AIN NEWS 1 | गर्मी के बढ़ते प्रकोप ने अब तमाम रिकॉर्ड तोड़ने शुरु कर दिए हैं। इससे ना केवल लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है बल्कि अर्थव्यवस्थाों की सेहत भी इससे बिगड़ने का खतरा है। अगले 3 साल में दुनिया की 3 टॉप अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने का सपना देख रहे भारत का ये ख्वाब समय पर पूरा होने से भी ये गर्मी रोक सकती है। दरअसल, भारत की जीडीपी ग्रोथ को बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान जानदार घरेलू खपत और बड़ी कामकाजी आबादी का है लेकिन गर्मी के प्रकोप से इन दोनों पर ही बुरा असर पड़ेगा। इस बार की गर्मियों में हीटवेव की संख्या काफी ज्यादा होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे ज्यादा प्रभावित होने की आशंका है। खेती पर गर्मी के असर से किसानों और खेतिहर मजदूरों की कमाई घट सकती है जिससे खपत में गिरावट की आशंका है। गर्मी से कृषि उपज घटने और महंगाई बढ़ने का खतरा भी रहेगा। अगर महंगाई ज्यादा बढ़ जाती है तो RBI ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। इससे होम लोन या कार लोन लेने वालों को सस्ती ईएमआई का फायदा नहीं मिलेगा जिससे इनकी बिक्री पर दबाव पड़ सकता है।
बड़ी आबादी खुले में काम करती है
भारत में गर्मी का ज्यादा असर इसलिए भी होता है क्योंकि यहां पर आबादी का एक बड़ा हिस्सा खुले में काम करता है। खेती या फिर सड़क-इमारज के निर्माण से जुड़े लोग इस गर्मी को सीधे तौर पर झेलते हैं लेकिन इस भीषण गर्मी से इनके कामकाजी घंटों में कमी आने की आशंका है। हीटवेव या ज्यादा गर्मी की हालत में इनके लिए दोपहर के वक्त काम करना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिकी मैनेजमेंट कंसल्टेंट फर्म मैकिंजी एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 75 फीसदी श्रमिक यानी 38 करोड़ लोग गर्मी में काम करते हैं। गर्मी बढ़ने से जो कामकाजी घंटे कम होंगे उससे 2030 तक GDP का सालाना ढाई से साढ़े 4 फीसदी का नुकसान होगा।
गर्मी किन शेयरों में लाएगी तेजी?
हालांकि अगर शेयर बाजार के लिहाज से बात करें तो फिर इस भीषण गर्मी के कुछ फायदे भी हैं। ज्यादा गर्मी होने पर एयरकंडीशनर की डिमांड बढ़ेगी जिससे एसी बनाने वाली कंपनियों को फायदा होगा, वहीं, पावर की डिमांड बढ़ने का फायदा पावर कंपनियों को मिल सकता है। गर्मियों के दौरान सोडा, आइसक्रीम और डेयरी उत्पादों की खपत में आम तौर पर तेजी आती है जो इनसे जुड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाएगा। लेकिन प्राकृतिक तौर पर देखा जाए तो ये फायदे गर्मी से होने वाले कुल नुकसान के मुकाबले कुछ भी नहीं हैं। ऐसे में क्लाइमेट कंट्रोल के इस ट्रेंड को रोकने के लिए नीति निर्धारकों को ठोस कदम उठाने होंगे जिससे देश की ओवरऑल इकॉनमी पर असर ना पड़े।