AIN NEWS 1 | भारत की राजनीति में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव हमेशा से विशेष महत्व रखते हैं। ये पद न केवल संवैधानिक रूप से सर्वोच्च होते हैं, बल्कि लोकतंत्र की साख और पारदर्शिता का भी प्रतीक माने जाते हैं। लेकिन हाल ही में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट – UBT) ने गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा कि इन चुनावों में मतदान को अनिवार्य किया जाना चाहिए और जो राजनीतिक दल जानबूझकर मतदान से दूर रहते हैं या खरीद-फरोख्त में शामिल होते हैं, उनका पंजीकरण तुरंत रद्द कर देना चाहिए।
मतदान से दूरी को बताया असंवैधानिक
सामना के संपादकीय में शिवसेना (UBT) ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे शीर्ष संवैधानिक पदों के चुनाव में मतदान से दूर रहना किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं है। पार्टी ने बीजू जनता दल (BJD) और भारत राष्ट्र समिति (BRS) का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि ये दल केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से हमेशा की तरह चुनाव से दूरी बना लेते हैं। शिवसेना (UBT) के अनुसार, यह रवैया असंवैधानिक है और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट करता है।
बीजेपी उम्मीदवार की जीत और बहिष्कार का मुद्दा
9 सितंबर को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी समर्थित उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन ने विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों से हराकर जीत दर्ज की। वहीं, शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने इस चुनाव का बहिष्कार किया और आरोप लगाया कि पंजाब के बाढ़ प्रभावित लोगों को केंद्र और राज्य सरकारों से कोई मदद नहीं मिली।
शिवसेना (UBT) ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में कोई भी निर्वाचक अनुपस्थित नहीं रहना चाहिए। अगर कोई दल जानबूझकर वोटिंग से दूरी बनाए तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
पंजीकरण रद्द करने की मांग
उद्धव गुट ने सवाल उठाया कि जब लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदान को अनिवार्य बनाने की चर्चा होती है, तो फिर शीर्ष संवैधानिक पदों के चुनाव में यह नियम क्यों लागू नहीं होना चाहिए? उन्होंने कहा कि जो दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान नहीं करते और केवल खरीद-फरोख्त या बहिष्कार की राजनीति करते हैं, उनका पंजीकरण रद्द कर देना चाहिए।
खरीद-फरोख्त रोकने के लिए कानून बनाने की अपील
शिवसेना (UBT) ने नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन से अपील की है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में संभावित खरीद-फरोख्त रोकने के लिए ठोस कानून बनाया जाए। पार्टी का कहना है कि लोकतंत्र को बचाने और जनता के विश्वास को मजबूत करने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के आंकड़े
चुनाव परिणामों की घोषणा करते हुए राज्यसभा के महासचिव और निर्वाचन अधिकारी पी. सी. मोदी ने बताया कि कुल 781 मतदाताओं में से 767 सांसदों ने मतदान किया। इनमें से 752 मत वैध और 15 अवैध पाए गए। राधाकृष्णन को 452 और रेड्डी को 300 वोट मिले।
शिवसेना (UBT) ने दावा किया कि ज्यादातर अवैध वोट विपक्षी उम्मीदवार रेड्डी को मिले। पार्टी ने सवाल उठाया कि जब सहयोगी दलों ने खुले तौर पर खरीद-फरोख्त की बात कही, तब निर्वाचन आयोग क्या कर रहा था?
विपक्षी गठबंधन पर चर्चा
संपादकीय में कहा गया कि विपक्षी इंडिया गठबंधन के लगभग सभी सांसदों ने एकजुटता दिखाई और मतदान किया। केवल दो से पांच सांसदों को छोड़कर किसी ने विश्वासघात नहीं किया। लेकिन पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि जिन्होंने क्रॉस-वोटिंग की, उन्हें कथित तौर पर विदेश यात्राओं का प्रलोभन दिया गया।
लोकतंत्र और जवाबदेही का सवाल
शिवसेना (UBT) का मानना है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे पदों के चुनाव में मतदान से दूरी बनाना लोकतंत्र का अपमान है। ऐसे दल न केवल जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ करते हैं, बल्कि संविधान की भावना को भी आहत करते हैं। यही कारण है कि पार्टी बार-बार यह मांग उठा रही है कि संसद और विधानसभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए इस प्रकार के चुनावों में मतदान करना अनिवार्य होना चाहिए।
यह पूरा विवाद भारतीय लोकतंत्र के सामने एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है — क्या राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार लोकतांत्रिक प्रक्रिया से भाग सकते हैं? उद्धव गुट की मांग केवल आलोचना भर नहीं है, बल्कि एक गहरी चिंता को दर्शाती है कि यदि इस प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो भविष्य में लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख खतरे में पड़ सकती है। अनिवार्य मतदान और खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने वाला कानून शायद इस समस्या का एक संभावित समाधान हो सकता है।