AIN NEWS 1 | अमेरिकी राजनीति में इन दिनों एक बड़ा भूचाल ताइवान को लेकर आया है। पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ताइवान को मिलने वाला 40 करोड़ डॉलर (करीब 3,300 करोड़ रुपये) का सैन्य पैकेज रोक दिया है। इस फैसले को चीन के साथ उनके संभावित व्यापार समझौते से जोड़कर देखा जा रहा है। नतीजा यह है कि ताइवान खुद को अमेरिका से धोखा खाया हुआ महसूस कर रहा है।
ताइवान को लंबे समय से हथियार देता रहा है अमेरिका
अमेरिका दशकों से ताइवान को चीन के खिलाफ रक्षा सहयोग देता आया है। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ताइवान को हाल ही में गोला-बारूद और आधुनिक ड्रोन मिलने वाले थे। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने अचानक इस पर रोक लगा दी। यह कदम वॉशिंगटन की पुरानी नीति से बड़ा बदलाव माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका हमेशा ताइवान को चीन के बढ़ते दबाव से बचाने का दावा करता रहा है।
क्यों रोकी गई सैन्य मदद?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला पूरी तरह राजनीतिक और रणनीतिक है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर कई मसलों पर खींचतान चल रही थी। ट्रंप प्रशासन अब तनाव कम करने और एक बड़ा व्यापार समझौता करने के लिए बेताब है। यही वजह है कि ताइवान की सुरक्षा को फिलहाल किनारे रख दिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप जल्द ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर सकते हैं। इससे पहले माहौल को अनुकूल बनाने के लिए ताइवान की सैन्य मदद रोकी गई है।
बाइडेन से अलग है ट्रंप का दृष्टिकोण
जब अमेरिका में जो बाइडेन राष्ट्रपति थे, तब ताइवान को लगातार बड़ी मात्रा में हथियारों की सप्लाई हुई। मिसाइल सिस्टम से लेकर आधुनिक युद्धक उपकरण तक ताइवान को दिए गए।
इसके विपरीत, ट्रंप का मानना है कि ताइवान आर्थिक रूप से मजबूत है और उसे अमेरिकी मदद पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। ट्रंप का तर्क है कि ताइवान को अपने हथियार खुद खरीदने चाहिए। यही तर्क उन्होंने यूक्रेन को लेकर भी दिया है।
ताइवान का बढ़ता रक्षा बजट
ट्रंप की इस नीति से ताइवान को बड़ा झटका लगा है। हालांकि, ताइवान ने अपने स्तर पर रक्षा खर्च बढ़ाने की घोषणा की है। राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने हाल ही में ड्रोन और नौसैनिक जहाजों के लिए बड़ा बजट पास किया है।
ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) में अमेरिका ने ताइवान को करीब 20 अरब डॉलर के हथियार बेचे थे। इनमें F-16 लड़ाकू विमान और अब्राम टैंक जैसे आधुनिक हथियार शामिल थे। लेकिन दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद उनका रुख बदल गया है।
बैठकों और दौरे रद्द
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने न केवल सैन्य पैकेज रोका बल्कि ताइवान से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बैठकें और दौरे भी रद्द कर दिए।
अमेरिकी और ताइवानी रक्षा अधिकारियों की निर्धारित बैठकों को अचानक स्थगित कर दिया गया।
राष्ट्रपति लाई को अगस्त में न्यूयॉर्क और डलास के दौरे न करने की सलाह दी गई।
ये कदम इस ओर इशारा करते हैं कि अमेरिका फिलहाल ताइवान से दूरी बना रहा है ताकि चीन को नाराज न करना पड़े।
ताइवान पर असर
ताइवान के लिए यह फैसला बड़ा झटका है।
चीन लगातार ताइवान पर हमले की धमकियाँ देता रहा है।
अमेरिका की मदद पर ताइवान की सुरक्षा रणनीति काफी हद तक निर्भर रही है।
अब जब मदद रोकी गई है, ताइवान को अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह अपने संसाधनों पर भरोसा करना होगा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शक्ति संतुलन पर भी असर पड़ सकता है।
अमेरिका के भीतर उठ रहे सवाल
ट्रंप के इस फैसले पर अमेरिका के भीतर भी विरोध की आवाजें उठ रही हैं। विपक्षी नेता कह रहे हैं कि यह अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति के खिलाफ है। उनका आरोप है कि ट्रंप चीन की खुशामद करने के लिए ताइवान जैसे भरोसेमंद साझेदार को बलि का बकरा बना रहे हैं।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के फैसले से अमेरिका की वैश्विक छवि भी प्रभावित होगी, क्योंकि दुनिया अमेरिका को लोकतंत्र और आजादी के रक्षक के रूप में देखती आई है।
ट्रंप का यह कदम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा संदेश देता है – अमेरिका अब अपने सहयोगियों से मुफ्त में मदद देने के बजाय उनसे आत्मनिर्भर होने की उम्मीद करता है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इस रणनीति से चीन और अमेरिका के बीच दूरी सच में घटेगी या यह केवल ताइवान की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
ताइवान के लिए आने वाले समय में सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह खुद को सैन्य और रणनीतिक रूप से मजबूत बनाए, ताकि किसी भी स्थिति में चीन का सामना कर सके। वहीं, दुनिया की नजर इस पर टिकी है कि अमेरिका आने वाले महीनों में ताइवान के प्रति अपना रुख नरम करता है या यह दूरी और बढ़ती है।