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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, कहा- टिप्पणी संवेदनहीन और अमानवीय?

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Supreme Court Stays Allahabad High Court Order on Attempt to Undress Not Being Rape

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित आदेश पर लगाई रोक, कहा- टिप्पणी अमानवीय और कानून के विपरीत

AIN NEWS 1: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला के निजी अंगों को छूने और उसके कपड़े खोलने की कोशिश को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी को कानून के सिद्धांतों के खिलाफ और पूरी तरह अमानवीय बताया।

सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख

बुधवार को हुई सुनवाई में जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में शीर्ष अदालत इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणियां न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं। पीठ ने आदेश दिया कि हाईकोर्ट के 17 मार्च के फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में दिए गए बयान न केवल असंवेदनशील हैं, बल्कि अमानवीय भी हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला पवन और आकाश नामक दो व्यक्तियों से जुड़ा है, जिन पर एक नाबालिग लड़की के साथ दुर्व्यवहार करने, उसके निजी अंगों को छूने और उसके पायजामे का नाड़ा खोलने की कोशिश करने का आरोप था। कासगंज के विशेष न्यायालय ने इस मामले में दोनों को दुष्कर्म और पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धाराओं के तहत समन जारी किया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा ने अपने फैसले में कहा था कि इस घटना को दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, बल्कि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 (एम) के तहत एक गंभीर लेकिन कम गंभीर अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया

इस फैसले के बाद “वी द वूमन ऑफ इंडिया” समूह ने मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना के समक्ष मामला उठाया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला बेहद गंभीर आपत्तियों के लायक है। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि यह फैसला न्यायपालिका की संवेदनहीनता को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें जज के खिलाफ कठोर शब्दों का प्रयोग करने का खेद है, लेकिन सच्चाई यही है।

फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश किसी क्षणिक आवेग में नहीं दिया गया था, बल्कि इसे पिछले साल नवंबर में सुरक्षित रखा गया था। इसका अर्थ यह है कि जज ने सोच-समझकर यह फैसला लिखा था।

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विवादास्पद टिप्पणियों पर रोक लगाने का मतलब यह होगा कि इनका इस्तेमाल किसी भी अन्य न्यायिक कार्यवाही में आरोपी को राहत देने के लिए नहीं किया जा सकेगा।

यूपी सरकार और हाईकोर्ट को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट में सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक रजिस्ट्रार को निर्देश दिया गया कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को यह आदेश तुरंत सूचित करें और इसे वहां के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करें।

आगे की सुनवाई 15 अप्रैल को

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को निर्धारित की है। इस दौरान एक वकील ने कहा कि उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। पीठ ने इस पर कहा कि स्वतः संज्ञान कार्यवाही के साथ याचिका की सुनवाई भी की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस मामले ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायपालिका से संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती है और महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के दुर्व्यवहार को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

The Supreme Court of India has stayed the Allahabad High Court’s controversial order that stated attempting to undress a woman does not qualify as rape. The Supreme Court judgment strongly criticized the insensitive remarks, calling them inhumane and against legal principles. This case, involving sexual assault charges under the Indian Penal Code (IPC) and POCSO Act, has sparked legal and public outrage. The judicial review was initiated after the women’s rights group “We the Women of India” raised concerns. The next hearing is scheduled for April 15, and the Supreme Court has sought responses from the central and UP governments along with the Allahabad High Court.

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