AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश में जमीन की रजिस्ट्री अब केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं रह गई है, बल्कि यह एक संगठित खेल बन चुकी है। सरकारी दफ्तरों में बैठे कुछ बाबू, उनके साथ जुड़े दलाल और लैंड यूज में हेरफेर — इन तीनों के गठजोड़ ने जमीन से जुड़े विवादों को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। हालात ऐसे हैं कि आम आदमी न चाहते हुए भी इस भ्रष्ट तंत्र में फंस जाता है।
📊 11.20 लाख केस: विवादों का पहाड़
राजस्व विभाग की एक ताज़ा रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2025 तक यूपी की राजस्व अदालतों में जमीन से जुड़े 11.20 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं।
इन मामलों में शामिल हैं—
फर्जी रजिस्ट्री
सीमा विवाद
गलत लैंड यूज (Land Use Change)
कागज़ों में हेराफेरी
रिपोर्ट साफ कहती है कि ज्यादातर विवादों की जड़ गलत या फर्जी रजिस्ट्री है। यानी समस्या की शुरुआत रजिस्ट्री ऑफिस से ही हो रही है।
🏢 लैंड यूज बदलने का खेल कैसे होता है?
नियम के मुताबिक—
आबादी क्षेत्र की जमीन की रजिस्ट्री आवासीय भूमि के रूप में ही हो सकती है
कृषि भूमि की रजिस्ट्री अलग नियमों के तहत होती है
लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। कई सब-रजिस्ट्रार ऑफिसों में पैसे लेकर आबादी की जमीन को कृषि भूमि दिखाकर रजिस्ट्री कर दी जाती है, ताकि स्टांप ड्यूटी कम लगे और खरीदार को 40–50% तक की “बचत” दिखाई जा सके।
💰 दलालों का दावा: 50% बचत की गारंटी
दलाल खुलेआम कहते हैं—
“आप बस पैसा दीजिए, रजिस्ट्री हम करवा देंगे… और खर्चा भी आधा लगेगा।”
यह बचत कैसे होती है?
दरअसल, कृषि भूमि पर स्टांप ड्यूटी कम होती है। इसी का फायदा उठाकर आबादी की जमीन को कृषि दिखाया जाता है।
📍 बांदा से खुली पोल
बांदा जिले के अतर्रा सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में तैनात एक बाबू का नाम सामने आया, जो पैसे लेकर आवासीय जमीन की रजिस्ट्री कृषि भूमि के रूप में करवा देता है।
जांच के दौरान—
एक गांव की दो आबादी क्षेत्र की जमीनों के दस्तावेज जुटाए गए
नियमों के मुताबिक इनकी रजिस्ट्री आवासीय भूमि में ही होनी थी
बाबू से संपर्क किया गया
उसने पूरे “गणित” को विस्तार से समझाया
सबसे अहम बात यह सामने आई कि रजिस्ट्री के समय जानबूझकर खसरा नहीं लगाया जाता, क्योंकि खसरे में साफ लिखा होता है कि जमीन का लैंड यूज क्या है।
🧾 खसरा गायब, खेल साफ
आमतौर पर आबादी भूमि की रजिस्ट्री के लिए ये दस्तावेज जरूरी होते हैं—
पुरानी रजिस्ट्री या विरासत के कागज़
खसरा
खतौनी
गाटा नंबर
ग्राम पंचायत प्रमाण पत्र
भूमि का नक्शा
लेकिन जब आबादी की जमीन को कृषि दिखाना होता है, तो
👉 खसरा जानबूझकर फाइल से गायब कर दिया जाता है
और उसी आधार पर गलत रजिस्ट्री कर दी जाती है।
🏛️ सदर तहसील में अलग तरीका
बांदा सदर तहसील के रजिस्ट्रार ऑफिस में तरीका थोड़ा अलग है।
यहां बाबू सीधे डील नहीं करते, बल्कि दलालों के ज़रिये ही सारा काम होता है।
दलालों से बात करने पर उन्होंने न सिर्फ काम करने की हामी भरी, बल्कि पूरी गारंटी भी दे दी कि रजिस्ट्री बिना किसी परेशानी के हो जाएगी।
🚨 अमिताभ ठाकुर मामला और सवाल
हाल ही में यूपी के पूर्व IG अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी ने इस पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि करीब 26 साल पहले उनकी पत्नी नूतन ठाकुर ने देवरिया में फर्जी दस्तावेजों के ज़रिये औद्योगिक क्षेत्र में प्लॉट लिया, फिर उसे मुनाफे में बेच दिया।
यह मामला बताता है कि लैंड स्कैम कोई नया खेल नहीं है, बल्कि वर्षों से चलता आ रहा है।
⚖️ आम आदमी सबसे बड़ा शिकार
इस पूरे सिस्टम में सबसे ज्यादा नुकसान—
किसान
मध्यम वर्ग
छोटे प्लॉट खरीदने वाले
को होता है।
जब सालों बाद जमीन पर विवाद खड़ा होता है, तब वही रजिस्ट्री मालिक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता है, जबकि गलत रजिस्ट्री कराने वाले बाबू और दलाल सिस्टम से बाहर सुरक्षित निकल जाते हैं।
❓ अब सवाल सरकार से
क्या रजिस्ट्री से पहले दस्तावेजों की डिजिटल क्रॉस जांच होगी?
क्या खसरा-खतौनी के बिना रजिस्ट्री रोकने की व्यवस्था बनेगी?
क्या दलाल–बाबू नेटवर्क पर कार्रवाई होगी?
जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक यूपी में जमीन विवादों का पहाड़ और ऊंचा होता जाएगा।
Illegal land registry practices in Uttar Pradesh have become a major source of land disputes, with over 1.1 million cases pending in revenue courts. Through fake documentation, illegal land use change, and manipulation by registry office officials and middlemen, residential land is often registered as agricultural land to evade stamp duty. Districts like Banda and Chitrakoot highlight how deeply rooted the land registry scam is, raising serious concerns about transparency, governance, and land ownership rights in UP.



















