AIN NEWS 1: साल 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आजाद भारत का पहला कुंभ मेला आयोजित हुआ। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन लाखों श्रद्धालु संगम स्नान के लिए जुटे। भारी बारिश से सड़कों पर कीचड़ और फिसलन हो गई थी। इसी दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आने की खबर से भीड़ बेकाबू हो गई, जिसके कारण भगदड़ मच गई। प्रशासन की लापरवाही और भीड़ प्रबंधन में विफलता के चलते करीब 1000 लोग इस हादसे में मारे गए।
भगदड़ कैसे मची?
सुबह करीब 8-9 बजे लोग स्नान के लिए एकतरफा सड़कों पर आ-जा रहे थे। तभी अचानक नियम टूट गए और दोनों तरफ से लोग एक ही सड़क पर चलने लगे। इसी बीच नेहरू के आने की खबर से भीड़ में अफरातफरी मच गई। नागा संन्यासी, जो भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे, हथियार लेकर दौड़ पड़े। भगदड़ इतनी भयानक थी कि लोग बिजली के खंभों और तारों पर चढ़कर अपनी जान बचाने लगे।
सरकार का इनकार और पत्रकारिता का साहस
हादसे के बाद यूपी सरकार ने घटना से इनकार कर दिया। लेकिन फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी ने गांव वाले का वेश धारण कर चुपके से शवों की तस्वीरें खींच लीं। अगले दिन अखबारों में इन तस्वीरों के प्रकाशित होने से राजनीतिक हंगामा मच गया। संसद में नेहरू को बयान देना पड़ा, जहां उन्होंने हादसे की बात स्वीकार की।
प्रशासनिक चूक और वीवीआईपी की मौजूदगी
उस वक्त कुंभ में करीब 40-50 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान था। प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की उपस्थिति ने सुरक्षा इंतजामों को और कठिन बना दिया। वीआईपी मूवमेंट के दौरान भीड़ को नियंत्रित करने की कोई प्रभावी योजना नहीं थी।
नेहरू की प्रतिक्रिया
नेहरू ने कुंभ स्नान करने से इनकार कर दिया था। गांधीवादी लेखक राजगोपाल पीवी ने लिखा कि नेहरू ने कहा, “गंगा मेरे लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन मैं कुंभ में स्नान नहीं करूंगा।”
न्याय की मांग और जांच रिपोर्ट
घटना के बाद सरकार ने जांच कमेटी बनाई, जिसने प्रशासन को दोषी ठहराया, लेकिन मीडिया को भी जिम्मेदार ठहरा दिया। पीड़ितों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया गया।
हादसे की ऐतिहासिकता और सबक
महाकुंभ 1954 का यह हादसा आज भी भीड़ प्रबंधन और प्रशासनिक लापरवाही की चेतावनी देता है। हादसे की तस्वीरें और रिपोर्ट आजादी के बाद भारत के पहले बड़े मेले की कड़वी सच्चाई को उजागर करती हैं।
English SEO Paragraph:
The 1954 Maha Kumbh Mela in Prayagraj witnessed one of India’s most tragic stampedes, with over 1000 casualties. Heavy rain, poor crowd management, and the arrival of Prime Minister Jawaharlal Nehru caused chaos among millions of devotees gathered for the holy bath on Mauni Amavasya. The incident exposed administrative lapses as journalists courageously captured the aftermath, challenging the government’s denial. This event remains a significant lesson in crowd control and disaster management for large-scale religious gatherings.