढ़ाई के साथ साथ की पार्ट टाइम जॉब

यहां हम आपको बता दें हसमुख ठाकोरदास पारेख अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब किया. मुंबई से इन्होंने इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें ब्रिटेन में आगे की पढ़ाई करने का एक अच्छा मौका मिला, जहां उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बैंकिंग और फाइनेंस में ही बीएससी की डिग्री हासिल की. इसके बाद ही हसमुख पारेख भारत लौट आए और मुंबई के मशहूर सेंट जेवियर्स कॉलेज में लेक्चरर के रूप में अपना काम किया.इसके बाद फिर उन्होंने स्टॉक ब्रोकिंग फर्म हरकिसनदास लखमीदास के साथ मे जुड़कर फाइनेंशियल मार्केट में शानदार करियर की शुरुआत भी की. आईसीआईसीआई में वे अपने 16 साल के करियर के बाद सेवानिवृत्त होने से पहले उप महाप्रबंधक से अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तक भी पहुंचे.

उन्होने अपने रिटायरमेंट के बाद से शुरू किया बैंकिंग कारोबार

अब उन्होने 66 साल की उम्र में जब लोग सेवानिवृत्ति के बाद से घर बसा रहे थे, तब हसमुखभाई ने भारत के मध्यम वर्ग के लोगो के घर के सपनों को पूरा करने के लिए एक बहुत जबरदस्त आइडिया के साथ शानदार वापसी की. उन्होंने 1977 में ही एक फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के रूप में एचडीएफसी की स्थापना उस समय पर की और 1978 में उन्होने अपना पहला होम लोन दिया.ओर 1984 तक एचडीएफसी 100 करोड़ रुपये से अधिक के ही वार्षिक ऋण को मंजूरी दे रहा था. 1992 में भारत सरकार ने भी एचटी पारेख को पद्म भूषण सम्मान से ही सम्मानित किया. ओर जब एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक का एक में विलय हो गया, जिससे 14.14 लाख करोड़ रुपये की एक बड़ी इकाई बन गई.बता दें कि एचडीएफसी के पूर्व चेयरमैन दीपक पारेख, हसमुख ठाकोरदास पारेख के ही भतीजे हैं. हसमुख पारेख ने जब भी इस बैंक की नींव रखी तो उन्होंने दीपक पारेख को भी लंदन से बुलाकर अपने बिजनेस से जुड़ने के लिए कहा था. कौन जानता था कि हसमुख ठाकोरदास का ये फैसला एक ऐतिहासिक साबित होगा.

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