AIN NEWS 1: बता दें यदि किसी शादी में किसी भी प्रकार से संबंध सुधरने की गुंजाइश ही ना बची हो तो ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तुरंत उनका तलाक मंजूर किया जा सकता है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को एक सुनवाई के दौरान यह बात कही। अदालत ने कहा कि आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह स्पष्ट आदेश दिया गया है कि वह न्याय के लिए दोनों पक्षों की सहमति से कोई भी आदेश जारी आसानी से कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि दोनों ही पक्ष एक दूसरे से तलाक के लिए सहमत हों तो फिर ऐसे मामलों को फैमिली कोर्ट भेजने की कोई भी जरूरत नहीं है, जहां 6 से 18 महीने तक उनको इंतजार करना पड़ता है।जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ़ कहा कि आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह पूरा अधिकार है कि वह दोनों पक्षों के साथ न्याय करने वाला कोई भी अपना आदेश जारी कर सकता है। इस बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, विक्रम नाथ और जस्टिस एके माहेश्वरी भी इसमें शामिल थे। बेंच ने कहा, ‘यदि शादी में रिश्ते सुधरने की कोई गुंजाइश बची ही ना हो तो फिर सुप्रीम कोर्ट से आपकों तलाक मिल सकता है।’ जस्टिस खन्ना ने बेंच का फैसला पढ़ते हुए उन्होने कहा कि ऐसा करते हुए फैमिली कोर्ट जाने की कोई जरूरत नहीं होगी, जहां तलाक के लिए 6 से 18 महीने तक का अगला इंतजार करना होता है।इसके साथ ही बेंच ने अपने फैसला में इसके लिए कुछ गाइडलाइंस भी तय कीं, जिन पर इस प्रकार से तलाक के फैसले देते हुए विचार करना जरूरी होगा। अदालत ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में संबंध सुधरने की ना होने वाली कही नहीं कही गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए इसके आधार पर तलाक मंजूर ज़रूर कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा व्यभिचार, धर्मांतरण और क्रूरता जैसी चीजें भी तलाक के लिए एक आधार मानी गई हैं। बता दें कि जून 2016 में एक मामले की सुनवाई करते हुए ही दो सदस्यीय बेंच ने संवैधानिक बेंच के समक्ष यह मामला भेजा था।
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जाने सितंबर में अदालत ने सुरक्षित रख लिया था यह फैसला
बेंच ने कहा कि था कि यदि संवैधानिक पीठ इस बात पर विचार करे कि क्या सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैमिली कोर्ट में मामला भेजे बिना भी तलाक को मंजूरी दी जा सकती है। तब से ही 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। बीते साल सितंबर में सुनवाई पूरी होने के बाद यह फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश तलाक के मामलों में एक बहुत बड़ी नजीर साबित हो सकता है और इससे बड़े पैमाने पर उन लोगों को काफ़ी ज्यादा राहत मिल सकती है। जिन्हें संबंध विच्छेद के लिए एक बहुत लंबी प्रक्रिया का इंतजार करना पड़ता है।