UP Gonda DM Neha Sharma Summoned by High Court for Contempt over Land Map Delay
AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले की जिलाधिकारी नेहा शर्मा एक बार फिर विवादों में घिर गई हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उन्हें अवमानना के मामले में समन जारी किया है। कोर्ट ने उन्हें 29 जुलाई को दोपहर 11:30 बजे व्यक्तिगत रूप से अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने याची सईद अहमद की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। इस याचिका का आधार बना प्रशासन द्वारा कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद एक सरकारी दस्तावेज (भूमि नक्शे की प्रमाणित प्रति) को समय पर उपलब्ध न कराना।
क्या है पूरा मामला?
याची सईद अहमद ने अक्टूबर 2023 में गोंडा जिले के गिर्द गोंडा ग्रामीण गांव के गाटा संख्या 249 और 301 के नक्शे की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था। लेकिन महीनों इंतजार के बावजूद जब उन्हें दस्तावेज नहीं मिले, तब उन्होंने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की।
इस याचिका पर 15 अप्रैल 2024 को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि प्रशासन दो महीने के भीतर याची को नक्शे की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराए। लेकिन जुलाई 2024 आ गया और याची को अब तक नक्शे की प्रति नहीं सौंपी गई, जिससे कोर्ट की अवमानना का मामला बन गया।
प्रशासन ने क्या कहा?
गोंडा प्रशासन की ओर से अदालत को यह सफाई दी गई कि मांगे गए नक्शे काफी पुराने और खराब हालत में हैं, इसलिए उनकी प्रमाणित प्रतियां देना संभव नहीं है। इसके साथ ही बताया गया कि राजस्व परिषद को पत्र भेजकर इन नक्शों की प्रतियां मंगाई गई हैं।
हालांकि, कोर्ट ने प्रशासन की इस दलील को पर्याप्त नहीं माना। अदालत ने कहा कि सिर्फ एक पत्र भेज देने से रिट कोर्ट के स्पष्ट आदेश का पालन नहीं माना जा सकता। प्रशासन को कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए समयबद्ध कार्रवाई करनी चाहिए थी।
कोर्ट की सख्ती
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि किसी दस्तावेज की स्थिति खराब है, तब भी उसके लिए वैकल्पिक रास्ते अपनाकर याची को जानकारी देना प्रशासन की जिम्मेदारी है। सिर्फ प्रक्रिया शुरू कर देना पर्याप्त नहीं है, जब तक उसका परिणाम न निकले।
कोर्ट ने माना कि डीएम नेहा शर्मा की ओर से इस मामले में लापरवाही हुई है और न्यायालय के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं हुआ है। इसी आधार पर कोर्ट ने 29 जुलाई की तारीख तय करते हुए डीएम को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में तलब किया है।
न्यायालय की अवमानना क्यों गंभीर है?
न्यायालय की अवमानना यानी Contempt of Court का मतलब होता है कोर्ट के आदेशों की अवहेलना या अनदेखी करना। यह भारतीय न्याय व्यवस्था में एक गंभीर अपराध माना जाता है, जिससे लोकतंत्र की न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और प्रभावशीलता बनी रहती है।
अगर कोई अधिकारी अदालत के आदेश का पालन नहीं करता है, तो उससे न केवल उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय होती है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
क्या हो सकते हैं परिणाम?
यदि 29 जुलाई को सुनवाई के दौरान कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ, तो डीएम नेहा शर्मा के खिलाफ अवमानना के आरोप तय हो सकते हैं। इसका मतलब है कि उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू होगी और सजा भी हो सकती है, जिसमें जुर्माना या जेल की सजा भी शामिल है।
प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल
यह मामला केवल एक नक्शे की प्रति न देने तक सीमित नहीं है। यह प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता के प्रश्न को भी सामने लाता है। जब एक आम नागरिक को महीनों तक भटकना पड़े और फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़े, तब यह व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
गोंडा जैसे जिलों में कई बार आम नागरिकों को राजस्व संबंधित मामलात में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कोर्ट के इस रुख से उम्मीद की जा सकती है कि प्रशासनिक अमला अपनी जिम्मेदारियों को लेकर और अधिक सतर्क होगा।
गोंडा जिले की डीएम नेहा शर्मा के खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा लिया गया यह कदम प्रशासनिक जवाबदेही को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है। इससे साफ है कि अगर न्यायालय के आदेशों की अनदेखी की जाती है, तो चाहे वह कोई भी अधिकारी हो, उसे जवाब देना ही पड़ेगा। अब देखना यह होगा कि 29 जुलाई को कोर्ट में क्या जवाब पेश किया जाता है और आगे की कार्रवाई किस दिशा में जाती है।
The Allahabad High Court’s Lucknow Bench has issued a strong directive by summoning Gonda District Magistrate Neha Sharma in a contempt case related to the non-compliance of a previous court order. The case revolves around a delay in providing certified copies of land maps of Gird Gonda Gramin village, which petitioner Saeed Ahmad had requested in October 2023. Despite a clear High Court order in April 2024, the documents were not provided, prompting legal action. This incident sheds light on administrative delays and legal accountability in UP governance.