AIN NEWS 1 } उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। विपक्षी इंडिया गठबंधन को उम्मीद थी कि उनकी संख्या बल के हिसाब से जीत का दावा मजबूत रहेगा, लेकिन परिणाम ने उनकी रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए। आरोप है कि चुनाव में कई सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की या फिर जानबूझकर अपने वोट अमान्य कर दिए।
सबसे बड़ा दावा महाराष्ट्र से सामने आया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना (शिंदे गुट) ने कहा कि उद्धव ठाकरे गुट के पांच सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान किया। इस दावे ने विपक्ष की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
शिंदे गुट का दावा
शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम ने कहा कि सिर्फ ठाकरे गुट ही नहीं, बल्कि शरद पवार गुट के सांसदों ने भी एनडीए को वोट किया। उनका कहना था,
“विपक्ष के पास 324 वोट थे, लेकिन उन्हें सिर्फ 300 वोट ही मिले। इसका मतलब साफ है कि वोटों का ट्रांसफर हुआ है। विपक्ष अब इस चुनाव के बाद वोट चोरी का रोना नहीं रोएगा।”
निरुपम ने यह भी जोड़ा कि एनडीए को अपेक्षित संख्याबल से 16 वोट ज्यादा मिले, जबकि 15 वोट रद्द कर दिए गए या सांसद अनुपस्थित रहे। उन्होंने सवाल उठाया कि ये अतिरिक्त वोट कहां से आए?
विपक्ष की स्थिति और संदेह
चुनाव परिणाम के अनुसार, एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले, जबकि विपक्ष के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी को केवल 300 वोट ही हासिल हुए। कुल 781 सदस्यों में से 767 ने मतदान किया था, जिनमें से 15 वोट अमान्य घोषित किए गए।
विपक्ष का अनुमान था कि कम से कम 320 वोट उन्हें मिलेंगे, लेकिन 300 पर सिमटना उनके लिए बड़ा झटका साबित हुआ। यही वजह है कि अब आंतरिक मतभेद और असंतोष की आवाजें उठने लगी हैं।
राउत का जवाब
सत्तापक्ष के दावों पर शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने पलटवार किया। उन्होंने कहा:
“हमें हमारे सारे वोट मिले हैं। हमारा आंकड़ा 315 का था और उतने ही वोट हमें मिले हैं। हां, 15 वोट रिजेक्ट हुए हैं, लेकिन इसके कारण हमें नहीं पता।”
राउत ने एनडीए की तरफ से किए गए दावों को खारिज कर विपक्षी गठबंधन की एकजुटता पर जोर दिया।
भाजपा का दावा
वहीं, बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा,
“करीब 40 विपक्षी सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और किसी न किसी रूप में एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया।”
यह बयान विपक्ष के भीतर और ज्यादा हलचल पैदा कर गया है, क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि अंदरूनी असंतोष और टूट-फूट विपक्षी गठबंधन में गहराई तक मौजूद है।
नतीजे और राजनीतिक असर
यह चुनाव सिर्फ उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने विपक्षी गठबंधन की ताकत और एकजुटता की असलियत को उजागर कर दिया।
एनडीए मजबूत होकर उभरा है और उनके प्रत्याशी को उम्मीद से ज्यादा वोट मिले।
इंडिया गठबंधन कमजोर दिखा, जहां वोटों का बिखराव और अमान्यता बड़ी चुनौती बनकर सामने आई।
क्रॉस वोटिंग के आरोपों ने यह साफ कर दिया है कि विपक्ष में कई दलों और नेताओं के बीच आपसी विश्वास का संकट गहरा रहा है। वहीं, एनडीए इस नतीजे को अपनी रणनीति और संगठनात्मक मजबूती की जीत के तौर पर पेश कर रहा है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के परिणामों ने संसद की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्षी गठबंधन आने वाले समय में इस टूट-फूट और असंतोष को कैसे संभालेगा। फिलहाल इतना तय है कि इस चुनाव ने एनडीए को मजबूती और विपक्ष को आत्ममंथन का मौका दिया है।