कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार पर चुनाव संचालन नियमों में बदलाव के जरिए निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता खत्म करने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि यह संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है।
चुनाव नियमों में क्या बदलाव हुआ?
केंद्र सरकार ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया है। इसके तहत सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग रिकॉर्डिंग और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर रोक लगाई गई है।
- यह कदम निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर उठाया गया है।
- बदलाव का उद्देश्य इन दस्तावेजों के दुरुपयोग को रोकना बताया गया है।
मल्लिकार्जुन खरगे का तीखा बयान
कांग्रेस अध्यक्ष ने इस संशोधन को केंद्र सरकार की सोची-समझी साजिश करार दिया। उन्होंने कहा:
- “मोदी सरकार निर्वाचन आयोग की संस्थागत अखंडता नष्ट करने में लगी है।”
- इससे पहले सरकार ने चीफ जस्टिस को निर्वाचन आयुक्तों की चयन समिति से बाहर किया।
- अब हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद चुनावी दस्तावेजों की जानकारी रोकने का प्रयास किया जा रहा है।
कांग्रेस के अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया
- जयराम रमेश: कांग्रेस इस संशोधन को कानूनी रूप से चुनौती देगी।
- केसी वेणुगोपाल: निर्वाचन आयोग का कामकाज सरकार समर्थक और अपारदर्शी रहा है।
संविधान और लोकतंत्र पर हमला
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता खत्म करना संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनावी अनियमितताओं पर कांग्रेस की शिकायतों को निर्वाचन आयोग ने गंभीरता से नहीं लिया।
केंद्र सरकार का पक्ष
विधि मंत्रालय और निर्वाचन आयोग के अधिकारियों का कहना है कि यह संशोधन एक अदालती मामले के कारण किया गया है।
- सीसीटीवी और वेबकास्टिंग फुटेज आदर्श आचार संहिता का हिस्सा नहीं होते।
- ये कदम समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उठाए जाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल
कांग्रेस ने मतदाता सूची से नाम हटाने और ईवीएम की पारदर्शिता को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह सब सरकार के इशारे पर किया जा रहा है।
यह विवाद केवल चुनाव नियमों में बदलाव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान की रक्षा के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है।