AIN NEWS 1: बता दें जमीनों के बैनामे के बाद खारिज-दाखिल में भी बड़े सलीके से ऐसा खेल किया जाता है। की ज्यादातर लोगों के दस्तावेजों में उनका गलत नाम, पता दर्ज कर दिया जाता है। और जब खतौनी लेते हैं तब इसकी जानकारी उन लोगों को होती है। इसके बाद इस नाम व पता को ठीक कराने में इतनी ज्यादा भागदौड़ करनी पड़ती है कि लोग काफ़ी परेशान हो जाते हैं। और जब तक चढ़ावा नहीं देंगे आपकी ये खामियां ठीक ही नहीं होंगी। इसके लिए नियम भी इतने ज्यादा जटिल हैं कि काफ़ी लोग तो इनमें ही उलझ कर रह जाते हैं। और इस प्रक्रिया में भी लोगों के ढाई से तीन हजार रुपये आराम से खर्च हो जाते हैं। सिर्फ सदर तहसील में ही एक हजार से ज्यादा मामले इस प्रकार के अभी लंबित हैं। छह से आठ महीने तक बीतने के बाद भी इनकी खामियां पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रही हैं।भूमि की रजिस्ट्री (बैनामा) कराने के दौरान दोनों पक्ष क्रेता और विक्रेता अपने सभी दस्तावेज को जमा कराते हैं। इन दस्तावेजों के आधार पर 45 दिन में विक्रेता की जगह क्रेता का नाम दस्तावेज पर चढ़ाकर इस भूमि की खतौनी जारी करनी ही होती है। यह खतौनी बनाने के दौरान भी कई बार ही खेल होता है। कंप्यूटर से डाटा फीड करने के दौरान लिपिकीय त्रुटि ही लोगों के लिए एक अच्छी खांसी मुसीबत बन जाती है। इसके निपटारे में भी लोगों की जेब से ढाई से तीन हजार रुपये खत्म हो ही जाते हैं। और उसने दौड़भाग करते हुए महीनों गुजर जाते हैं।
जैसे अमित की जगह हो गया गलती से अजीत
पहला केस : तुर्कमानपुर मोहल्ले के रहने वाले अमित दुबे ने ही एक भूमि का बैनामा कराया था। उनके नाम में ही लिपिकीय त्रुटि से अमित की जगह अजीत हो गया है। इस संशोधन के लिए उन्होंने अपने अधिवक्ता के जरिए अमित दुबे बनाम सरकार का वाद भी दायर कर रखा है। इस प्रकरण में केवल लेखपाल की रिपोर्ट का इंतजार है। करीब दो माह से वह काफ़ी परेशान हैं। त्रुटि दूर कराने के लिए उन्होंने अपने अधिवक्ता के माध्यम से ही आवेदन किया है।
भदोरिया की जगह दर्ज हुआ गलती से भारोदिया, बढ़ी परेशानी
दूसरा केस : बक्शीपुर मोहल्ले की रहने वाली ऊषा भदोरिया का मामला 14 दिसंबर 2021 से ही लंबित चल रहा है। नामांतरण के दौरान जो खतौनी जारी हुई। उसमें ऊषा भदोरिया की जगह भरोदिया हो गया। इस गलती के सामने आने पर उन्होंने अधिवक्ता के जरिए इसे सही कराने के लिए आवेदन किया। अभी तक लेखपाल के स्तर से इसकी रिपोर्ट नहीं लग सकी है। इससे त्रुटि दूर नहीं हो सकी।
जाने क्रेता की जगह चढ़ा दिया विक्रेता का नाम
तीसरा केस : लहसड़ी में भूमि का मामला राम आसरे और जीतन के बीच काफ़ी समय से लंबित है। दो साल पूर्व जीतन ने राम आसरे से एक भूमि खरीदी। इस नाम चढ़ाते समय खरीदने वाले जीतन के नाम की जगह राम आसरे हो गया। जानकारी होने पर पीड़ित ने अपना वाद दाखिल किया। तभी से मामला लंबित चल रहा है।
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जाने नाम में गड़बड़ी पर हुए थे परेशान
चौथा केस: गुलरिहा क्षेत्र के रविंद्र कुमार चौहान से एक भूमि खरीदी थी। वर्ष 2022 के दिसंबर माह में उन्होंने जब खतौनी निकाली तो उनके नाम के आगे चौहान की चैहान हो गया था। इस त्रुटि को सुधारने के लिए उनको काफी ज्यादा परेशान होना पड़ा।
और भी इस तरह की सामने आती गड़बड़ी
नाम का डाटा फीड करते समय कंप्यूटर पर अक्षरों में गलती कर दी जाती है। जैसे किसी का नाम कमल है तो उसकी जगह कमला लिख दिया जाएगा। इसकी खतौनी निकालने पर ही नाम के गलत या सही होने की जानकारी होगी।
जाने ये भी त्रुटि की जाती है
ये इसमें पति के नाम की जगह पिता दर्ज कर देते हैं।
क्रेता की जगह विक्रेता और विक्रेता की जगह क्रेता का नाम चढ़ा देते हैं।
भूमि की गाटा संख्या, चौहद्दी सहित अन्य कई चीजों में गड़बड़ी होती है।
जान ले यह होती है प्रक्रिया
किसी बैनामे के खारिज-दाखिल के बाद नाम में होने वाली लिपिकीय त्रुटि सहित अन्य गड़बड़ी को दूर करने की एक पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। इसके लिए त्रुटि संशोधन (करेक्शन ऑफ पेपर) आपको आवेदन करना पड़ता है। और इसे तहसीलदार के दफ्तर में जमा कराया जाता है। फिर इस पर रिपोर्ट लगाकर यह कानूनगो और लेखपाल के द्वारा पास की जाती है। लेखपाल की रिपोर्ट लगाकर प्रक्रिया के तहत दोबारा जब फाइल लौटती है, तब इस पर तहसीलदार अपने आदेश करते हैं।
इस मामले में तहसील से जुड़े लोगों का कहना है कि कई बार लेखपाल के स्तर से इस पर रिपोर्ट ही नहीं लगाई जाती है। इसके संशोधन के लिए 45 दिन की समय सीमा तय है, बावजूद इसके कई महीनों गुजर जाते हैं। अनुचित लाभ के चक्कर में ही इस प्रकार की ऐसी फाइलों को रोका जाता है।
जान ले इन सवालों से घेरे में लिपिकीय त्रुटि
किसी भी भूमि की रजिस्ट्री के दौरान कई तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है। क्रय और विक्रय करने वाले दोनों पक्ष अपने मूल दस्तावेजों के साथ ही निबंधक से संपर्क करते हैं। किसी अधिकृत अधिवक्ता से ही ये भूमि से संबंधित कागजात बनवाते हैं। दस्तावेज के रूप में दोनों पक्षों के पहचान पत्र, फोटो पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो इत्यादि देते हैं।बैनामा के बाद दाखिल खारिज का आदेश डेढ़ माह बाद ही होता है। इस आदेश के बाद खतौनी के लिए कंप्यूटर में इसका पूरा डाटा फीड किया जाता है। सभी आवश्यक प्रमाण पत्र और सही आदेश के बावजूद नाम गलत होने को लेकर बार – बार होने वाली लिपिकीय त्रुटि पर सवाल उठते हैं। एक बार गड़बड़ी होने पर आवेदक को बार-बार इसके लिए चक्कर लगाना पड़ता है। इसमें समय के साथ-साथ लोगों के काफ़ी रुपये भी खर्च होते हैं।