AIN NEWS 1: आर.डी. अग्रवाल, हमारा शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, वो क्रमानुसार हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से ही हमारा भौतिक शरीर बना हुआ है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी हुई है उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है। यही एक मात्र कारण है कि आयुर्वेद में शरीर को निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु के भस्मों का प्रयोग ज्यादा किया जाता है।
यहां पर जल तत्व से मतलब तरलता से ही है। जितने भी तरल तत्व हमारे शरीर में बह रहे हैं वे जल तत्व ही हैं, चाहे तो वह पानी हो, हमारा खून हो या शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम ही हों। यह जल तत्व ही हमारे शरीर की ऊर्जा और पोषक तत्वों को हमारे पूरे शरीर में पहुचाने का काम करते हैं। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से भी अधिक जाना जाता है। इसमें कोई भी असंतुलन हमारे शरीर को बीमार बना देता है। ऐसे ही अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का ही प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट होती है, यह सब अग्नि तत्व से ही है। यही अग्नि तत्व हमारे भोजन को पचाकर शरीर को भी स्वस्थ रखता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से ही जाना जाता है। ऊष्मा का स्तर ऊपर या नीचे जाने से भी शरीर बीमार हो जाता है। इसलिए इसका संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है।
जिनमें भी प्राण है, उन सबमें ही वायु तत्व है। हम सांस के रूप में हवा यानि (ऑक्सीजन) लेते हैं, जिससे ही हमारा जीवन है। पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताए गए हैं, वे सब के सब वायु तत्व के कारण ही अपना काम कर रहे हैं। और आयुर्वेद में इसे वात नाम से ही जानते हैं।आकाश तत्व जो अभौतिक रूप में मन है। जैसे पूरा आकाश अनंत है वैसे ही मन की भी कोई भी सीमा नहीं है। जैसे आकाश अनंत ऊर्जाओं से भरा हुआ है, वैसे ही मन की शक्ति की भी कोई सीमा नहीं है जो दबी या सोयी हुई है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल नजर आते हैं तो कभी वह बिल्कुल ही साफ होता है, वैसे ही मन भी कभी खुशी, कभी उदास तो कभी पूरी तरह से शांत रहता है। इन पंच तत्वों से ऊपर एक और तत्व है आत्मा। इसके होने से ही ये तत्व अपना पूरा काम करते हैं। तभी तो शरीर में ऊर्जा रहती है और वह इन तत्वों को नियंत्रण में भी रख सकता है।मनुष्य का शरीर तंत्रिकाओं पर ही खड़ा है। विभिन्न प्रकार के ऊतकों से मिलकर ही हमारे अंगों का निर्माण हुआ है। हमारे शरीरतंत्र में मुख्य चार अवयव हैं- मस्तिष्क, प्रमस्तिष्क, मेरुदंड और तंत्रिकाओं का एक पुंज। इसके अलावा कई और तंत्र हैं जैसे श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र, ज्ञानेंद्रियां, प्रजनन तंत्र आदि। इन सभी तत्वों को समझ कर ही हम तत्वों को कुछ प्रयोग के द्वारा उन्हे संतुलन में कर सकते हैं जिससे हमारे आगे की यात्रा अच्छे से बढ़ सके। जैसे-जैसे हम क्रिया करेंगे उसका अनुभव हमें प्रत्यक्ष रूप में ही मिलेगा। हमारी हाथ की उंगलियों में तत्व संदेश देंगे कि आखिर कौन सा तत्व आपके भीतर कम है और कौन सा अधिक है। हम जानते हैं कि हाथ की पांच उंगलियां इन्हीं पांच तत्वों का ही प्रतिनिधत्व करती हैं। अंगूठा अग्नि का, तर्जनी वायु का, मध्यमा आकाश का, अनामिका पृथ्वी का और कनिष्का जल का ही प्रधिनिधित्व करती हैं। इन उंगलियों में भी विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है।मानव शरीर प्रकृति द्वारा तैयार की गई एक ऐसी मशीन है जिसके सूक्ष्म संसाधनों व तंत्रों और तत्वों के प्रयोग की सटीक सहज क्रिया के जरिए ही हम अपनी ऊर्जा को निरंतर गति दे सकते हैं।