AIN NEWS 1 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शनिवार (23 अगस्त 2025) को केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 130वें संविधान संशोधन विधेयक को लेकर बड़ा बयान दिया। खरगे का कहना है कि इस विधेयक का इस्तेमाल सिर्फ विपक्ष को डराने के लिए किया जा रहा है और आने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में भी इसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक अब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया गया है। अब देखना होगा कि समिति इस पर क्या निर्णय लेती है और आगे की दिशा क्या होती है।
खरगे ने क्या कहा?
मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने बयान में कहा:
“बहुत से नेताओं को ईडी (ED), सीबीआई (CBI) और आयकर विभाग (IT) के मामलों में फंसाया गया है। आखिर हमारे पास भारतीय दंड संहिता (IPC) और सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) हैं, जो 75 साल से लागू हैं। क्या ये कानून बेकार हैं? फिर नए प्रावधान लाने की जरूरत क्यों?”
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि यह बिल विपक्ष को दबाने और सहयोगी दलों को डराकर अपने साथ लाने की कोशिश है। खरगे ने साफ कहा कि इस विधेयक का इस्तेमाल आने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में भी होने वाला है।
130वें संविधान संशोधन विधेयक में क्या है?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान का 130वां संशोधन विधेयक पेश किया। इस विधेयक का मकसद यह है कि देश के किसी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री या राज्य मंत्री के खिलाफ अगर आपराधिक मामला चल रहा हो और उन्हें लगातार 30 दिन जेल में रहना पड़े, तो 31वें दिन उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना अनिवार्य होगा। अगर वे इस्तीफा नहीं देते, तो उन्हें जबरन पद से हटा दिया जाएगा।
इसका सीधा मतलब यह है कि अब देश में कोई भी बड़ा राजनीतिक पद धारण करने वाला व्यक्ति अगर गंभीर अपराध में जेल में है, तो वह लंबे समय तक अपनी कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाएगा।
विपक्ष का विरोध
इस विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन की अन्य पार्टियों – समाजवादी पार्टी (सपा), शिवसेना (यूबीटी) और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों ने इसे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के तौर पर कर सकती है।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह बिल देश की लोकतांत्रिक परंपराओं को कमजोर करेगा। उनका तर्क है कि पहले से मौजूद कानून पर्याप्त हैं और नया संशोधन सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित है।
विधेयक की संवैधानिकता पर सवाल
विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह बिल न केवल लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है, बल्कि सत्ता पक्ष को विपक्ष को खत्म करने का एक मजबूत औजार भी देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर किसी नेता पर झूठे आरोप लगाकर उसे जेल भेज दिया जाए, तो क्या सिर्फ 30 दिन की सजा के आधार पर उसका राजनीतिक करियर खत्म कर दिया जाएगा?
संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का प्रावधान कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को बिगाड़ सकता है।
JPC के पास भेजा गया बिल
लोकसभा में हंगामे के बीच सरकार ने इसे फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का फैसला किया है। समिति इस बिल की सभी धाराओं पर गहनता से विचार करेगी। इसके बाद ही यह तय होगा कि विधेयक को अंतिम रूप दिया जाए या उसमें संशोधन किया जाए।
संविधान संशोधन एक गंभीर प्रक्रिया होती है, और इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में विशेष बहुमत से इसे पारित करना जरूरी होता है। इसके अलावा, कुछ प्रावधानों के लिए राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी भी लेनी होती है।
विपक्ष को क्यों है डर?
विपक्षी दलों का मानना है कि अगर यह बिल लागू हो गया, तो सरकार इसका इस्तेमाल उन नेताओं के खिलाफ करेगी जो सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में विपक्षी नेताओं पर ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की कार्रवाई बढ़ी है, ऐसे में उन्हें डर है कि यह बिल उनके खिलाफ एक और कानूनी हथियार बन जाएगा।
खरगे का बयान इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव जैसे बड़े संवैधानिक पद पर भी इस बिल के प्रभाव का जिक्र उन्होंने सार्वजनिक तौर पर किया है।
130वां संविधान संशोधन विधेयक अभी सिर्फ समिति के पास गया है, लेकिन इसने भारतीय राजनीति में गहरी हलचल पैदा कर दी है। विपक्ष इसे लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था पर हमला बता रहा है, वहीं सरकार का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जरूरी है।
अब सबकी निगाहें संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट और आगे संसद में होने वाली बहस पर टिकी हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विधेयक सच में पारित होता है या विरोध के चलते अटक जाता है।