Ainnews1.com:– आइए जानते हैं कि क्या इंसानों की हरकतों की वजह से भी धरती की रफ्तार भी बदल सकती है? अगर पृथ्वी की स्पीड ऐसे ही बढ़ती रही,तो आखिर आने वाले समय में क्या होगा? ऐसे कई सवाल जो मन में हैं उनके जवाब अभी खोजे जा रहे हैं। लेकिन, वैज्ञानिकों के लिए भी इनके उत्तर खोजना इतना सरल नहीं है। वह तो फिलहाल यही अंदाजा लगाने में लगे हुए हैं कि आने वाले सालो में ऐसा क्या हुआ है कि पृथ्वी अपने निर्धारित समय से ज्यादा तेज घूमने लगी है। आइए प्रकृति की इस दुर्लभ और बहुत ही अस्वभाविक घटना और इसके संभावित परिणामों की पड़ताल करते हैं। इसके मुताबिक 29 जुलाई, 2022 को धरती ने अपनी दूरी पर घूमने में लगने वाले 24 घंटे के समय से 1.59 पहले ही यह घूर्णन पूरा कर लिया था। सरसरी तौर पर यह बहुत ही सूक्ष्म अंतर लग सकता है, लेकिन जब वैज्ञानिक इसके परिणामों का अनुमान लगाते हैं तो सहम जाते हैं। इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफ्रेंस सर्विस सिस्टम 1960 से इसका रिकॉर्ड रख रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में धरती ने अपनी रफ्तार बीच-बीच में बढ़ाकर वैज्ञानिक समुदाय को झटका दिया है।क्योंकि, 19 जुलाई, 2020 को भी पृथ्वी ने सबसे छोटा दिन रिकॉर्ड किया। उस दिन इसने अपना चक्कर 24 घंटे से 1.4602 मिली सेकंड पहले पूरा कर लिया। 2021 में भी पृथ्वी की स्पीड बढ़ी हुई थी, लेकिन इसका जिक्र नहीं किया गया। क्योंकि इसने कोई नया रिकॉर्ड नहीं बनाया था। लेकिन, इस साल 29 जून को भी धरती ने 1.50 मिली सेकंड पहले ही अपना चक्कर पूरा किया था। तब से लेकर वैज्ञानिक इसके कारणों का पता लगाने में जुटे हैं। आखिर पृथ्वी के इस तरह से अचानक रफ्तार बढ़ने का क्या कारण है? चार दिन पहले वैज्ञानिकों को जो इसके संभावित कारण लग रहे थे, उसमें कुछ संभावनाएं और शामिल हैं।धरती की गति बढ़ने को लेकर भूवैज्ञानिक कई तरह की परिकल्पनाएं पेश कर रहे हैं:-
1) जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवों पर ग्लेशियरों के पिघलने से इसका भार कम हो जाना।
2) पृथ्वी के अंदर भूकंपीय गतिविधियों के कारण महासागरीय ज्वार
3) चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की वजह से पैदा होने वाला खिंचाव
4) और क्योंकि, पृथ्वी पूरी तरह से गोलाकार नहीं है, जिसके चलते घूर्णन की दूरी में थोड़ा विचलन होता है इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के पेरिस ऑब्जरवेटरी के क्रिश्चियन बिजौर्ड ने सीजीटीएन को बताया है, ‘हम पृथ्वी के घूर्णन की गतिवृद्धि का कारण नहीं जानते हैं। हमारे पास कारण को लेकर सिर्फ और सिर्फ अनुमान है।’ उन्होंने ये भी कहा कि ‘हमें लगता है कि इसका कारण आंतरिक है और पृथ्वी के केंद्र की गति में निहित है। धरती की ऊपरी सतह जो भूगर्भीय समय के पैमाने से जुड़ी हुई है,आवरण के ऊपर खिसकती है और सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि यह समय भिन्नता केंद्र और आवरण के पारस्परिक प्रभाव के कारण है।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन, हमारे पास इस सिद्धांत का केवल एक काल्पनिक मॉडल है, जो केंद्र की गति पर आधारित है।’बिजौर्ड के मुताबिक पृथ्वी के घूर्णन की रफ्तार बढ़ने के कारण परमाणु घड़ियों पर प्रभाव पड़ सकता है,

जिनका उपयोग ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम सैटेलाइटों में किया जाता है। क्योंकि, उन्हें गंवाए हुए मिली सेकंड के साथ इससे तालमेल बिठाने की आवश्यकता पड़ेगी। यही नहीं, आज की तारीख में स्मार्टफोन और सारे कंप्यूटर नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल सर्वर से जुड़े होते हैं और समय में हुई इस गिरावट के चलते उन सबको सिंक्रोनाइज करने की आवश्यकता होगी, नहीं तो इनके प्रोग्राम अव्यवस्थित हो जाएंगे और काफी उथल-पुथल मचने की आशंका रहेगी।अगर आने वाले समय में भी पृथ्वी ने अपनी गति इसी तरह बढ़ाना चालू रखा तो इसका अंजाम क्या होगा? वैज्ञानिकों को ऐसा होने की पूरी आशंका है, लेकिन उसके समाधान को लेकर उनके बीच फिलहाल आम सहमति का अभाव दिख रहा है। मसलन, बिजौर्ड का मानना है कि अगर आगे भी धरती की स्पीड ऐसी ही बढ़ती रही तो परमाणु घड़ियों को संतुलित करने के लिए निगेटिव लीप सेकंड की जरूरत पड़ेगी। लेकिन, इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफ्रेंस सर्विस सिस्टम ने कहा कि इस समय इस तरह की एडजस्टमेंट की जरूरत नहीं है। इसने एक बयान में कहा है, ‘दिसंबर, 2022 के अंत में यूटीसी में एक लीप सेकेंड शामिल नहीं किया जाएगा।’

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