AIN NEWS 1: अयोध्या का नाम आते ही भारत के इतिहास, राजनीति और समाज में गहराई तक छपे एक लंबे संघर्ष की यादें सामने आ जाती हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक विवाद नहीं था, बल्कि ऐसा मुद्दा था जिसने तीन दशकों तक देश की दिशा और माहौल को प्रभावित किया। 6 दिसंबर 1992 को हुई बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया। इसके बाद जो राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक घटनाएँ हुईं, उन्होंने आने वाले वर्षों में भारत के इतिहास को एक नई दिशा दी।
■ 6 दिसंबर 1992: वह दिन जिसने सब बदल दिया
अयोध्या में बाबरी मस्जिद वर्षों से विवाद का केंद्र थी। हिंदू संगठनों का दावा था कि यह ढांचा उस स्थान पर बना है जहाँ भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। 1992 में लाखों कारसेवक अयोध्या में जमा हुए और दोपहर होते-होते बाबरी ढांचा गिरा दिया गया।
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देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। कई शहरों में दंगे भड़के और कानून-व्यवस्था को संभालना चुनौती बन गया। इस घटना ने राजनीति को दो ध्रुवों में बांट दिया—एक ओर वो लोग जो इसे धार्मिक पुनर्स्थापन मानते थे, और दूसरी ओर वो, जो इसे कानून और संविधान के खिलाफ मानते थे।
■ विवाद का इतिहास: अदालतों से लेकर संसद तक चर्चा
बाबरी विवाद आज का नहीं था। यह मामला 19वीं सदी से अदालतों में अलग-अलग रूपों में चलता रहा। वर्षों तक जमीन के मालिकाना हक को लेकर कई याचिकाएँ दायर होती रहीं। लेकिन 1992 के बाद यह विवाद सिर्फ जमीन का विवाद नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय बहस का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या क्षेत्र को अधिग्रहित कर लिया। अदालतों में सुनवाई तेज हुई, और कई जांच कमेटियाँ बनाईं गईं। इस बीच देश की राजनीति में भी बड़े बदलाव आए—कई चुनाव इसी मुद्दे की गर्माहट के बीच संपन्न हुए।
■ 2002 से 2010 तक: अदालतों की राह आसान नहीं थी
2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की विस्तृत सुनवाई शुरू की। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट से लेकर ऐतिहासिक दस्तावेजों तक, हर पहलू पर विचार हुआ। 2010 में हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया—विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
हालांकि ये फैसला किसी पक्ष को पूरी तरह स्वीकार नहीं था। सभी याचिकाकर्ता इसे सुप्रीम कोर्ट ले गए।
■ 2019: सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एकमत से फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि मंदिर के अस्तित्व के संकेत हैं और विवादित भूमि हिंदू पक्ष को दी जाए। मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ भूमि पर मस्जिद निर्माण का अधिकार दिया गया।
यह फैसला देश के इतिहास में बड़ा मोड़ साबित हुआ। वर्षों से चल रहे विवाद पर अंतिम पंक्ति खींच दी गई।
■ राम मंदिर का निर्माण: प्रतीक्षा का अंत
फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की तैयारी तेज हो गई। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन किया। इसके बाद मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ा।
2024-25 तक मंदिर का भव्य स्वरूप लगभग पूरा हो गया। देशभर से श्रद्धालु अयोध्या पहुँचने लगे और शहर की पहचान बदल गई। मंदिर परिसर आधुनिक सुविधाओं और प्राचीन वास्तुकला के सुंदर मेल का उदाहरण बन गया।
■ 33 साल की यात्रा का सार
अयोध्या की यह यात्रा सिर्फ एक ढांचा गिरने से बनते मंदिर की कहानी नहीं है। यह भारत की राजनीति, न्याय व्यवस्था और सामाजिक सोच के बदलने का भी प्रतीक है।
1992 से 2019 तक—इन 33 वर्षों में देश ने बहसें, संघर्ष, अदालतों के फैसले, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और अंत में एक समाधान देखा।
आज अयोध्या नए विकास और धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन चुका है। लेकिन 6 दिसंबर 1992 की घटनाएँ इतिहास के पन्नों में हमेशा दर्ज रहेंगी—यह याद दिलाने के लिए कि संवेदनशील मुद्दे देश की दिशा बदलने की क्षमता रखते हैं।
The Ayodhya Ram Mandir timeline is one of India’s most significant historical journeys, starting from the Babri Masjid demolition on 6 December 1992 to the 2019 Supreme Court Ayodhya verdict. This detailed story explains the entire 33-year Ayodhya dispute, its political impact, legal battles, the landmark judgment, and the final phase of Ram Mandir construction. Readers searching for accurate information on the Ayodhya history, Babri demolition case, and Ram temple development will find this comprehensive narrative extremely useful for understanding India’s most debated issue.






