AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में आवारा कुत्तों की समस्या पिछले कुछ सालों से तेजी से बढ़ी है। कई बार कुत्तों के झुंड बच्चों, बुजुर्गों या राहगीरों पर हमला कर देते हैं। अस्पतालों के रिकॉर्ड बताते हैं कि हर महीने हज़ारों लोग कुत्तों के काटने की वजह से इलाज कराने पहुंचते हैं। यह स्थिति चिंता का विषय बन चुकी है।
इसी समस्या से निपटने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक नया परिपत्र (गाइडलाइन) जारी किया है। यह नियम न केवल इंसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, बल्कि कुत्तों के अधिकारों और उनके संरक्षण को भी ध्यान में रखते हैं।
पृष्ठभूमि: क्यों उठाना पड़ा यह कदम?
लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों से लगातार खबरें आती रहीं कि आवारा कुत्तों ने किसी बच्चे पर हमला कर दिया या किसी बुजुर्ग को काट लिया।
गाजियाबाद की एक कॉलोनी में एक 7 साल के बच्चे को झुंड में घूम रहे कुत्तों ने घायल कर दिया।
नोएडा में पार्क में खेल रहे बच्चों को लेकर अभिभावक रोज़ डर में रहते हैं।
लखनऊ में कई बार स्थानीय लोगों और पशु प्रेमियों के बीच विवाद हुआ कि कुत्तों को कहां खाना खिलाया जाए।
इन घटनाओं ने सरकार को मजबूर किया कि इस मुद्दे को केवल “जन स्वास्थ्य” का मामला न मानकर इसे मानव-पशु संघर्ष के रूप में देखा जाए।
गाइडलाइन के मुख्य बिंदु (सरल भाषा में)
1. फीडिंग जोन की व्यवस्था
हर वार्ड या क्षेत्र में तय फीडिंग जोन होंगे।
ये जोन भीड़-भाड़ वाले इलाकों, स्कूलों और खेल स्थलों से दूर बनाए जाएंगे।
खाना खिलाने का समय भी ऐसा होगा जिससे बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा बनी रहे।
2. विवाद सुलझाने की समिति
अगर किसी कॉलोनी या मोहल्ले में विवाद होता है कि कुत्तों को कहां खिलाया जाए, तो समिति इसका फैसला करेगी।
इसमें डॉक्टर, पुलिस अधिकारी और आवेदक शामिल होंगे।
समिति का फैसला अंतिम होगा।
3. नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई
जो लोग तय नियमों का पालन नहीं करेंगे, उन पर कार्रवाई होगी।
बिना अनुमति कुत्तों को फीडिंग जोन के बाहर खिलाना मना होगा।
4. पशु प्रेमियों की सुरक्षा
अगर कोई महिला या पशु प्रेमी नियमों के तहत कुत्तों को खाना खिला रहा है, तो उन्हें रोकना या डराना अपराध माना जाएगा।
5. गोद लेने का विकल्प
लोग स्थानीय निकाय को आवेदन देकर कुत्तों को गोद ले सकते हैं।
लेकिन गोद लेने के बाद उन्हें छोड़ना अपराध होगा।
6. नसबंदी और टीकाकरण
लगातार नसबंदी और रेबीज टीकाकरण चलेंगे।
कुत्तों का इलाज कराकर उन्हें उसी जगह छोड़ा जाएगा जहां से पकड़ा गया था।
7. बीमार और आक्रामक कुत्तों की देखभाल
आक्रामक या रेबीज से पीड़ित कुत्तों को विशेष निगरानी केंद्रों में रखा जाएगा।
इसके लिए हर निकाय नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा।
8. निगरानी प्रकोष्ठ
नगर विकास निदेशालय में विशेष निगरानी प्रकोष्ठ बनेगा।
यह टीम देखेगी कि गाइडलाइन का पालन हो रहा है या नहीं।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. संदीप अग्रवाल (पशु चिकित्सक, लखनऊ):
“यह कदम स्वागत योग्य है। अब तक व्यवस्था बिखरी हुई थी। फीडिंग जोन और नियमित नसबंदी से कुत्तों की संख्या पर काबू पाया जा सकेगा।”
डॉ. कविता सिंह (जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, नोएडा):
“कुत्तों के काटने की घटनाएं मानसिक और शारीरिक दोनों तरह का डर पैदा करती हैं। गाइडलाइन का पालन हुआ तो बच्चों और बुजुर्गों को राहत मिलेगी।”
आम जनता की प्रतिक्रियाएं
रामनारायण (लखनऊ, निवासी):
“हमारे मोहल्ले में कुत्तों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि बच्चे अकेले बाहर नहीं निकल पाते। सरकार का ये कदम सही समय पर आया है।”
पूजा गुप्ता (पशु प्रेमी, गाजियाबाद):
“हमें खुशी है कि सरकार ने पशु प्रेमियों की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया। अब हम बिना डर के कुत्तों को खाना खिला सकेंगे।”
अंजली वर्मा (नोएडा, अभिभावक):
“स्कूल जाते समय कई बार कुत्ते बच्चों पर भौंकते या दौड़ते हैं। उम्मीद है नई व्यवस्था से ये खतरा कम होगा।”
संभावित चुनौतियां
हालांकि यह गाइडलाइन कागज पर बेहद कारगर लगती है, लेकिन असली चुनौती इसके जमीनी स्तर पर लागू होने की है।
क्या हर वार्ड में सही फीडिंग जोन बनाए जा सकेंगे?
क्या सभी निकाय लगातार नसबंदी और टीकाकरण करा पाएंगे?
क्या आम जनता और पशु प्रेमियों में तालमेल बन पाएगा?
योगी सरकार का यह कदम एक संतुलित समाधान की दिशा में अहम प्रयास है। इसने न तो इंसानों की सुरक्षा को नजरअंदाज किया है और न ही जानवरों के अधिकारों को।
अगर इस गाइडलाइन को गंभीरता से लागू किया गया और स्थानीय लोग भी सहयोग करें, तो आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
The Yogi Adityanath government in Uttar Pradesh has announced new guidelines to control the stray dog menace in urban areas. The rules introduce structured feeding zones, sterilization and vaccination programs, adoption procedures, and conflict resolution committees. Public safety remains the top priority while ensuring humane treatment of animals. Experts believe these guidelines will reduce dog bite incidents and improve urban safety. Citizens and animal lovers have shared mixed reactions, highlighting both relief and challenges for effective implementation.