AIN NEWS 1 | बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से साफ कहा कि अगर वे सितंबर में साबित कर देते हैं कि यह प्रक्रिया अवैध है, तो कोर्ट तुरंत इस पर रोक लगा देगा।
मामला क्या है?
बिहार में चुनाव आयोग ने SIR के तहत करीब 5 करोड़ मतदाताओं की दोबारा जांच शुरू की है। यह जांच सिर्फ कुछ महीनों में पूरी की जानी है, जिससे कई राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने चिंता जताई है। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं, जिससे लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है।
सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल, राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा, वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीयूसीएल और नेशनल फेडरेशन फॉर इंडियन वूमेन जैसे कई याचिकाकर्ता शामिल थे।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से सवाल किया –
“साल 2003 में मतदाता सूची में दर्ज 5 करोड़ लोगों को दोबारा जांचने का क्या औचित्य है, और वह भी इतने कम समय में?”
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि यदि सितंबर तक यह साबित हो गया कि प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी है, तो कोर्ट तुरंत इसे रुकवा देगा।
कोर्ट ने कहा –
“नागरिकता तय करने का नियम संसद बनाती है, लेकिन जो नियम बने हैं, उनका पालन सबको करना होगा। अगर आपकी दलीलें सही साबित होती हैं, तो हम प्रक्रिया रोक देंगे। जरूरत पड़ी तो कल ही नहीं, परसों भी सुनवाई करेंगे, ताकि किसी को यह शिकायत न हो कि उसे मौका नहीं दिया गया।”
योगेंद्र यादव की चिंता
सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत में कहा कि मतदाता सूची की तुलना राज्य के वयस्क नागरिकों की संख्या से करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया में जहां भी नागरिकों को खुद को वोटर साबित करने की जिम्मेदारी दी गई है, वहां बड़ी संख्या में लोग लिस्ट से बाहर हो जाते हैं, और ज्यादातर गरीब तबके के होते हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा –
“अगर किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ना है और 25 सितंबर को उसे पता चले कि उसका नाम सूची से हटा दिया गया है, तो यह उसका मुकाबले से बाहर करने का सबसे आसान तरीका होगा।”
योगेंद्र यादव ने यह भी बताया कि महिलाओं की बड़ी संख्या को स्थानांतरित (shifted) बता दिया गया है, जबकि हकीकत में पुरुषों का पलायन ज्यादा होता है। उन्होंने दावा किया कि 65 लाख लोगों को सूची से हटाना बेहद गंभीर मामला है।
कोर्ट में लाइव उदाहरण
योगेंद्र यादव एक महिला और एक पुरुष को भी कोर्ट में लेकर आए, जिन्हें ड्राफ्ट लिस्ट में “मृत” के रूप में दर्ज किया गया था, जबकि वे जीवित हैं। यह उदाहरण उन्होंने प्रक्रिया की खामियों को दिखाने के लिए पेश किया।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने इन आरोपों का विरोध किया और कहा –
“ऐसी बातें कोर्ट के बजाय टीवी स्टूडियो में करनी चाहिए। यहां ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे आसमान टूट पड़ा हो।”
उन्होंने यह भी कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट में नाम छूट जाने का मतलब यह नहीं है कि वह फाइनल लिस्ट में नहीं आएगा। ड्राफ्ट चरण में सुधार संभव है, इसलिए यह कोई असाधारण स्थिति नहीं है।
मुख्य बिंदु
5 करोड़ मतदाताओं की जांच — बहुत कम समय में इतनी बड़ी प्रक्रिया पर सवाल।
याचिकाकर्ताओं की दलील — प्रक्रिया से लाखों नाम गलत तरीके से हट सकते हैं।
कोर्ट का आश्वासन — सितंबर में गड़बड़ी साबित हुई तो तुरंत रोक लगेगी।
चुनाव आयोग का रुख — ड्राफ्ट लिस्ट में गलती होने पर फाइनल लिस्ट में सुधार संभव।
राजनीतिक और सामाजिक चिंता — गरीब और हाशिए के तबके पर असर का डर।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में साफ संदेश दिया है कि अगर SIR प्रक्रिया में कोई भी अवैधता साबित हुई, तो कोर्ट कार्रवाई करने में देर नहीं करेगा। आने वाले महीनों में यह मामला न सिर्फ बिहार, बल्कि देशभर में चुनावी पारदर्शिता और मतदाता अधिकारों के लिए एक अहम मिसाल बन सकता है।
The Supreme Court of India has issued a strong warning regarding the Bihar Special Intensive Revision (SIR) of the voter list, stating that if the process is proven illegal by September, it will be halted immediately. The re-verification covers over 50 million voters, raising fears of mass voter exclusion. Prominent petitioners, including Yogendra Yadav, KC Venugopal, and Mahua Moitra, have alleged serious irregularities, especially the wrongful removal of women and poor voters. The Election Commission defends the process, calling it standard practice, while the Supreme Court promises swift hearings to protect voter rights.