दयालु था, दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ा’ टिप्पणी करने वाले हाईकोर्ट ने गलती मानी। सजा को घटाने का फैसला बदला

मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय ने चार साल की बच्ची से रेप के मामले में की गई अपनी एक टिप्पणी को सुधार लिया है।

0
515

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विवादित टिप्पणी को हटाया

कोर्ट ने बलात्कारी की सजा को घटाया था

जिंदा छोड़ने को दयालु करार दिया था

AIN NEWS 1: मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय ने चार साल की बच्ची से रेप के मामले में की गई अपनी एक टिप्पणी को सुधार लिया है। हाईकोर्ट ने 18 अक्टूबर को अपने फैसले में कहा था कि दोषी ने ‘दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ दिया’ जो उसकी दयालुता थी। इस वजह से दोषी को दी गई आजीवन कैद की सजा को 20 साल के कठोरतम कारावास में बदला जा सकता है। हाईकोर्ट की इंदौर बेंच की इस टिप्पणी के लिए आलोचना की जा रही थी। अब कोर्ट ने इस टिप्पणी में सुधार के साथ फैसले में भी बदलाव किया है।

दयालु था, दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ा’

अदालत ने दोषी के लिए कहा था कि ‘दयालु था, दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ा’। अब कोर्ट ने इस टिप्पणी को हटा दिया है। इसके साथ ही दुष्कर्म के अपराधी की सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 साल कैद में बदलने के आदेश को भी बदल दिया है। कोर्ट का कहना है कि अनजाने में उसके फैसले में गलती हुई है।

9 दिन बाद आया संशोधित फैसला

27 अक्टूबर को दिए गए संशोधित आदेश में न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर और सत्येंद्र कुमार सिंह की डबल बेंच ने कहा कि यह संज्ञान में लाया गया है कि इस अदालत से 18 अक्टूबर को दिए गए फैसले में अनजाने में गलती हुई है, जहां इस तरह की टिप्पणी का उपयोग उस अपीलकर्ता के लिए किया गया है जिसको दुष्कर्म के अपराध में दोषी ठहराया गया है। 18 अक्टूबर को अपने निर्णय में कोर्ट ने कहा था कि उसे ट्रायल कोर्ट द्वारा सबूतों और अपीलकर्ता के राक्षसी कृत्य पर विचार करने में कोई त्रुटि नजर नहीं आती है। दोषी जिसके मन में एक महिला की गरिमा के लिए कोई सम्मान नहीं है और जो 4 साल की बच्ची के साथ भी यौन संबंध रखने की मंशा रखता है।

 

बच्ची को छोड़ना बताया था दयालुता

हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि दोषी ने बच्ची को जिंदा छोड़ दिया, यह उसकी दयालुता थी। यही वजह है कि यह कोर्ट मानती है कि मुजरिम के आजीवन कारावास की सजा को कम किया जा सकता है। हालांकि उसे 20 साल कठोरतम कारावास काटनी होगी। इसके साथ ही उच्च न्यायलय ने अपने आदेश में कहा था कि अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलकर्ता को कानून के अनुसार 20 साल की सजा भुगतनी होगी। इस फैसले की आलोचनाओं के बाद कोर्ट ने 27 अक्टूबर को अपनी चूक मानते हुए कहा कि ये साफ है कि ये गलती अनजाने में हुई है, क्योंकि ये कोर्ट पहले ही अपीलकर्ता के कृत्य को राक्षसी मान चुकी है। ऐसी परिस्थिति में यह अदालत सीआरपीसी की धारा 362 के तहत दी गई अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, उपरोक्त पैराग्राफ को संशोधित करती है। हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अपीलकर्ता ने पीड़ित को कोई अन्य शारीरिक चोट नहीं पहुंचाई, इस पर अदालत की राय है कि दोषी के आजीवन कारावास को 20 साल के कठोर कारावास तक कम किया जा सकता है।

गाजियाबाद में 6 साल की मासूम से डिजिटल रेप। मां से बोली बच्ची, पड़ोस वाले अंकल ने की गंदी हरकत।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here