Akhilesh Yadav Sends SP Delegation to Kaushambi for Rape Victim and Suicide Case: Politics of Pressure?
कौशांबी में एक ही प्रतिनिधिमंडल पीड़िता और आरोपी दोनों के घर: समाजवादी पार्टी की सियासी उलझन
AIN NEWS 1: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल कौशांबी जिले के सिराथू तहसील के लोहदा गांव में दो अलग-अलग घटनाओं को लेकर 12 जून 2025 को भेजा जा रहा है। पहली घटना है एक नाबालिग लड़की के साथ कथित बलात्कार की, और दूसरी है उस आरोप से जुड़े एक व्यक्ति की आत्महत्या।
चौंकाने वाली बात यह है कि दोनों मामलों में समाजवादी पार्टी ने एक ही प्रतिनिधिमंडल को भेजा है—पहले पीड़ित परिवार से मिलने और फिर आरोपी के आत्महत्या करने के बाद उसके घर संवेदना जताने।
यह दोहरी रणनीति अब राजनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है।
पहली घटना: नाबालिग से बलात्कार
कौशांबी जिले के सैनी थाना क्षेत्र के अंतर्गत सिराथू तहसील के लोहदा गांव में रहने वाले जगेश्वर पाल की नाबालिग पुत्री के साथ कुछ दबंग लोगों द्वारा कथित रूप से बलात्कार किया गया। पीड़ित परिवार ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि इस मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है।
अखिलेश यादव ने इस घटना की गंभीरता को देखते हुए एक प्रतिनिधिमंडल गांव भेजने के आदेश दिए। उद्देश्य था – पीड़ित परिवार से मिलकर मामले की पूरी जानकारी लेना और पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए जरूरी कदम उठाना।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्य:
1. श्री दयाशंकर यादव – जिलाध्यक्ष, सपा कौशांबी
2. श्री राजाराम पाल – पूर्व सांसद
3. श्री पुष्पेन्द्र सरोज – वर्तमान सांसद
4. डॉ. मान सिंह यादव – एमएलसी
5. डॉ. अवधनाथ पाल – पूर्व जिलाध्यक्ष, सपा जौनपुर
6. श्री राकेश बघेल – पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष
7. श्री समरथ पाल – प्रदेश सचिव, सपा उत्तर प्रदेश
8. श्री शहनवाज अहमद – विधायक, सिराथू
इस टीम को निर्देश दिया गया कि वे घटना की पूरी जानकारी एकत्र कर रिपोर्ट प्रदेश कार्यालय को सौंपें।
दूसरी घटना: आरोपी की आत्महत्या
इसी गांव में बलात्कार मामले के एक संदिग्ध आरोपी, छोटका तिवारी उर्फ रामबाबू, ने आत्महत्या कर ली। आरोप है कि पुलिस की जांच और सामाजिक दबाव के चलते उसने यह कदम उठाया।
इस घटना के बाद भी समाजवादी पार्टी ने उसी प्रतिनिधिमंडल को पीड़ित परिवार की तरह आरोपी के परिवार से भी मिलने भेजने का फैसला लिया। यह निर्णय राजनीतिक रूप से असमंजस और आलोचना का कारण बन गया है।
दूसरी सूची में कुछ बदलाव के साथ वही प्रतिनिधिमंडल शामिल है:
1. श्री दयाशंकर यादव – जिलाध्यक्ष, सपा कौशांबी
2. श्री पुष्पेन्द्र सरोज – सांसद
3. डॉ. मान सिंह यादव – एमएलसी
4. श्री पवन पाण्डेय – पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
5. श्री सन्तोष पाण्डेय – पूर्व विधायक
6. श्री शिवमूर्ति सिंह राना – प्रदेश सचिव, सपा उत्तर प्रदेश
7. श्री शहनवाज अहमद – विधायक, सिराथू
राजनीति में संतुलन या मजबूरी?
समाजवादी पार्टी की इस दोहरी रणनीति ने सवाल खड़े कर दिए हैं:
क्या यह संवेदनाओं का सम्मान है या राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय?
एक ही प्रतिनिधिमंडल को पीड़िता और आरोपी दोनों के परिवारों के पास भेजना क्या संदेश देता है?
क्या सपा दोनों पक्षों को संतुष्ट रखना चाहती है या यह सच्चाई तक पहुँचने की कोशिश है?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह एक “राजनीतिक मजबूरी” की स्थिति प्रतीत होती है, जहाँ किसी भी पक्ष को नाराज़ करना पार्टी के लिए घाटे का सौदा हो सकता है, विशेषकर चुनावी माहौल में।
सपा नेतृत्व की प्रतिक्रिया
प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल द्वारा दोनों घटनाओं को लेकर जारी कार्यालय ज्ञाप में यह कहा गया है कि यह निर्णय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देशानुसार लिया गया है। रिपोर्ट मिलने के बाद पार्टी अगली रणनीति तय करेगी।
ज्ञापन की प्रतियां सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव, प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों और राष्ट्रीय अध्यक्ष के निजी सचिव को भेजी गई हैं।
राजनीतिक विश्लेषण: एक चाल, दो निशाने?
विशेषज्ञों का मानना है कि सपा इस प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से एक तीर से दो निशाने साधना चाहती है—एक तरफ दलित या पिछड़े वर्ग की पीड़िता के साथ खड़ा होना, वहीं दूसरी ओर ब्राह्मण समाज से जुड़े आरोपी के आत्महत्या मामले में भी सहानुभूति दिखाना।
हालांकि, विपक्षी दलों ने इस पर हमला बोलते हुए इसे “ढुलमुल नीति” और “मुलायम राजनीति” का उदाहरण बताया है।
The Samajwadi Party has sent the same delegation to visit both the family of a rape victim and the family of the accused who died by suicide in Kaushambi. This dual action by Akhilesh Yadav has sparked political debate. The SP delegation includes MP Pushpendra Saroj, MLC Dr. Mansingh Yadav, and local leaders. The incident raises questions about SP’s political strategy in balancing justice and community sentiments in Uttar Pradesh politics.