AIN NEWS 1 काशी (Varanasi): काशी के एक ऐतिहासिक घर में मिले मंदिर को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। घर के मालिक शहाबुद्दीन ने ऐलान किया है कि वह इस मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं देंगे और शंख नहीं बजेगा। उनका कहना है कि इस घर में जो मंदिर मिला है, वह 1916 से अपने मौजूदा स्वरूप में ही है और इसमें कोई शिवलिंग या पूजा की सामग्री नहीं है, इसलिए यहां पूजा नहीं की जा सकती।
क्या है मामला?
काशी के एक पुराने घर में हाल ही में एक मंदिर पाया गया। इस घर के मालिक शहाबुद्दीन ने बताया कि यह घर 1916 में करखी रियासत के एक रईस से उनके पूर्वज ताज बाबा ने खरीदा था। तब से अब तक इस घर का स्वरूप वैसा ही रहा है जैसा आज दिखता है। हालांकि, मंदिर की संरचना में कोई भी पूजा करने का सामान या शिवलिंग नहीं था। शहाबुद्दीन का कहना है कि ऐसे में इस स्थान पर पूजा की अनुमति देना उचित नहीं होगा।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “हम यहां पूजा करने की अनुमति नहीं देंगे। इस मंदिर में न तो शंख बजेगा, न कोई पूजा होगी। यह घर जिस स्वरूप में है, उसी स्वरूप में रहेगा।” उनका यह बयान मंदिर के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को लेकर उठे सवालों के बीच आया है।
मकान मालिक का रुख
शहाबुद्दीन का कहना है कि जब उनके बुजुर्गों ने यह घर खरीदा था, तब यहां किसी प्रकार की पूजा-अर्चना की सामग्री नहीं थी। न तो कोई शिवलिंग था और न ही पूजा के अन्य सामान। इस कारण वह पूजा के नाम पर किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देंगे। उनका यह भी कहना है कि घर में जो धार्मिक प्रतीक मिलते हैं, वे केवल एक संरचनात्मक रूप में हैं, न कि पूजा स्थल के रूप में।
विवाद का कारण
काशी जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक शहर में इस तरह के बयान हमेशा ही विवाद का कारण बनते हैं। काशी में ऐसे कई मंदिर और धार्मिक स्थल हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों का हिस्सा हैं। इस घर में पाए गए मंदिर को लेकर धार्मिक समुदायों के बीच अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह जगह वास्तव में पूजा के लिए उपयुक्त है या नहीं।
मकान मालिक का यह कदम उन लोगों के लिए एक चौंकाने वाला बयान है जो इस स्थान को धार्मिक स्थल के रूप में देख रहे हैं। उनके इस बयान ने काशी के धार्मिक माहौल को एक नया मोड़ दिया है।
काशी में मंदिर के नाम पर चल रहे इस विवाद ने धार्मिक और सांस्कृतिक विचारों के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है। मकान मालिक का यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं। आने वाले समय में इस मामले पर और चर्चा हो सकती है, क्योंकि काशी में धार्मिक स्थलों को लेकर हर कदम बहुत मायने रखता है।