AIN NEWS 1: गुरु गोविंद सिंह का प्रसिद्ध उद्घोष “सूरा सो पहचानिए, जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे, कबहू ना छोड़े खेत” न केवल साहस और संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह देश और धर्म की रक्षा के लिए अपार बलिदान की भावना का भी प्रतीक है। हमारे ऐतिहासिक गौरव को देखे तो भारत माता की धरती ने ऐसे वीरों को जन्म दिया, जिनका साहस और त्याग अनमोल था। ऐसी ही एक गाथा गुरु गोविंद सिंह के चार वीर पुत्रों की है, जिन्होंने महज बच्चों की आयु में अपने प्राणों की आहुति दी।
गुरु गोविंद सिंह और उनके वीर पुत्रों की कहानी
गुरु गोविंद सिंह, खालसा पंथ के संस्थापक, मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब से अपने धर्म की रक्षा के लिए 14 युद्धों में लड़े। इनमें 1704 में हुए चमकौर और सरहिंद के युद्ध प्रमुख थे। इन युद्धों में गुरु के चार पुत्रों, अजीत सिंह (17 वर्ष), जुझार सिंह (14 वर्ष), जोरावर सिंह (9 वर्ष), और फतेह सिंह (7 वर्ष) ने भी युद्ध लड़ा।
गुरु गोविंद सिंह के नेतृत्व में 43 सिख योद्धाओं ने 10 लाख मुग़ल सैनिकों का मुकाबला किया और अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। चमकौर साहिब की लड़ाई में जब गुरु के दोनों बड़े पुत्र अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए, तब भी छोटे पुत्रों, जोरावर और फतेह सिंह ने बिना डरे अपनी जान दी।
शहादत का अद्वितीय उदाहरण
वर्ष 1704 में 26 दिसंबर को एक ऐतिहासिक घटना घटी, जब गुरु गोविंद सिंह के छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह को मुग़ल सेनापति वजीर खान ने धोखे से पकड़ लिया और इस्लाम धर्म अपनाने की शर्त रखी। लेकिन इन वीर बालकों ने इस्लाम को नकारते हुए अपने धर्म की रक्षा करते हुए दीवार में चुनवाकर शहादत प्राप्त की। उनका यह बलिदान भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
इस प्रकार, गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों ने देश और धर्म की रक्षा के लिए महज बच्चपन में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका यह साहस और बलिदान आज भी हमें प्रेरणा देता है।
वीर बालक दिवस का महत्व
भारत में 26 दिसंबर को वीर बालक दिवस मनाने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में की थी। इसका उद्देश्य गुरु गोविंद सिंह के वीर पुत्रों के बलिदान को याद करना और उनके संघर्षों से प्रेरणा लेना है। यह दिवस विशेष रूप से देश के युवाओं को प्रेरित करने के लिए है ताकि वे अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक और समर्पित बनें।
इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों में देशभक्ति और वीरता की भावना को जागरूक करना है। इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि हमारे देश के लिए सच्चे वीर वही हैं जो अपने धर्म और देश के लिए जान न्योछावर करने में कतराते नहीं हैं।
वीर बाल दिवस पर सम्मानित होंगे बहादुर बच्चे
भारत सरकार ने वीर बाल दिवस की अहमियत को बढ़ाते हुए इस वर्ष से इसे और भी विशेष बनाया है। इस बार वीरता, कला, संस्कृति, समाजसेवा, विज्ञान, खेल, और पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 26 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित एक समारोह में 17 बच्चों को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित करेंगी।
यह पुरस्कार बच्चों को उनके साहस, उनकी कला और उनकी समाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए दिया जाएगा। यह पहल यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चा देश के लिए कुछ अच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करे और अपने कर्तव्यों को निभाते हुए समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करे।
भारतीय इतिहास और वीरता की उपेक्षा
यह दुःख की बात है कि हमारे इतिहास का यह स्वर्णिम अध्याय स्वतंत्रता के बाद उपेक्षित रहा। कांग्रेस शासित काल में इस महान बलिदान को हमारे इतिहास के पन्नों में जगह नहीं दी गई। उस समय के वामपंथी इतिहासकारों ने सिख गुरुओं और उनके योगदान को सही तरीके से दर्ज नहीं किया। उन्हें यह बताने का अवसर नहीं दिया कि सच्चा बलिदान किसने दिया और कैसे दिया।
लेकिन अब, एक नए भारत में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इतिहास को सही दिशा दी जा रही है। वीर बालक दिवस के माध्यम से गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों के योगदान और बलिदान को याद किया जा रहा है और आने वाली पीढ़ी को इससे प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
वीर बालक दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक संकल्प है। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारे वीर सपूतों ने किस प्रकार अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची वीरता केवल शारीरिक शक्ति में नहीं, बल्कि साहस, समर्पण और धर्म के प्रति निष्ठा में होती है।
आज जब हम वीर बालक दिवस मनाते हैं, हम न केवल गुरु गोविंद सिंह के अद्वितीय साहस का सम्मान करते हैं, बल्कि अपने बच्चों में यह भावना जागरूक करते हैं कि वे अपने देश और समाज के लिए कुछ सार्थक करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।