AIN NEWS 1 | भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा एक अहम मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पर पहुंच गया है। कोर्ट ने सोमवार (18 अगस्त 2025) को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि मुसलमानों को भी इंडियन सक्सेशन एक्ट के दायरे में लाया जाए या नहीं। अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कोई भी मुसलमान अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही वसीयत कर सकता है। शेष संपत्ति की वसीयत करने के लिए वारिसों की मंजूरी अनिवार्य होती है।
यह मामला न केवल कानूनी और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समानता और मौलिक अधिकारों के सवाल भी उठाता है।
क्या कहा याचिका में?
यह याचिका शेहीन पुलिक्कल वीत्तील ने दायर की है, जो अबू धाबी में रहकर वकालत करती हैं। उनका कहना है कि कुरान मुसलमानों को वसीयत की अनुमति देता है, लेकिन भारत में लागू मुस्लिम पर्सनल लॉ इस अधिकार को सीमित कर देता है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि यह प्रावधान संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है, जैसे:
अनुच्छेद 25 – धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 14 और 15 – समानता का अधिकार
अनुच्छेद 21 – गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार
अनुच्छेद 300A – संपत्ति का अधिकार
बेटों और बेटियों में भेदभाव?
याचिका में खास तौर पर यह मुद्दा उठाया गया है कि मौजूदा मुस्लिम पर्सनल लॉ लिंग समानता के खिलाफ है। उदाहरण के लिए, अगर कोई मुस्लिम पिता चाहता है कि उसकी संपत्ति उसके बेटों और बेटियों को बराबर हिस्से में मिले, तो वह ऐसा नहीं कर सकता।
वर्तमान कानून उसे केवल एक-तिहाई संपत्ति की वसीयत करने की अनुमति देता है। इसका मतलब यह हुआ कि पिता अपनी इच्छानुसार पूरी संपत्ति का बंटवारा नहीं कर सकता, भले ही वह अपने सभी बच्चों को बराबरी का हक देना चाहता हो।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
इस मामले की सुनवाई जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए. एस. चंदुरकर की बेंच ने की। थोड़ी देर की बहस के बाद कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि इस मुद्दे पर पहले से लंबित याचिका के साथ ही सुनवाई की जाएगी।
इसका अर्थ यह है कि आने वाले समय में मुस्लिम पर्सनल लॉ और भारतीय संविधान के बीच संतुलन पर एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आ सकता है।
क्यों है यह मुद्दा अहम?
भारत में धर्म और कानून दोनों का आपसी संबंध बेहद संवेदनशील माना जाता है। हिंदू और अन्य धर्मों के लोग वसीयत के मामले में अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता रखते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के लिए नियम अलग हैं।
यह मामला केवल मुसलमानों के व्यक्तिगत अधिकारों का नहीं है, बल्कि लिंग समानता, धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार जैसे व्यापक मुद्दों से भी जुड़ा है।
याचिकाकर्ता का तर्क
शेहीन पुलिक्कल का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ का मौजूदा प्रावधान कुरान की आत्मा और सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। कुरान वसीयत की अनुमति देता है, लेकिन भारत में उसका पालन सीमित तरीके से किया जा रहा है।
उनके अनुसार, यह कानून मुसलमानों को अपने वारिसों के लिए न्यायसंगत निर्णय लेने से रोकता है और आधुनिक समाज में यह अनुचित है।
समाज और कानून पर असर
अगर सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों को पूरी संपत्ति की वसीयत का अधिकार दे देता है, तो यह न केवल पर्सनल लॉ में एक बड़ा बदलाव होगा, बल्कि इससे परिवार और समाज की संरचना पर भी असर पड़ेगा।
बेटियां और बेटे बराबरी के साथ संपत्ति पा सकते हैं।
बुजुर्ग अपनी पूरी संपत्ति अपनी इच्छा के अनुसार बांट पाएंगे।
यह फैसला भारतीय समाज में समानता और धार्मिक स्वतंत्रता की नई मिसाल बन सकता है।
मुस्लिम वसीयत से जुड़ा यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था और समाज दोनों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह बहस सिर्फ कानून की नहीं, बल्कि समानता और न्याय की भी है। सुप्रीम कोर्ट का आने वाला फैसला न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए दिशा तय करेगा।