AIN NEWS 1: दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले सुनाए। एक जज ने ताहिर हुसैन को जमानत देने से इनकार कर दिया, जबकि दूसरे जज ने इससे असहमत होते हुए अपना अलग रुख अपनाया। यह मामला तब और भी महत्वपूर्ण हो गया जब ताहिर हुसैन ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के टिकट पर चुनावी प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी।
जमानत पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:
ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुनवाई जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच कर रही थी। जस्टिस पंकज मिथल ने अपने फैसले में चुनाव प्रचार के लिए ताहिर हुसैन को जमानत देने से इनकार कर दिया। वहीं, जस्टिस अमानुल्लाह ने इस पर असहमत होकर ताहिर हुसैन को जमानत देने की संभावना जताई। जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि ताहिर हुसैन के खिलाफ 5 सालों से केस चल रहा है और उन्हें कई मामलों में जमानत मिल चुकी है, केवल हत्या के मामले में जमानत का मामला बाकी है।
ताहिर हुसैन की स्थिति:
ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि उनका पिछला रिकॉर्ड बेदाग था और उन्होंने निगम पार्षद के रूप में अच्छा काम किया था। इसके अलावा, उनके वकील ने यह भी बताया कि ताहिर हुसैन 5 सालों से जेल में हैं और उनके खिलाफ लगे आरोपों का समाधान जल्दी होना चाहिए। जस्टिस ने यह भी कहा कि हुसैन के खिलाफ हत्या के मामले में 5 चश्मदीद गवाहों में से केवल 4 की गवाही हुई है, जिससे यह साबित होता है कि जांच एजेंसी मुकदमा तेजी से नहीं चला पा रही है।
ताहिर हुसैन के वकील का पक्ष:
ताहिर हुसैन के वकील ने दावा किया कि उनका मुवक्किल लोगों की मदद कर रहा था, लेकिन उसे खलनायक की तरह पेश किया गया। वकील ने कहा कि ताहिर हुसैन के घर से आपत्तिजनक सामग्री मिलना सही है, लेकिन इस तरह के मामलों में जमानत जल्दी मिल जाती है, फिर भी ताहिर हुसैन पिछले 5 सालों से जेल में है। वकील ने यह भी जोड़ा कि जैसे अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के आबकारी नीति मामले में सुप्रीम कोर्ट से चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मिल गई थी, वैसे ही ताहिर हुसैन को भी अंतरिम जमानत मिलनी चाहिए थी।
जमानत की कानूनी स्थिति:
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि ताहिर हुसैन के वकील का कहना था कि जमानत मिलने से ताहिर हुसैन को चुनावी प्रचार करने का मौका मिलेगा, लेकिन इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चुनाव प्रचार कोई कानूनी या संवैधानिक अधिकार नहीं है। जमानत के लिए यह सिर्फ एक विशेष परिस्थिति है, और कैदी को चुनावी प्रचार के लिए बाहर आने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस पर जस्टिस ने कहा कि यदि ताहिर हुसैन को बाहर आने दिया गया, तो वह वोट डालने का भी अधिकार मांग सकते हैं, जो कि कैदी को नहीं मिल सकता।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश:
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला भी सुनाया कि ताहिर हुसैन को जो नियमित जमानत याचिका 20 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की गई थी, उसका फैसला चुनाव के बाद होगा। इस पर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि जमानत याचिका में कोई वैधता नहीं है क्योंकि यह चुनावी प्रचार के लिए नहीं, बल्कि एक नियमित कानूनी प्रक्रिया के तहत दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुनवाई से साफ है कि कानून के अनुसार, किसी कैदी को चुनाव प्रचार के लिए जमानत नहीं दी जा सकती, और इस मुद्दे पर अदालत ने अपनी स्पष्ट राय दी है। हालांकि, ताहिर हुसैन के वकील ने उनके समर्थन में कई तर्क दिए हैं, फिर भी अदालत का फैसला कानूनी प्रक्रिया और सिद्धांतों के आधार पर लिया जाएगा।
The Supreme Court of India is hearing the bail petition of Tahir Hussain, an accused in the Delhi riots. Two judges gave divergent opinions: Justice Pankaj Mithal denied bail for election campaigning, while Justice Ahsaanuddin Amanullah disagreed. Hussain, seeking interim bail for his campaign in the upcoming Delhi elections, argued that he had been helping people, and his past political record was clean. Despite the defense’s arguments, the court emphasized the legal limitations of granting bail for election purposes, stating that it is not a constitutional right. The case highlights important issues about the legal process and political campaigning rights in India.