Sunday, January 19, 2025

“जीवित रहते ही ‘मृत’: महाकुंभ में 1500 लोगों ने पिंडदान कर बने नागा सन्यासी, महिलाओं की ऐतिहासिक भागीदारी”?

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AIN NEWS 1: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में आध्यात्मिकता और समर्पण का अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब 1500 से अधिक साधकों ने सांसारिक जीवन से नाता तोड़कर नागा सन्यासी बनने की दीक्षा ली। इन साधकों ने पंच दशनाम जूना अखाड़े की गुरु परंपरा का अनुसरण करते हुए खुद को सांसारिक रूप से “मृत” घोषित कर दिया। इस ऐतिहासिक आयोजन में 19 महिलाओं ने भी भाग लिया और नागा सन्यासी बनने की दीक्षा प्राप्त की।

नागा सन्यासी बनने की प्रक्रिया

नागा सन्यासी बनने की प्रक्रिया कठोर और अनुशासनपूर्ण होती है। इस प्रक्रिया में साधक को सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर पूरी तरह आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करना होता है।

मुंडन संस्कार

सबसे पहले सभी साधकों का जूना अखाड़े के वरिष्ठ संतों—श्री महंत रामचंद्र गिरि, दूध पुरी, निरंजन भारती और मोहन गिरि—की देखरेख में मुंडन संस्कार किया गया। मुंडन का अर्थ है अहंकार, इच्छाओं और भौतिक संपत्ति का परित्याग।

गंगा स्नान और पूजन

इसके बाद सभी साधकों ने पवित्र गंगा नदी में 108 बार डुबकी लगाई। गंगा स्नान आध्यात्मिक शुद्धिकरण का प्रतीक है, जो शरीर और आत्मा को पवित्र करता है। स्नान के बाद गंगा पूजन किया गया।

जीवित पिंडदान

इसके पश्चात साधकों ने अपना पिंडदान किया। पिंडदान आमतौर पर मृत व्यक्तियों के लिए किया जाता है, लेकिन नागा सन्यासी बनने वाले इसे अपने सांसारिक जीवन के अंत के प्रतीक के रूप में करते हैं। यह उनका अंतिम सांसारिक कर्म होता है। पिंडदान के साथ ही उन्होंने एक स्वर में खुद को सांसारिक रूप से मृत घोषित किया।

महिलाओं की ऐतिहासिक भागीदारी

महाकुंभ 2025 की इस दीक्षा में 19 महिलाएं भी शामिल हुईं, जिन्होंने नागा सन्यासी बनने का साहसिक निर्णय लिया। यह भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में एक नया आयाम जोड़ता है। महिलाओं को गुरु परंपरा के अनुसार दीक्षा दी गई, जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि वे इस कठिन साधना के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं।

जूना अखाड़े की भूमिका

पंच दशनाम जूना अखाड़ा, जो भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है, इस ऐतिहासिक आयोजन का संचालन कर रहा है। जूना अखाड़े के गुरु और वरिष्ठ संत साधकों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और दीक्षा प्रक्रिया के हर चरण में उनका साथ देते हैं।

नागा सन्यास: सांसारिकता से मोक्ष तक

नागा सन्यासी बनने का निर्णय आसान नहीं होता। इसके लिए साधक को सांसारिक जीवन के हर बंधन को त्यागकर पूरी तरह से आध्यात्मिक साधना में लीन होना पड़ता है। यह भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है।

English Paragraph for SEO:

The Prayagraj Kumbh Mela 2025 witnessed a profound spiritual moment as 1,500 individuals renounced worldly attachments to embrace the life of Naga Sannyasis. Guided by the Panch Dashanam Juna Akhara, these devotees underwent rituals like Mundan, 108 dips in the holy Ganga, and a symbolic live Pind Daan, declaring themselves spiritually detached from the mortal world. This historic event also marked the participation of 19 women, breaking traditional barriers. With its rich spiritual legacy, the Kumbh Mela serves as a testament to India’s enduring culture and devotion.

 

महाकुंभ 2025 का यह आयोजन भारतीय आध्यात्मिकता का अद्भुत उदाहरण है। 1500 साधकों का सांसारिक जीवन का त्याग और 19 महिलाओं की भागीदारी इस आयोजन को और भी ऐतिहासिक बनाते हैं। नागा सन्यास, जो पूर्ण त्याग और समर्पण का प्रतीक है, मानवता के लिए आध्यात्मिकता की नई राह दिखाता है।

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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