Monday, February 3, 2025

कौन हैं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, जो महाकुंभ में अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं?

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AIN NEWS 1: उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हाल ही में अपने बयानों को लेकर चर्चा में आए हैं। महाकुंभ के दौरान उन्होंने कई विवादास्पद टिप्पणियां कीं, जिनमें से कुछ पर संत समाज ने भी नाराजगी जताई। उनकी चर्चाओं में आने की वजह उनके ताजे बयानों में छिपी सच्चाई और खुलकर अपनी बात रखने की आदत है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जीवन परिचय

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। उनका असली नाम उमाशंकर उपाध्याय था। उन्होंने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ली। पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय थे और 1994 में छात्रसंघ चुनाव भी जीते थे।

शिक्षा और संन्यास की ओर यात्रा

उमाशंकर उपाध्याय की प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनका जीवन गुजरात में बसा, जहाँ उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य ने उन्हें प्रेरित किया। जब स्वामी करपात्री जी बीमार हुए, तो उमाशंकर ने उनकी सेवा की और इस दौरान वे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आए, जो ज्योतिष पीठ के प्रमुख थे।

शंकराचार्य की दीक्षा और गुरुत्व

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की पढ़ाई समाप्त करने के बाद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सन्यास की दीक्षा वर्ष 2003 में मिली। इस दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती प्राप्त हुआ। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे।

महाकुंभ और विवाद

महाकुंभ के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयानों ने उन्हें फिर से सुर्खियों में ला दिया। उन्होंने यह कहा कि पहली बार महाकुंभ के दौरान अव्यवस्था के कारण मौनी अमावस्या के दिन साधु-संत ब्रह्म मुहूर्त में स्नान नहीं कर पाए। इसके साथ ही उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में भी कई टिप्पणियाँ कीं, जिससे विवाद खड़ा हो गया। इस बयान के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हुए।

शंकराचार्य की भूमिका और महत्ता

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का संबंध दो प्रमुख शंकराचार्य पीठों से है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद, उन्हें 2022 में ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया। इसके अलावा, शारदा पीठ द्वारका का शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती बने। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की भूमिका महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने में योगदान दे रहे हैं।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एक ऐसे शंकराचार्य हैं, जिनकी धार्मिक और सामाजिक भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। वे न केवल धार्मिक मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि समाज में हो रहे बदलावों पर भी अपनी राय व्यक्त करते हैं। उनके बयानों ने भले ही विवाद पैदा किया हो, लेकिन उन्होंने अपनी बात कहने का अधिकार हमेशा बनाए रखा है।

Shankaracharya Swami Avimukteshwaranand Saraswati, the head of the Jyotirmath Peeth in Joshimath, has recently gained attention for his controversial statements during the Maha Kumbh. Born as Umashankar Upadhyay in Uttar Pradesh, he has a rich academic background with degrees from Banaras Hindu University. Swami Avimukteshwaranand’s outspoken nature and active participation in discussions related to spiritual matters, along with his leadership at the Jyotirmath Peeth, have made him a significant figure in contemporary Indian spiritual and political circles. His comments about the mismanagement during the Maha Kumbh and other controversial statements have sparked debates across social media and among religious communities.

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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