AIN NEWS 1 | दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा आदेश जारी किया। अदालत ने कहा कि सभी आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखा जाए, ताकि रेबीज जैसी गंभीर समस्या को नियंत्रित किया जा सके। लेकिन इस आदेश के सामने आते ही राजनीतिक नेताओं और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसकी कड़ी आलोचना शुरू कर दी।
प्रियंका चतुर्वेदी का रिएक्शन
शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ एक फरमान जारी कर देना पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने कहा,
“सरकार के पास आवारा जानवरों के लिए बजट बेहद कम है। अगर बिना तैयारी के इस आदेश को लागू किया गया, तो यह उन निर्दोष जानवरों के साथ अन्याय होगा, जो अपना पक्ष भी नहीं रख सकते।”
प्रियंका का मानना है कि आम लोगों में आवारा कुत्तों को लेकर डर जरूर बढ़ा है, लेकिन इसका हल मानवीय तरीके से निकालना चाहिए।
मेनका गांधी की सख्त आलोचना
पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को “अव्यावहारिक” और “वित्तीय रूप से अनुपयुक्त” करार दिया।
मेनका गांधी ने कहा कि कुछ हफ्तों में सभी कुत्तों को पकड़कर आश्रय स्थलों में रखना न केवल मुश्किल है, बल्कि इससे क्षेत्र का पारिस्थितिकी संतुलन भी बिगड़ सकता है।
उनके अनुसार, यह काम इतना जटिल है कि इसे जमीन पर लागू करना लगभग नामुमकिन है।
प्रियंका गांधी की भावुक प्रतिक्रिया
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा:
“शहर के सभी आवारा कुत्तों को कुछ ही हफ्तों में आश्रय स्थलों में भेजना बेहद अमानवीय कदम होगा। पर्याप्त आश्रय स्थल भी मौजूद नहीं हैं, और शहरी इलाकों में अक्सर जानवरों के साथ क्रूरता की जाती है।”
उन्होंने कहा कि इस समस्या का एक बेहतर और मानवीय समाधान खोजा जाना चाहिए, ताकि इन बेजुबान जानवरों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने आदेश दिया कि दिल्ली सरकार, गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद के नगर निकाय सभी आवारा पशुओं को हटाकर आश्रय स्थलों में रखें।
अदालत ने कहा कि खासतौर पर बच्चों में कुत्तों के काटने और रेबीज के मामलों की संख्या चिंताजनक है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली में 6 से 8 हफ्तों के भीतर लगभग 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाए जाएं और भविष्य में इनकी संख्या बढ़ाई जाए।
चुनौतियां और सवाल
इस आदेश को लागू करने में कई चुनौतियां सामने हैं:
आश्रय स्थलों की कमी – फिलहाल इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों को रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।
कम बजट – पशु कल्याण के लिए सरकारी बजट बेहद सीमित है।
मानव संसाधन की कमी – कुत्तों को पकड़ना, उनका इलाज करना और उनकी देखभाल करना एक बड़ा प्रशासनिक काम है।
पारिस्थितिकी संतुलन – अचानक से सभी कुत्तों को हटाने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है।
जनता और विशेषज्ञों की राय
जहां एक तरफ कुछ लोग मानते हैं कि आवारा कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण जरूरी है, वहीं दूसरी तरफ पशु प्रेमी और विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका हल मानवीय और वैज्ञानिक तरीके से निकाला जाए।
कई एनजीओ का सुझाव है कि बड़े पैमाने पर स्टरलाइजेशन प्रोग्राम, टीकाकरण और जिम्मेदार पेट ओनरशिप को बढ़ावा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश सार्वजनिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर दिया गया है, लेकिन इसके लागू होने के तरीके पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। प्रियंका चतुर्वेदी, मेनका गांधी और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं का मानना है कि केवल आदेश जारी करने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि इसके लिए ठोस योजना, बजट और मानवीय दृष्टिकोण जरूरी है।
अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इस आदेश को कैसे लागू करती है और क्या यह विवाद आगे और गहराता है।
The Supreme Court of India’s recent order to relocate all stray dogs in Delhi-NCR to shelters within weeks has faced strong criticism from political leaders and animal rights activists. Shiv Sena MP Priyanka Chaturvedi, animal rights advocate Maneka Gandhi, and Congress leader Priyanka Gandhi have called the directive inhumane, impractical, and financially unfeasible. While the court cited public safety and rabies prevention, critics argue that there are insufficient shelters, low government budgets for animal welfare, and more humane solutions that should be explored.