AIN NEWS 1 | भारत और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकार और व्यापार मामलों के विशेषज्ञ पीटर नवारो ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा कि भारत अब बातचीत की टेबल पर आ रहा है।
यह बयान उस समय आया है जब मंगलवार से नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच व्यापार वार्ता का नया दौर शुरू होने जा रहा है। रॉयटर्स के मुताबिक, नवारो ने अपने इंटरव्यू में कहा कि अगर भारत अमेरिका के साथ तालमेल नहीं बैठाता, तो यह उसके लिए सही नहीं होगा। इससे पहले भी नवारो ने भारत पर व्यापारिक मामलों में अनुचित रवैया अपनाने का आरोप लगाया था।
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का नया चरण
सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका और भारत के बीच होने वाली छठे दौर की यह बैठक लंबे समय से टल रही थी। अगस्त में यह वार्ता स्थगित कर दी गई थी क्योंकि दोनों देशों के बीच टैरिफ को लेकर खींचतान बढ़ गई थी।
अमेरिका ने भारत से आने वाले उत्पादों पर 25% से बढ़ाकर 50% तक का टैरिफ लगा दिया।
इसके चलते अगस्त महीने में भारत का निर्यात पिछले नौ महीनों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।
अब जब अमेरिकी वरिष्ठ वार्ताकार ब्रेंडन लिंच नई दिल्ली पहुंचे हैं, तो दोनों देशों के बीच उम्मीद की जा रही है कि कुछ समाधान निकल सकता है।
यह वार्ता ऐसे समय पर हो रही है जब वैश्विक स्तर पर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आर्थिक दबाव पहले से ही ज्यादा बढ़ चुका है।
पीटर नवारो के आरोप
नवारो ने भारत पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि भारत अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक टैरिफ लगाकर फायदा उठा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर परोक्ष रूप से युद्ध को बढ़ावा दे रहा है।
उन्होंने यहां तक कह दिया कि भारत टैरिफ का “महाराजा” बन गया है। उनके इस बयान ने दोनों देशों के बीच कड़वाहट को और बढ़ा दिया। नवारो ने विवादित रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध को “मोदी का युद्ध” तक करार दिया था, जिस पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी।
ट्रंप और मोदी की बयानबाजी के बीच रिश्ते
हालांकि बयानबाजी के बीच कभी-कभी रिश्तों में नरमी के संकेत भी देखने को मिले। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “महान प्रधानमंत्री” कहकर दोस्ती का भरोसा जताया था। इसके जवाब में मोदी ने भी अमेरिका को भारत का भरोसेमंद साझेदार बताया और कहा कि वे दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध बनाए रखने के पक्षधर हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि टैरिफ विवाद ने दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में तनाव पैदा कर दिया है।
भारत के लिए चुनौती और अवसर
भारत के लिए यह वार्ता एक बड़ी चुनौती भी है और अवसर भी।
एक तरफ उसे अपने निर्यात को बचाना है, ताकि भारतीय उद्योगों और किसानों को नुकसान न हो।
दूसरी तरफ उसे अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध मजबूत रखने हैं, खासकर ऐसे समय में जब चीन और रूस जैसी ताकतें वैश्विक मंच पर सक्रिय हैं।
भारत यह भी समझता है कि अमेरिका उसके लिए एक बड़ा बाजार है। ऐसे में अगर यह वार्ता सफल रहती है तो न सिर्फ निर्यात को बढ़ावा मिलेगा बल्कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि भी मजबूत होगी।
विशेषज्ञों की राय
व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका दोनों ही एक-दूसरे पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं। अमेरिका को भारतीय IT सेवाओं और फार्मास्यूटिकल्स की जरूरत है, वहीं भारत अमेरिकी तकनीक और निवेश पर निर्भर करता है।
अगर टैरिफ विवाद बढ़ता है तो इसका असर दोनों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसलिए आने वाली यह वार्ता दोनों देशों के लिए निर्णायक साबित हो सकती है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। जहां एक तरफ राजनीतिक स्तर पर दोनों देश खुद को रणनीतिक साझेदार बताते हैं, वहीं आर्थिक मोर्चे पर टैरिफ और आयात-निर्यात को लेकर टकराव लगातार बना रहता है।
पीटर नवारो का यह बयान कि “भारत बातचीत की टेबल पर आ रहा है” निश्चित रूप से एक दबाव बनाने वाली रणनीति है। अब देखना यह होगा कि मंगलवार से शुरू हो रही वार्ता किस दिशा में जाती है और क्या दोनों देश इस खींचतान को खत्म कर पाते हैं।