AIN NEWS 1 दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा है, जो 1985 में असम समझौते के पालन के लिए संशोधन के माध्यम से जोड़ी गई थी। यह निर्णय पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा लिया गया है।
वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जो भी धारा 6A ने असम समझौते के अनुसार अधिकारों को प्रतिबिंबित किया, उसे इस अदालत के बहुमत द्वारा बरकरार रखा गया है। इसलिए, धारा 6A के तहत जो अधिकार असम समझौते के आधार पर मान्यता प्राप्त थे, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है।”
असम समझौता और धारा 6A
1985 में असम समझौते के तहत, उन लोगों के अधिकारों की रक्षा की गई थी जो 1971 से पहले भारत आए थे। धारा 6A ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसे प्रवासियों को भारत में नागरिकता प्रदान की जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उन प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा और भी मजबूत हुई है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का महत्व इस लिहाज से भी है कि यह प्रवासी समुदाय के लिए एक स्थिरता प्रदान करता है। यह फैसला उन लोगों के लिए राहत का स्रोत है जो लंबे समय से अपने नागरिक अधिकारों के बारे में चिंतित थे।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस निर्णय के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी राय व्यक्त की है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के अनुसार, यह फैसला न केवल असम समझौते की वैधता को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय नागरिकता कानून के तहत प्रवासियों के अधिकारों को एक नई दिशा प्रदान करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत सरकार अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यह निर्णय आने वाले समय में देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखकर असम समझौते के अंतर्गत प्रवासियों के अधिकारों की पुष्टि की है, जो इस समुदाय के लिए एक सकारात्मक कदम है।