AIN NEWS 1: भारत, रूस और चीन की बढ़ती नजदीकियों पर अमेरिका की नजरें टिकी हुई हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद अमेरिका ने भारत से रिश्तों को सुधारने के संकेत दिए हैं। अमेरिका ने साफ कहा है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते मजबूत नींव पर खड़े हैं और किसी भी मतभेद को बातचीत से सुलझाया जा सकता है।
दरअसल, बीते कुछ महीनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और ऊर्जा को लेकर तनाव बढ़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगाने का फैसला किया था। इसके अलावा, भारत द्वारा रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद भी अमेरिका की नाराजगी का बड़ा कारण रही है।
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव का बयान
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स न्यूज को दिए एक विशेष इंटरव्यू में कहा,
“अमेरिका और भारत दोनों बड़े लोकतांत्रिक देश हैं और हमारे रिश्ते मजबूत नींव पर खड़े हैं। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन हम उन्हें सुलझा लेंगे। दो महान देश हमेशा समाधान निकाल सकते हैं।”
हालांकि, उन्होंने भारत के रूस से कच्चे तेल खरीदने को लेकर सख्त नाराजगी जताई। उनका कहना था कि भारत रूस से सस्ता तेल लेकर और फिर उसे परिष्कृत करके बेचकर अप्रत्यक्ष रूप से मॉस्को के युद्ध प्रयासों को सहयोग दे रहा है। उन्होंने कहा कि यह कदम सही नहीं है क्योंकि इससे यूक्रेन युद्ध को और बढ़ावा मिल रहा है।
रूस से तेल खरीद पर अमेरिका की आपत्ति
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल खरीद जारी रखी। भारत का तर्क है कि सस्ता तेल देश की ऊर्जा सुरक्षा और विकास के लिए बेहद जरूरी है।
अमेरिका इस नीति से नाखुश है। उसका मानना है कि भारत का यह कदम रूस को आर्थिक तौर पर मजबूती देता है, जिससे यूक्रेन युद्ध लंबा खिंच सकता है। यही कारण है कि अमेरिकी प्रशासन बार-बार भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह रूस से तेल आयात कम करे।
व्यापार पर टकराव
स्कॉट बेसेंट ने इंटरव्यू में यह भी बताया कि भारत पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला क्यों लिया गया। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं काफी धीमी चल रही थीं। इसी कारण ट्रंप प्रशासन को पहले 25% और फिर 50% टैरिफ लगाने का कदम उठाना पड़ा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैरिफ नीतियां दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित कर रही हैं। भारत और अमेरिका दोनों ही बड़े आर्थिक शक्ति केंद्र हैं और अगर मतभेद बढ़ते हैं तो इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।
पुतिन-मोदी-जिनपिंग की मुलाकात से अमेरिका सतर्क
अमेरिका की चिंता सिर्फ रूस से तेल आयात तक सीमित नहीं है। हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी, पुतिन और जिनपिंग की मुलाकात ने भी अमेरिका को सतर्क कर दिया है।
बेसेंट ने कहा कि भारत की मूल्य प्रणाली लोकतंत्र और पारदर्शिता पर आधारित है, जो अमेरिका के ज्यादा करीब है, न कि रूस के। लेकिन भारत का चीन और रूस के साथ मंच साझा करना अमेरिका के लिए चिंता का विषय है।
रिश्तों का भविष्य
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और भारत दोनों ही देशों को आपसी मतभेद बातचीत से सुलझाने होंगे। अमेरिका के लिए भारत एशिया में एक अहम साझेदार है, वहीं भारत के लिए अमेरिका तकनीकी, निवेश और सुरक्षा सहयोग का बड़ा स्रोत है।
हालांकि, भारत अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखने की कोशिश करता है। रूस से ऊर्जा सहयोग, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और अमेरिका के साथ सामरिक साझेदारी—भारत को इन तीनों मोर्चों पर संतुलन साधना पड़ रहा है।
पुतिन-मोदी-जिनपिंग की तिकड़ी ने अमेरिका को यह याद दिला दिया है कि भारत एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति है और उसके फैसले केवल वाशिंगटन की इच्छा पर आधारित नहीं होंगे। अमेरिका यह समझ चुका है कि भारत को अपने साथ बनाए रखने के लिए रिश्तों को और मजबूत करना जरूरी है।
आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि क्या अमेरिका और भारत व्यापार और ऊर्जा को लेकर चल रहे मतभेदों को खत्म कर पाते हैं या फिर यह तनाव और गहराता है।
India-US trade relations are under pressure as tariffs and Russian oil imports spark tensions, while the Putin-Modi-Xi Jinping meeting adds to US concerns. US Treasury Secretary Scott Besant stressed that India and the US are “two great nations” with a strong foundation, capable of resolving differences. The future of US-India ties will shape global trade and geopolitics.