AIN NEWS 1: मृत्यु के बाद आत्मा का शरीर से बाहर निकलना और उसकी यात्रा के बारे में कई प्रश्नों का उत्तर गरुड़ ने भगवान श्री विष्णु से पूछा। भगवान विष्णु ने आत्मा के शरीर छोड़ने के विभिन्न तरीकों और प्रेत योनि से जुड़ी स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। इस लेख में हम समझेंगे कि आत्मा किस प्रकार शरीर छोड़ती है, प्रेत योनि का क्या कारण है, और भगवान के भक्तों को मृत्यु के बाद किस तरह की यात्रा मिलती है।
1. आत्मा के शरीर से बाहर जाने के मार्ग
जब शरीर की मृत्यु हो जाती है, तो आत्मा उसे छोड़कर विभिन्न मार्गों से बाहर जाती है। भगवान विष्णु ने गरुड़ से कहा कि आत्मा के शरीर छोड़ने के कुछ प्रमुख रास्ते होते हैं:
1. ज्ञानी आत्मा का मार्ग
ज्ञानी और संतुष्ट आत्मा मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से से बाहर जाती है। वे अपने शरीर को त्यागने के बाद भी शांतिपूर्वक मृत्यु को स्वीकार करते हैं।
2. पापी आत्मा का मार्ग
जो लोग पाप करते हैं, उनका आत्मा शरीर से बाहर गुदा द्वार (आनल पासेज) से निकलता है। यह भी देखा गया है कि कई लोग मृत्यु के समय मल त्याग करते हैं, जिससे यह मार्ग अधिक स्पष्ट होता है।
इसके अलावा, कुछ आत्माएँ शरीर छोड़ने के बाद कुछ समय तक घर में ही रहती हैं, खासकर पहले तीन दिनों तक। वे अग्नि और जल के संपर्क में रहते हैं। इस समय के दौरान, आत्मा के लिए कुछ संस्कारों की आवश्यकता होती है ताकि वह यमलोक की यात्रा शुरू कर सके।
2. मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा
मृत्यु के बाद, जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है, तो पहले 10 दिनों तक यह एक अल्पकालिक शरीर में रहती है, जो अंगूठे के आकार का होता है। इस समय, मृत व्यक्ति के परिवारजन उचित संस्कार और अनुष्ठान करते हैं, जो आत्मा की यमलोक यात्रा में सहायक होते हैं।
दसवें दिन: आत्मा यमलोक की यात्रा पर निकलती है।
तेरहवें दिन: आत्मा यमलोक पहुंचती है, जहाँ चित्रगुप्त आत्मा के सभी कर्मों का लेखा यमराज को प्रस्तुत करते हैं।
यमराज आत्मा के कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नरक में उसके स्थान का निर्धारण करते हैं। इसके बाद, आत्मा एक नए शरीर में जन्म लेने के लिए पृथ्वी पर लौटती है।
3. प्रेत योनि में कौन जन्म लेता है?
कुछ आत्माएँ जो विशेष प्रकार के पाप करती हैं, यमराज के आदेश से प्रेत योनि में भेजी जाती हैं। प्रेत योनि एक सूक्ष्म शरीर होता है, जिसमें आत्मा अपनी इच्छाओं को पूरा करने में असमर्थ रहती है। यह प्रेत योनि तब प्राप्त होती है जब आत्मा किसी कारणवश पृथ्वी पर अपेक्षित समय से पहले मृत्यु को प्राप्त कर लेती है।
प्रेत योनि में जन्म लेने के कारण:
1. विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाना
जो लोग विवाह के बाहर शारीरिक संबंध बनाते हैं, उन्हें प्रेत योनि में जन्म लेना पड़ता है।
2. धोखाधड़ी और संपत्ति हड़पना
ऐसे लोग जो धोखाधड़ी करते हैं या किसी की संपत्ति हड़पते हैं, उन्हें भी प्रेत योनि का सामना करना पड़ता है।
3. आत्महत्या करना
आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों को भी प्रेत योनि प्राप्त होती है, क्योंकि उन्होंने अपनी मृत्यु का समय स्वयं निर्धारित किया।
4. अकाल मृत्यु
जिन व्यक्तियों की अकाल मृत्यु होती है, जैसे किसी दुर्घटना में या जानवर द्वारा मारे जाने पर, वे भी प्रेत योनि में जन्म लेते हैं। अकाल मृत्यु सामान्यत: व्यक्ति के कर्मों के कारण होती है।
प्रेत योनि में रहने का अनुभव: प्रेत योनि में व्यक्ति की इच्छाएं वही रहती हैं जो मनुष्य शरीर में थीं। उसे भौतिक रूप से शरीर की कमी के कारण अपनी इच्छाओं को पूरा करने में बहुत पीड़ा होती है। उदाहरण के लिए, यदि उसने भोजन का कभी न रुकने वाला लालच किया था, तो प्रेत योनि में उसे भूख और प्यास की तीव्रता का सामना करना पड़ता है। जब उसका प्रेत योनि में समय समाप्त हो जाता है, तो उसे नया शरीर प्राप्त होता है और वह पुनः पृथ्वी पर जन्म लेता है।
4. भगवान के भक्तों का क्या होता है?
भगवान के भक्तों के लिए मृत्यु के बाद कोई कष्ट नहीं होता। उन्हें किसी प्रकार की यातना या यमराज के दूतों से नहीं गुजरना पड़ता। भगवान के दूत स्वयं उन्हें उनके जीवन के समापन पर लेने आते हैं। भगवान के दूत आत्मा को अत्यंत सम्मान और श्रद्धा के साथ भगवान के धाम लेकर जाते हैं, जहां वह जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर अलौकिक जीवन जीते हैं।
भगवान ने श्रीमद भगवद गीता में यह वचन दिया है:
“कौन्तेय प्रतिजानीहि न में भक्तः प्रणश्यति।”
अर्थात: “हे अर्जुन! तुम यह जान लो कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।”
निष्कर्ष
मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और प्रेत योनि के रहस्यों को समझना एक गहरे आत्मिक सत्य को उजागर करता है। हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए और भगवान के भक्त बनकर अपनी आत्मा को इस संसार के बंधनों से मुक्त कर भगवान के चरणों में स्थित करना चाहिए। इस प्रकार की समझ हमें एक सशक्त और धर्मनिष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
जय श्री कृष्ण