AIN NEWS 1 नई दिल्ली: भारत में बीते कुछ वर्षों में कई शहरों के नाम बदले गए हैं। खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कई ऐतिहासिक शहरों को नए नाम दिए गए हैं। उदाहरण के तौर पर इलाहाबाद अब प्रयागराज बन चुका है, और फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या रख दिया गया है।
हालांकि, इन नाम परिवर्तनों के बावजूद एक सवाल जो अक्सर सामने आता है वह यह है—जब शहरों के नाम बदल दिए जाते हैं, तो हाईकोर्ट का नाम क्यों नहीं बदला जाता? उदाहरण के लिए, प्रयागराज में स्थित हाईकोर्ट अब भी ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट’ के नाम से जाना जाता है। इसी तरह:
मुंबई में है बॉम्बे हाईकोर्ट
चेन्नई में है मद्रास हाईकोर्ट
कोलकाता में है कलकत्ता हाईकोर्ट
तो फिर आखिर क्यों नहीं बदले जाते हाईकोर्ट के नाम? इसके पीछे एक कानूनी प्रक्रिया और संवैधानिक बाध्यता होती है, जिसे समझना जरूरी है।
हाईकोर्ट का नाम बदलना सिर्फ प्रशासनिक फैसला नहीं होता
शहरों का नाम बदलना आमतौर पर राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र होता है। इसके लिए कैबिनेट से मंजूरी लेकर नाम परिवर्तित कर दिया जाता है। लेकिन हाईकोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान का नाम बदलने के लिए केवल राज्य सरकार की मर्जी काफी नहीं होती।
इसके लिए अपनाई जाती है एक विधायी प्रक्रिया, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों की भूमिका होती है।
हाईकोर्ट का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है?
अगर किसी राज्य सरकार को अपने हाईकोर्ट का नाम बदलना है, तो इसके लिए स्पष्ट और संवैधानिक प्रक्रिया अपनानी होती है:
राज्य सरकार पहले एक औपचारिक प्रस्ताव तैयार करती है।
यह प्रस्ताव राज्य की विधानसभा के पटल पर रखा जाता है।
इसके बाद, संबंधित हाईकोर्ट से भी संस्तुति (recommendation) लेनी होती है।
इसके पश्चात यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाता है।
अंत में, संसद में इसे लेकर संविधान में संशोधन या नया विधेयक पारित किया जाता है।
जब तक यह पूरी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक हाईकोर्ट के नाम में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
इतिहास में कब हुए प्रयास?
1995: बंबई का नाम बदलकर मुंबई कर दिया गया।
1996: मद्रास को कर दिया गया चेन्नई।
2001: कलकत्ता का नाम बदलकर रखा गया कोलकाता।
हालांकि इनके शहरों के नाम बदल गए, लेकिन इनसे जुड़े हाईकोर्ट के नाम आज भी पुराने हैं।
2016 में केंद्र सरकार ने लाया था बिल
2016 में भारत सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के नाम बदलने के लिए संसद में एक बिल लाने की कोशिश की थी। इसका उद्देश्य था:
बॉम्बे हाईकोर्ट → मुंबई हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट → चेन्नई हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट → कोलकाता हाईकोर्ट
लेकिन यह बिल संसद में पेश नहीं हो सका क्योंकि:
संबंधित राज्यों की सहमति नहीं मिली।
हाईकोर्टों से भी पूर्ण समर्थन नहीं मिला।
तमिलनाडु ने दिया था नया प्रस्ताव
2016 में लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कानून राज्य मंत्री पी.पी. चौधरी ने बताया था कि तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट का नाम बदलकर ‘हाईकोर्ट ऑफ तमिलनाडु’ रखने का प्रस्ताव भेजा था। हालांकि कलकत्ता हाईकोर्ट के नाम बदलने को लेकर कोई आम सहमति नहीं बन पाई थी।
तो नाम बदलने में देरी क्यों होती है?
संविधानिक संस्थानों के नाम बदलना केवल राजनीतिक या प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है।
इसमें संविधान, विधायिका, न्यायपालिका और संघीय ढांचे का सम्मान बनाए रखना जरूरी है।
यही कारण है कि हाईकोर्ट के नाम बदलने में ज्यादा समय लगता है और कई बार यह वर्षों तक लंबित भी रहता है।
While many Indian cities like Allahabad, Bombay, and Madras have been renamed to Prayagraj, Mumbai, and Chennai respectively, the names of their high courts remain unchanged. The reason lies in India’s constitutional process, where renaming a high court requires a legislative proposal by the state, consent from the respective court, and parliamentary approval. Unlike administrative city renamings, high court renamings involve a legal and federal structure. Hence, courts like Allahabad High Court and Bombay High Court continue with their historical names despite city changes.